वरिष्ठ कवि उदयप्रकाश जी की कविता प्रस्तुत कर रहे हैं वरुण ग्रोवर. इस कविता का शीर्षक है 'चलो कुछ बन जाते हैं'. और वीडियो देखने के बाद अपना फ़ोन, कम्प्यूटर बंद कर दें और अपना सप्ताहांत प्यार-व्यार-और अभिसार की बातों, ख़यालों में बितायें:)
आसान सी पंक्तियाँ प्रस्तुत करना ज़्यादा मुश्किल होता है. 'एक राजा था, और एक उसकी रानी थी..' इसे शूट करने वाले दिन सौरभ शुक्ला जी ने बहुत से आँसू बहाये, पता नहीं कितनी सिगरेट और चाय पी गयीं. अभिनय के विद्यार्थी बहुत कुछ सीख सकते हैं इससे.
वो पंद्रह साल की उम्र थी आज से कोई चौंतीस साल पहले की बात है, वो ज़माना कुछ और था. एक बार एक भरपूर नज़र से कोई देख लेती थी तो फिर बंदा सालों उसके ही ख़्वाब सजा कर रखता था.
विष्णु खरे, हमारे वरिष्ठ कवि हैं, उनकी रचना 'गूंगमहल' प्रस्तुत कर रहे हैं अविनाश दास - वही, जिन्होनें स्वरा भास्कर के साथ 'अनारकली ऑफ़ आरा' फ़िल्म निर्देशित की थी.
मैं कतई नहीं मानता कि ये एक आग का दरिया है और डूब के जाना है. मोहब्बत तो दूध-शहद की नदी है.. रमणीय यात्रा है. हाँ लहरें तेज़ हो जाती होगीं, रास्ते में चलती होंगी शोरीली आँधियाँ, ओले कभी खाने से भरे होंगे कभी ख़ाली झोले कभी उछल कर सर पर बैठ जाओगे, कभी तुनक कर चार दिन नहीं बोले
आग्रह है कि संस्कृति बचाने के नारे लगाने की बजाय उसका आनंद लें. हमारी लोक-संस्कृति की इतनी मीठी, मसालेदार बानगी - हमारा सदियों पुराना गीत. लाखों लोग अभिभूत हुए, उन्हें अपनी अपनी आँचलिक भाषाओं पर प्यार आया, उनका प्रयोग करने की झिझक टूटी
रूमी : हम तो सब कुछ ढूँढ रहे हैं - पैसा, नाम, काम, कर्म, भगवान, दोस्त, प्रेमी, सुख, पहाड़, समुद्र, तैरना, उड़ना, टूटना, जुड़ना.. पर क्या ये सब हमें ढूँढ रहे हैं?'