"हर एक जीवन अनमोल है। कुछ लोग अगर मेरी ज़िन्दगी में न होते तो शायद मेरी ज़िन्दगी गलत मोड़ ले सकती थी। मैं भी दूसरों के लिए यही करना चाहता हूँ। मैं दुनिया नहीं बदल सकता, पर मेरा काम दूसरों को उम्मीद दे सकता है और उन्हें बेहतर ज़िन्दगी की तरफ बढ़ने में मदद कर सकता है।"
पौधा वितरण के दौरान यह टीम बच्चों से करीब आधा घंटे का इंटरेक्शन करती है, जिसका परिणाम है कि अब तक वितरित किए गए पौधों की सर्वाइवल रेट 90% से ज़्यादा है।
कई संगठन अपने सीएसआर के तहत यह डेस्किट खरीदकर ज़रूरतमंद छात्र-छात्राओं तक पहुंचा रहे हैं। इससे अब तक करीब 1 लाख बच्चों को यह डेस्किट मुफ़्त में बांटी जा चुकी हैं।
Maharashtra में पुणे की रहने वाली 42 वर्षीय अमिता मराठे ने साल 2013 में एक बच्ची गोद ली है। उन्होंने शादी नहीं की, लेकिन वे बच्चा गोद लेना चाहती थीं। उनके इस फ़ैसले में उनके परिवार ने उनका पूरा योगदान दिया।