आमतौर पर घर का एक छोटा सा नल भी खराब हो जाता है, तो हम महीनों प्लंबर की राह देखते हैं। लेकिन भुवनेश्वर की शताब्दी साहू अपने घर के साथ पड़ोसियों के घर में नल या लीकेज जैसी हर परेशानी चुटकियों में सुलझा लेती हैं। 27 वर्षीया शताब्दी, प्लम्बिंग का काम तो बखूबी जानती हैं, साथ ही वह ओडिशा की एक मात्र महिला प्लंबर ट्रेनर भी हैं।
साल 2012 में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोपा और 2015 सिविल से ही बी टेक की डिग्री हासिल करने के बाद, शताब्दी ने किसी बड़ी कंपनी में नौकरी करने के बजाय उस काम को चुना, जिसमें उनकी विशेष रुचि थी।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताती हैं, “मैं दसवीं या बाहरवीं पास लड़कों को प्लंबिंग की ट्रेनिंग देती हूँ। जो भी मेरे पास सीखने आते हैं, उन्हें पहले तो आश्चर्य होता है, लेकिन बाद में सभी बहुत इज्जत देते हैं।”
कभी पेंटिंग की शौक़ीन शताब्दी कैसे बनीं प्लम्बिंग ट्रेनर?
एक सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी, शताब्दी के पिता पोस्ट मास्टर का काम करते हैं और माँ एक गृहिणी हैं। शताब्दी को बचपन से ही पेंटिंग करने में विशेष रुचि थी। शायद यही वजह थी कि उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग करने का फैसला किया। वह कहती हैं कि इंजीनियरिंग सेकंड इयर की पढ़ाई के दौरान उन्होंने पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विषय के अंतर्गत प्लंबिंग के बारे में थोड़ा-थोड़ा जानना शुरू किया था।
लेकिन बाद में उनकी रुचि इस विषय में और बढ़ने लगी। वह कहती हैं, “प्लम्बिंग में भी हमें पूरे नक़्शे के अनुसार डिज़ाइन बनाना पड़ता है। इसमें ड्रा करना या नक्शा बनाने का काम मुझे अच्छा लगता था। शायद यही वजह थी, जिसके कारण मेरी रुचि इस विषय में और बढ़ गई।”
उन्होंने पढ़ाई के बाद Water Management & Plumbing Skill Council से एक ट्रेनर का कोर्स भी किया। उस दौरान भी शताब्दी, प्लंबर ट्रेनर की ट्रेनिंग के लिए आने वाली एक मात्र महिला थीं। शताब्दी को इस ट्रेनिंग के बाद ही स्किल इंडिया में ट्रेनर की जॉब भी मिल गई। स्किल इंडिया के फील्ड ट्रेनिंग के लिए वह अलग-अलग कंपनी में ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए जाती हैं। हाल में वह ASMACS SYSTEMS SOLUTIONS PVT LTD में स्किल इंडिया के तहत तीन महीने की ट्रेनिंग दे रही हैं। उनकी कोशिश रहती है कि ट्रेनिंग के बाद, सभी बच्चों को सही जगह प्लेसमेंट भी मिल जाए।
अपने इस काम से शताब्दी को बेहद लगाव भी है। उन्होंने कभी इसे महिला या पुरुष का काम नहीं समझा, बल्कि सिर्फ एक काम समझा है। अपने इस पांच साल के करियर की मुख्य चुनौतियों के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “कई बार हमें गांव में भी ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए जाना होता है और गांव में लोगों को अंदाजा भी नहीं होता कि प्लंबिंग ट्रेनिंग के लिए कोई महिला भी आ सकती है। ऐसे में कई बार मुझे वॉशरूम आदि की अच्छी सुविधा नहीं मिल पाती। इसके अलावा, मुझे इस काम में कभी किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा।”
शताब्दी ने जिस बदलाव की शुरुआत की है, उसे अपनाने के लिए अबतक समाज तैयार नहीं हुआ। इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि आज तक खुद शताब्दी ने एक भी महिला को ट्रेनिंग नहीं दी है।
लेकिन शताब्दी की कहानी हर उस लड़की के लिए प्रेरणा होगी, जो अपने पसंद का काम करने से सिर्फ इसलिए कतराती हैं कि लोग क्या कहेंगे?
हाल ही में शताब्दी को, भारत सरकार के कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के हाथों ओडिशा की एक मात्र महिला प्लंबर ट्रेनर का अवॉर्ड भी मिला है। लेकिन शताब्दी कहती हैं कि मेरा सपना है कि और भी लड़कियां ऐसे काम से जुड़ें और अपनी क्षमता साबित करें।
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