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कविता-क्लोनिंग [क्या इससे बचना सम्भव है?]

By मनीष गुप्ता

कविता लिखने की स्किल सीख सीख कर किताबें छपवाई जा रही हैं, वैसे भी आजकल कोई सम्पादन का मुआमला तो है नहीं, अपने पैसे दे कर जैसी चाहे छपवा लो, फिर सोशल मीडिया पर अपने आपको प्रमोट कर लो.

आपके भीतर की कोयल कैसी है?

By मनीष गुप्ता

फ़ेसबुक जन्य डिप्रेशन के 70% लोग शिकार हैं. सोशल मीडिया की मछलियाँ अपनी पींग में कम खिलती हैं, दूसरों की डींग में अधिक गलती हैं. चमक-दमक एकमात्र गहना है. लोग लगातार जो नहीं हैं वह दिखने के लिए मरे जा रहे हैं.

भूत / देव / नरक / पाताल

By मनीष गुप्ता

मानव कौल एक अभिनेता होने के साथ-साथ, एक परिपक्व नाटककार भी हैं. हिन्दी कविता प्रोजेक्ट में आरम्भ से ही जुड़े थे. आज के वीडियो में उनके एक नाटक 'इल्हाम' से एक कविता 'रेखाएँ' आप के लिए प्रस्तुत है

माँ-पिता गोरे हैं तो हे राम, तुम क्यों काले हुए?

By मनीष गुप्ता

यह हिन्दू धर्म की ही विशेषता है कि भगवान पूज्य भी है और दोस्त भी. गोपियाँ कृष्ण को उलाहने दे सकती हैं. अब के कान्हा जो आये पलट के, गालियाँ मैंने रक्खी हैं रट के.

ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जाती : दुष्यंत कुमार [इंक़लाब की आवाज़ और टूटे हुए साज़ का दर्द भी]

By मनीष गुप्ता

आज शनिवार की चाय में मनोज बाजपेयी प्रस्तुत कर रहे हैं दुष्यंत कुमार जी की एक आग में बघारी हुई रचना! और पढ़िए मनीष गुप्ता क्या कहते है दुष्यंत कुमार के बारे में!