बचपन से ही हर किसी का सपना होता है कि वे पढ़-लिखकर ज़िन्दगी में खूब तरक्की करें। अपने करियर को बनाने और एक अच्छी जॉब,अपना बिज़नेस, या पैशन फॉलो करने के लिए हममे से ज़्यादातर लोगों को अपना घर और परिवार छोड़कर किसी और शहर जाना पड़ता है। आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे ही शख़्स, उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित वजूला गांव में जन्मे चंद्रशेखर पांडे के बारे में। चंद्रशेखर ने 22 साल तक मुंबई में नौकरी की; लेकिन एक दिन, पहाड़ों से लगातार हो रहे पलायन को देखते हुए, वह अपने मन की आवाज़ सुनकर अपने गांव लौट आए। यहां उन्होंने औषधीय उत्पादों की जैविक खेती शुरू कर दी, और आज वो न सिर्फ़ इनकी बिक्री से लाखों की सालाना कमाई कर रहे हैं, बल्कि कई लोगों को रोज़गार भी दे रहे हैं।
गांव लौटने का फैसला कब और क्यों किया?

चंद्रशेखर पांडे ने द बेटर इंडिया से बातचीत करते हुए कहा, “मैं मुंबई में नौकरी ज़रूर कर रहा था, लेकिन जब-जब सोशल मीडिया या व्हाट्सएप पर गांवों से लोगों के पलायन या गांव खाली होने की बात सुनता, तो परेशान हो जाता था। 2017 में आख़िरकार वह दिन आया, जब मैंने मुंबई से नौकरी छोड़कर पूरी तरह घर वापसी का मन बना लिया। परिवारवालों ने भी इस फैसले में मुझे सपोर्ट किया, लेकिन यह सवाल ज़रूर उनके मन में था कि इतने साल मुंबई में नौकरी की है, तो अब गांव में मैं क्या करूँगा? हालांकि, मैंने सोच लिया था कि गांव जाकर अपने खेत और ज़मीन पर जैविक खेती करनी है। नवंबर 2017 में हम वजूला वापस आ गए।”
जैविक खेती का ही विचार मन में क्यों आया?
चंद्रशेखर पांडे कहते हैं, “हमारे पहाड़ पर जड़ी-बूटियां भरपूर होती हैं। मुझे अपने क्षेत्र की पूरी जानकारी थी। इसके अलावा, ऐसी बहुत सी रिपोर्ट्स हैं जो ये बताती हैं कि आने वाले कुछ सालों बाद लोगों के लिए खाने लायक अन्न नहीं बचेगा और लगातार केमिकल वाले खाने से लोगों के शरीर, बीमारी का घर बनते जा रहे हैं। बस यही सोचकर जड़ी-बूटी को बढ़ावा देने और लोगों तक उनकी सेहत के लिए फ़ायदेमंद, ऑर्गनिक चीज़ें पहुंचाने के लिए खेती शुरू करने का फैसला किया।”
आगे वह कहते हैं, “हिमायल पर कई ऐसे पदार्थ और जड़ी बूटियां हैं, जो इम्युनिटी तो बढ़ाते ही हैं, शरीर को भी अंदर से स्वस्थ रखते हैं। यही सोचकर आज से करीब चार साल पहले, 2018 में मैंने जैविक खेती शुरू की थी। इसके बाद, साल 2019 से लेकर 2021 की शुरूआत तक हम सभी ने देखा कि कोरोना महामारी ने लोगों के जीवन पर काफ़ी असर डाला। सबने अपनी इम्युनिटी पर खास ध्यान दिया और बाज़ार से महंगी-महंगी ऑर्गेनिक चीज़ें खरीदकर उनका इस्तेमाल किया। यह देखकर हमें और बढ़ावा मिला।”
चंद्रशेखर कितनी और किन चीज़ों की खेती करते हैं?
चंद्रशेखर बताते हैं कि वे ऑर्गेनिक सब्जियों की खेती के साथ-साथ, औषधीय खेती भी कर रहे हैं। वह लाल, चावल, मिर्च-मसालों के अलावा तुलसी, चाय, लेमन टी, अश्वगंधा, कैमोमाइल, लेमनग्रास, लेमनबाम, डेंडेलियन, रोज़मेरी, आंवला, रीठा, हरड़, श्यामातुलसी भी उगा रहे हैं।
वह बताते हैं कि इनमें से बहुत से प्रोडक्ट्स ऐसे हैं, जिनका नियमित इस्तेमाल करने से कई बीमारियां नहीं होंगी। डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, सर्दी, ज़ुकाम, सिरदर्द जैसे रोगों में ये स्थानीय जड़ी-बूटियां बहुत फ़ायदेमंद होती हैं।
जैविक खेती से कितने लोगों को रोज़गार मिला?
चंद्रशेखर ने बताया कि सीज़न में करीब 40 लोग काम करते हैं, और जब सीज़न नहीं होता तब भी उनके यहां खेती के काम के लिए 12 लोग तो ज़रूर चाहिए होते हैं। चंद्रशेखर ने इसके अलावा गांव में दो होम स्टे और एक रिजॉर्ट भी खोला है।
वह बताते हैं कि उनके होम स्टे में ऑर्गेनिक चीज़ों का ही इस्तेमाल होता है, उन्हीं से खाना भी बनता है। वह यहां रुकने वालों को अपने खेतों में भी घुमाते हैं, ताकि वे लोग भी इसके फ़ायदे जान सकें और शहर में ऑर्गेनिक चीज़ों की डिमांड बढ़े। दरअसल, बहुत से लोग ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स को महंगा बताकर इन्हें नहीं ख़रीदते, लेकिन जो लोग इसके फ़ायदे जानते हैं, वो केमिकल वाली चीज़ों का इस्तेमाल करने से बचते हैं। ज़रूरत है तो बस लोगों को जागरूक करने की।
सालों पहले क्यों जाना पड़ा मुंबई?
चंद्रशेखर पांडे ने बताया कि उन्होंने सन् 1995 में अपना गांव छोड़कर बाहर कदम रखा था। वजूला से उन्होंने 12वीं के बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की ही थी कि तभी उन्हें मुंबई की एक ज्वेलरी बनाने वाली कंपनी में, क्वालिटी कंट्रोल विभाग में नौकरी मिल गई थी।
गांव में नौकरी और रोज़गार के ज़्यादा अवसर नहीं थे, इसलिए अपने जैसे तमाम युवाओं की तरह वह भी गाँव छोड़कर शहर चले गए थे। मुंबई में वह लगातार नौकरी कर रहे थे। पैसा था, लेकिन जीवन में सुकून नहीं था। यही लगता रहता कि कब अपने गांव लौटना होगा। इसी चिंता ने आखिरकार गांव लौटने को प्रेरित किया।
‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देने के लिए कर रहे हैं काम
चंद्रशेखर ‘वोकल फॉर लोकल’ का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए इस मंत्र से बहुत प्रभावित हैं। उनकी उगाई सारी चीज़ों की बाज़ार में अच्छी डिमांड है और लोग इन्हें खरीदना पसंद कर रहे हैं। वह अब अपने प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन लाने के लिए भी काम कर रहे हैं। एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से उनकी बातचीत चल रही है। चंद्रशेखर पांडे के मुताबिक़, कई और किसानों को भी वह अपनी इस योजना से जोड़ने का काम कर रहे हैं; इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा और ज़्यादा लोगों को रोज़गार भी मिलेगा।
संपादन : भावना श्रीवास्तव
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