जब एक आदमी और औरत स्वेच्छा से किसी को चुनते हैं तो वे फ़रिश्ते प्रतीत होते हैं. लेकिन संबंधों पर काम न करने की वजह से बोझिलता आ जाती है जिसे वे अपना प्रारब्ध मान बैठते हैं.
मानव कौल एक अभिनेता होने के साथ-साथ, एक परिपक्व नाटककार भी हैं. हिन्दी कविता प्रोजेक्ट में आरम्भ से ही जुड़े थे. आज के वीडियो में उनके एक नाटक 'इल्हाम' से एक कविता 'रेखाएँ' आप के लिए प्रस्तुत है
प्रेम का तो मकसद ही आपको आपकी ख़ुद की ज़िन्दगी में चलायमान रखना है. आपकी क्षमता का विकास ताउम्र होता रहे - यही प्रेम का लक्ष्य है. मनीष गुप्ता की लिखी एक कविता सुन लें : 'चिर अभिलाषा - चोर अभिलाषा'
वरिष्ठ कवि उदयप्रकाश जी की कविता प्रस्तुत कर रहे हैं वरुण ग्रोवर. इस कविता का शीर्षक है 'चलो कुछ बन जाते हैं'. और वीडियो देखने के बाद अपना फ़ोन, कम्प्यूटर बंद कर दें और अपना सप्ताहांत प्यार-व्यार-और अभिसार की बातों, ख़यालों में बितायें:)
आसान सी पंक्तियाँ प्रस्तुत करना ज़्यादा मुश्किल होता है. 'एक राजा था, और एक उसकी रानी थी..' इसे शूट करने वाले दिन सौरभ शुक्ला जी ने बहुत से आँसू बहाये, पता नहीं कितनी सिगरेट और चाय पी गयीं. अभिनय के विद्यार्थी बहुत कुछ सीख सकते हैं इससे.
वो पंद्रह साल की उम्र थी आज से कोई चौंतीस साल पहले की बात है, वो ज़माना कुछ और था. एक बार एक भरपूर नज़र से कोई देख लेती थी तो फिर बंदा सालों उसके ही ख़्वाब सजा कर रखता था.