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उर्दू में गीता [कृष्ण क्या हिन्दू हैं?]

विश्व की शायद ही ऐसी कोई भाषा बची हो जिसमें गीता का अनुवाद नहीं हुआ है. और उर्दू में भी लगभग 60 अनुवाद हो चुके हैं.

सरत मोहानी कृष्ण को हज़रत कृष्ण अलैहिररहमा पुकारते थे. ये वही हैं जिनका ‘चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है’ आपने सुना होगा. इनका ये कलाम देखिये:

मथुरा कि नगर है आशिक़ी का
दम भर्ती है आरज़ू उसी का

हर ज़र्रा ए सरज़मीने गोकुल
दारा है जमाल ए दिलबरी का

बरसाना ओ नंदगाँव में भी
देख आए हैं जलवा हम किसी का

पैग़ामे हयाते जावेदा था
हर नग़मा कृष्ण बाँसुरी का

वो नूरे सियाह था कि हसरत
सरचश्मा फ़रोग़ ए आगही का

हालाँकि यह गीता का अनुवाद नहीं है लेकिन उर्दू को जानने वाले हज़रात के बीच भी कृष्ण और श्रीमद भगवद गीता ख़ासे दिलचस्प विषय रहे हैं. वैसे विश्व की शायद ही ऐसी कोई भाषा बची हो जिसमें गीता का अनुवाद नहीं हुआ है. और उर्दू में भी लगभग 60 अनुवाद हो चुके हैं. सबसे पहला अनुवाद अकबर ने करवाया था फ़ैज़ी से जो उनके नवरत्नों में से एक थे. फ़ैज़ी ने हालाँकि फ़ारसी में अनुवाद किया था उर्दू में नहीं। फिर सत्रहवीं शताब्दी के सैयद माटिन के तर्जुमे का भी ज़िक्र आता है, जो पहला उर्दू-तर्जुमा था. उसके बाद बहुत से अनुवाद हुए – ‘कृष्ण-बीती’ के नाम से ख्वाजा हसन निज़ामी, और ‘नग़्मा-ए-ख़ुदाबन्दी’ के शीर्षक से मोहम्मद अजमल ख़ान ने भी गीता का अनुवाद किया है. अलामा इक़बाल भी अनुवाद करना चाहते थे क्योंकि उनका कहना था कि फ़ैज़ी गीता की आत्मा नहीं समझ पाए थे. महाराजा कृष्णप्रसाद को लिखे एक पत्र में अलामा लिखते हैं कि (उनके ख़त के अंग्रेज़ी अनुवाद का हिंदी तर्जुमा कर रहा हूँ) “मुझे लगता है कि संस्कृत के निहायत ख़ूबसूरत बन्दों को और किसी भाषा में रख पाना लगभग असंभव है. अगर वक़्त मिलता है तो मैं तर्जुमा करने की कोशिश करूँगा. और फ़ैज़ी की काबिलियत पर तो कोई शक नहीं है लेकिन कभी-कभी यूँ लगता है कि वे ठीक तरह से गीता के सन्देश को समझ नहीं पाए.”

गीता का यही तो मज़ा है. हर पढ़ने वाला उसके अलग मायने निकाले. हर चलने वाले को अलग राह दिखाई पड़े. भक्ति-मार्गी हों अथवा कर्म-मार्गी या हर फ़लसफ़े की गलियों में प्रश्न-चिन्ह की तलवार ले कर घूमते ज्ञान मार्गी ही हों.. सभी की डगर पर गीता मशाल जलाती है. इसीलिए हर अनुवाद करने वाला इसे अलग नज़र से देखे. इसीलिए इतने सारे अनुवादों की भी कहीं सार्थकता है. स्वन्त्रता आंदोलन से जुड़े रहे रफ़ीक़ ज़कारिया (जिनके बहुत सारे कामों में से मुझे ‘Indian Muslims : Where Have They Gone Wrong’ बहुत पसंद है)
और डॉक्टर गोपीचंद नारंग को डॉ. ख़लीफ़ा अब्दुल हकीम का अनुवाद सर्वश्रेष्ठ लगा है. आज आपके लिए पेश है सईद आलम की पुरजोश आवाज़ में:

अब आता है सवाल कि कृष्ण क्या हिन्दू हैं?
अगर वे सारी दुनिया के रचयिता हैं तो क्या हिन्दू क्या मुसलमान – सब उनके और वे सबके हुए न?
और धर्म के नाम पर बाँटने वाले कृष्ण को तो प्रिय नहीं होंगे. जो धर्म को मानता है वो नहीं बाँट सकता – बाँटना सियासत का काम है.

लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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