शिमला में एक छोटी सी जूतों की दुकान चलाने वाले सरबजीत सिंह उर्फ़ बॉबी ने ऐसा क्या किया कि आज वह अपने शहर ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य और देश भर में मशहूर हो गए हैं?
वजह है उनकी इंसानियत! एक समय था, जब लोग उन्हें वेला बुलाया करते थे, जिसका पंजाबी में मतलब होता है- बिना काम का आदमी। लेकिन सही मायनों में जितना वह लोगों के काम आए हैं, उतना शायद ही कोई आ पाए।
बॉबी खुद को वेला पुकारे जाने पर बुरा नहीं मानते; बल्कि अब तो यह उनका नाम ही पड़ गया है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि सालों से वह अपना काम छोड़कर मुफ़्त में शव वाहन चलाते थे। अपने गाड़ी चलाने के शौक़ की वजह से उन्होंने शहर के अस्पताल से श्मशान तक शवों को ले जाने का काम शुरू किया था।
सरबजीत सिंह ने बताया कि शिमला में श्मशान काफ़ी दूर है, जहां तक पैदल जाना मुश्किल होता था। गरीब लोगों के लिए गाड़ी का इंतज़ाम करना और श्मशान तक पहुंचना मुश्किल था। ऐसे में सरबजीत की सेवा उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी और इस काम के लिए वह दिन-रात हाज़िर रहते थे।
मरीज़ों के लिए भी मसीहा से कम नहीं सरबजीत सिंह
सरबजीत सिंह ने हज़ारों लोगों की अंतिम यात्रा पूरी करने में मदद की है। इनमें से ज़्यादातर वे गरीब और बेसहारा लोग थे, जो शिमला कैंसर अस्पताल में ज़िंदगी की जंग हार गए। इसके पहले वह गुरुद्वारा के बाहर ब्लड डोनेशन कैंप लगवाया करते थे। आज भी वह हर रविवार, शहर के अस्पतालों की मदद से अपने ख़र्च पर ब्लड कैंप लगाते हैं।
इतना ही नहीं, ज़रूरतमंदों और मरीज़ों के लिए अपना पूरा जीवन क़ुर्बान करने वाले सरबजीत ने ‘ऑलमाइटी ब्लैसिंग्स’ नाम से एक संस्था भी बनाई है। आज उनकी संस्था, शहर में चार कैंटीन्स चला रही है, जहाँ पेशेंट्स और उनके रिश्तेदारों को फ्री में खाना मिलता है। पूरे हिमाचल से, शिमला के कैंसर हॉस्पिटल में इलाज के लिए आए लोगों के लिए यह राज्य की पहली मुफ्त कैंटीन है।
सरबजीत सिंह बॉबी को लोग वेला भले ही कहें, लेकिन उनके इस नेक काम को देखकर यह कहा जा सकता है कि उन्हें छोड़ दुनिया का हर वह शख़्स ‘वेला’ है, जो सिर्फ़ खुद के लिए जी रहा है।
आप उनसे जुड़ने या मदद करने के लिए उन्हें फेसबुक संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- भावना श्रीवास्तव
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