डॉक्टर्स ही नहीं, शिमला के सरबजीत सिंह भी हैं मरीज़ों और ज़रूरतमंदों के मसीहा। वह सालों से शवों के लिए वाहन, पेशेंट्स के लिए एम्बुलेंस सुविधा सहित ब्लड कैंप और मुफ्त में खाना खिलाने जैसी सुविधाएं ज़रूरतमंदों तक पंहुचा रहे हैं।
फरीदाबाद के रहने वाले 81 साल के पंकज बंगा AIIMS सहित कई कैंसर हॉस्पिटल्स में जाकर मरीज़ों की मदद करते हैं। इस काम में उनकी बेटी प्रियंका बंगा भी उनका साथ दे रही हैं।
मिलिए मुजफ्फरनगर की सामाजिक कार्यकर्ता शालू सैनी से, जो पिछले 15 सालों से अपनी खुद की जीवन की परेशनियां भूलकर दूसरे लोगों के लिए काम कर रही हैं। कोरोना के समय में उन्होंने लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया था और अब तक वह 500 से ज्यादा लोगों का परिवार बन अंतिम क्रिया करा चुकी हैं।
पढ़िए छतरपुर, मध्यप्रदेश के डॉ. संजय शर्मा की अनोखी सेवा के बारे में, वह पिछले 30 सालों से उन लोगों के लिए काम कर रहे हैं, जो खुद के बारे में भी सोचने की शक्ति नहीं रखते।
दिल्ली में आनंद पर्वत कॉलोनी की एक गुमनाम नायिका, जया रेड्डी ने कुष्ठ रोगियों के साथ काम करते हुए दो दशक से अधिक समय बिताया है। जानिए उनके संघर्ष की कहानी।
ओड़िशा के रहनेवाले किसान, जलंधर पटेल के पास खेत और घर भले ही बड़ा न हो, लेकिन उनका दिल बहुत बड़ा है। सिर्फ चार एकड़ खेत से, वह अपने परिवार का खर्च चलाने के साथ-साथ, 25 बेसहारा बुजुर्गों को भी आसरा दे रहे हैं।
पिता को खोने के बाद, जल्पा ने सड़क के किनारे रह रहे बेसहारा लोगों की मदद करने की सोची। वह पिछले आठ सालों से जरूरतमंदों के लिए खाना, कपड़े और दवाइयों का इंतजाम कर रही हैं। पढ़ें एक बेटी के अपने पिता के प्रति समर्पण की कहानी!
देहरादून के मोथरोवाला में रहने वाली, मालती हलदार ने लॉकडाउन में अपनी नौकरी खोने के बाद, आपदा को अवसर में बदलते हुए, अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए, 'Mal_Cui' नाम से अपने एक होम किचन की स्थापना की। अब, वह पांच महिलाओं को रोजगार दे रही हैं।
आपको सिर्फ इस्तेमाल न की जाने वाली चीज़ों का फोटो अपलोड करना है, इसके बाद आकांक्षा की दानपत्र टीम 7 से 21 दिनों के भीतर आपके घर आकर सामान ले लेगी और एक तय दिन में ज़रूरतमंदों में बाँट देगी।