विष्णु खरे, हमारे वरिष्ठ कवि हैं, उनकी रचना 'गूंगमहल' प्रस्तुत कर रहे हैं अविनाश दास - वही, जिन्होनें स्वरा भास्कर के साथ 'अनारकली ऑफ़ आरा' फ़िल्म निर्देशित की थी.
असल प्रश्न क्या हैं आख़िर? स्त्री-पुरुष को साथ की आवश्यकता ही क्या है? विश्व को जनसंख्या बढ़ोतरी की तो कोई आवश्यकता है नहीं. उसके अलावा मानसिक तौर (बौद्धिक, व्यवहारिक और आध्यत्मिक) पर स्त्री और पुरुष एक दूसरे को पुष्ट करते हैं, इस बात में भी संदेह नहीं है.
सईद साबरी की अपनी पहचान है. जो उन्हें नहीं जानते उनके लिए सईद साबरी साहब वो हैं जिन्होंने राज कपूर साहब की हिना फ़िल्म का गाना 'देर न हो जाए कहीं देर न हो जाए गाया था.
मैं कतई नहीं मानता कि ये एक आग का दरिया है और डूब के जाना है. मोहब्बत तो दूध-शहद की नदी है.. रमणीय यात्रा है. हाँ लहरें तेज़ हो जाती होगीं, रास्ते में चलती होंगी शोरीली आँधियाँ, ओले कभी खाने से भरे होंगे कभी ख़ाली झोले कभी उछल कर सर पर बैठ जाओगे, कभी तुनक कर चार दिन नहीं बोले
आग्रह है कि संस्कृति बचाने के नारे लगाने की बजाय उसका आनंद लें. हमारी लोक-संस्कृति की इतनी मीठी, मसालेदार बानगी - हमारा सदियों पुराना गीत. लाखों लोग अभिभूत हुए, उन्हें अपनी अपनी आँचलिक भाषाओं पर प्यार आया, उनका प्रयोग करने की झिझक टूटी
रूमी : हम तो सब कुछ ढूँढ रहे हैं - पैसा, नाम, काम, कर्म, भगवान, दोस्त, प्रेमी, सुख, पहाड़, समुद्र, तैरना, उड़ना, टूटना, जुड़ना.. पर क्या ये सब हमें ढूँढ रहे हैं?'
अपनी हानि पर शोक ठीक है लेकिन जो गया उसके लिए तो एक नया अध्याय आरम्भ हुआ है. हम उसे जाने दें.. अच्छे से विदा करें ताकि नए अध्याय में वह आसानी से रम सके.