रिटायरमेंट के बाद अक्सर लोग आराम भरा जीवन जीने के सपने देखते हैं, लेकिन आयकर अधिकारी आर के पालीवाल ने रिटायरमेंट के बाद 20 एकड़ खेत पर कम्युनिटी फार्मिंग करना शुरू किया, जिसके जरिए वह जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहते हैं। इससे पहले भी नौकरी में रहते हुए वह मॉडल गांव के लिए काम करते रहते थे।
बेंगलुरु के पास बना NSR Green Woods एक ईको-फ्रेंडली टाउनशिप है, जो बिजली और पानी के लिए किसी पर आधारित नहीं और यहाँ बने हर घर में एक किचन गार्डन भी है। इस टाउनशिप के संस्थापक राघव राव ने आईटी कंपनी की नौकरी छोड़कर, साल 2015 में इसकी शुरुआत की थी।
हरिद्वार के रहनेवाले सुधीर सैनी ने जब 2018 में अपना खुद का घर बनाया, तब उन्होंने घर को सजाने के लिए कई पौधे पहले ही तैयार कर लिए थे। यही कारण है कि उनका घर आज फूलों की बेल से भरा हुआ है।
देसी सब्जियों और फलों का स्वाद, लोगों की थाली में वापस लाने के लिए गुना (मध्यप्रदेश) के रुठियाई गांव में रहनेवाले केदार सैनी ने सैकड़ों बीज इकट्ठा किए हैं, जिन्हे वह मात्र डाक खर्च के साथ देशभर के किसानों तक पंहुचा रहे हैं। अब तक वह देश के 17 राज्यों के हजारों लोगों तक ये बीज पंहुचा चुके हैं।
गुजरात के गोधरा से 40 किमी दूर देवगढ़ बारिया गांव के राहुल धरिया यूं तो पेशे से एक डॉक्टर हैं, लेकिन गौ सेवा में अपनी विशेष रुचि के कारण वह पिछले पांच सालों से देसी गाय के गोबर पर रिसर्च कर रहे हैं और खुद ही गाय के गोबर से घड़ी, मोबाइल स्टैंड, मूर्तियां सहित कई चीजें बना रहे हैं।
उज्जैन से करीब 50 किमी दूर बड़नगर में बना एक नेचुरल फार्म स्टे- जीवंतिका को दो आईआईटी टॉपर्स साक्षी भाटिया और अर्पित माहेश्वरी ने अपने जीवन के अनुभवों से बनाया है।
सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद, भुवनेश्वर की शताब्दी साहू ने नौकरी करने के बजाय एक ऐसे काम को चुना, जिसे महिलाओं का काम नहीं समझा जाता। लेकिन भीड़ से हटकर उनके काम ने ही आज उन्हें ओडिशा की एक मात्र महिला प्लंबर ट्रेनर का ख़िताब दिलाया है।
मिलिए देश के सबसे सफल दिव्यांग बिज़नेसमैन भावेश भाटिया से, जो खुद नेत्रहीन होने के बावजूद देशभर के 9000 दिव्यांगजनों को काम दे रहे हैं और अपने प्रोडक्ट्स देश की कई बड़ी कंपनियों के साथ दुनिया भर में पंहुचा रहे हैं।