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कोनोहा ईको फार्मस्टे: मिट्टी का बना पारंपरिक कोंकनी घर!

आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी से दूर पुराने समय से जुड़ना, पारंपरिक मिट्टी के घर में रहना और देसी जीवनशैली का अनुभव करना चाहते हैं, तो अदिति मुजुमदार का 'कोनोहा' ईको स्टे है बिलकुल परफेक्ट!

रिटायर्ड प्रोफेसर ने बनाया रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, 2 सालों में गाँव हुआ सूखा मुक्त

रिटायर्ड प्रोफेसर अशोक व अन्य लोगों के प्रयास से पिछले दो मानसून सीजन में गाँव में पानी के टैंकर बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी है। जिला परिषद ने गाँव को सूखामुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया।

मिट्टी के बर्तनों की छत व सूखी डालियों के खंभे, प्रकृति की गोद में बना है यह घर

2 एकड़ के भूखंड पर निर्मित इस घर में 800 वर्ग फुट में एक ईंट और कंक्रीट की दीवारों वाला स्विमिंग पूल फैला हुआ है, साथ ही यहाँ ऑर्गेनिक खेत भी हैं, जहाँ कई प्रकार की सब्जियाँ उगाई जाती हैं।

माँ ने अकेले ही पत्तों की झोपड़ी में पाला, आज डॉक्टर व IAS बना यह आदिवासी बेटा

“बचपन से मैं एक डॉक्टर बनना चाहता था ताकि मैं दूसरों की मदद कर सकूँ। लेकिन बड़े होने के बाद मुझे लगा कि लोगों की मदद करने के लिए पहले मुझे उन्हें शिक्षित करके बेहतर अवसर प्रदान करना चाहिए। इसके लिए मैंने सिविल सर्विसेज को चुना।” - डॉ. राजेंद्र भरुद, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, नंदुरबार जिला, महाराष्ट्र।

खुद अनार उगाते हैं और फिर अपनी बनाई मशीन पर प्रोसेसिंग कर सालाना कमाते हैं लाखों

कड़ी मेहनत के बाद भी फसलों का उचित दाम नहीं मिलने के कारण स्वप्निल ने अनारदाना, जूस, सिरप और जेली जैसे उत्पादों का निर्माण शुरू किया।

57 वर्षों में 7 पहाड़ों को काटकर बनाई 40 किमी सड़क, मिलिए 90 वर्षीय भापकर गुरूजी से

By नेहा रूपड़ा

गुरूजी ने पहाड़ काटकर ऐसा रास्ता बनाया, जिससे 29 किमी० की दूरी मात्र 10 किमी० में सिमट कर रह गयी। जिस रास्ते से साइकिल भी नहीं गुजर सकती थी अब वहाँ से बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ गुज़रती हैं।

जहाँ बिजली भी नहीं पहुँचती, वहाँ आदिवासी भाषाओं में जानकारी पहुँचाते हैं ये पत्रकार!

By द बेटर इंडिया

'आदिवासी जनजागृति' ने पिछले 3 महीनों में न सिर्फ कोरोना पर जागरूकता लाने का काम किया है बल्कि फेक न्यूज, मजदूरों की समस्या सहित इस दौरान बढ़े करप्शन को भी उजागर किया है।

कभी ऑफिस बॉय की नौकरी करते थे, आज खेती के ज़रिए हुआ 400 करोड़ रूपए का टर्नओवर!

ज्ञानेश्वर TEDx स्पीकर के तौर पर आमंत्रित होने वाले पहले भारतीय किसानों में से एक हैं।

महाराष्ट्र के 17 जिलों के किसानों के लिए ‘जल संरक्षक नायक’ हैं यह 72 वर्षीय इंजीनियर!

By पूजा दास

उल्हास परांजपे का सवाल बहुत ही सरल है। वह जानना चाहते हैं कि यदि मुंबई के नागरिकों और उद्योगों को पूरे साल पर्याप्त पानी मिल सकता है, तो फिर किसान क्यों नहीं मिल सकता?