साल 2016 से प्रदीप सांगवान, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों को प्लास्टिक मुक्त बनाने की मुहिम में लगे हैं। उनकी संस्था 'हीलिंग हिमालय' के वेस्ट कलेक्शन सेंटर में आज हर दिन 5 टन कचरा जमा होता है।
एक हादसे में अपने दोनों पैर खोने के बाद हैदराबाद की अर्पिता रॉय एक समय पर ठीक से चल भी नहीं पाती थीं। लेकिन आज वह कठिन से कठिन योग आसन करती हैं और दूसरों को भी सिखाती हैं।
चाय का सफल बिज़नेस चला रहे आलप्पुष़ा (केरला) के रहनेवाले, फैज़ल यूसुफ़ के पिता का कम उम्र में ही निधन हो गया था और उन्हें 12वीं में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके बाद, वह अख़बार बांटने का काम करने लगे। कुछ सालों बाद उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया, जिसने उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
मिलिए भोपाल (मध्यप्रदेश) की 53 वर्षीया ज्योति रात्रे से, जिनके जज्बे ने उन्हें 50 की उम्र में न सिर्फ एक पर्वतारोही बनाया, बल्कि उन्होंने यूरोप की सबसे ऊँची छोटी माउंट एलब्रुस को इस उम्र में फतह करके एक रिकॉर्ड भी बनाया।
लखनऊ के गोसाईगंज के पास एक छोटे से गांव माढरमऊ की सोनाली साहू बचपन से ही पढ़ाई में अच्छी रही हैं। उनकी लगन और कुछ बनने की इच्छा को देखकर उनके स्कूल की प्रिंसिपल ने उनका साथ देने का फैसला किया। स्कूल प्रिंसिपल की छोटी सी मदद से सोनाली आज बड़े सपने भी देख पा रही हैं।
मध्य प्रदेश के पन्ना के रहनेवाले विजय कुमार चंसौरिया हाल ही में एक प्राइमरी स्कूल टीचर के पद से रिटायर हुए, उन्हें रिटायरमेंट में 40 लाख रुपये मिले, जिसे उन्होंने गरीब बच्चों की भलाई के लिए दान कर दिया।
गुजरात के राजकोट के रहनेवाले 13 वर्षीय निसर्ग त्रिवेदी को लॉकडाउन के दौरान, जब समय मिला तो उन्होंने अपने घर में पौधे लगाना शुरू कर दिया। आज उनके पास 300 से अधिक पौधे हैं, जो 15 तरह की तितलियों का घर हैं।
पढ़िए छतरपुर, मध्यप्रदेश के डॉ. संजय शर्मा की अनोखी सेवा के बारे में, वह पिछले 30 सालों से उन लोगों के लिए काम कर रहे हैं, जो खुद के बारे में भी सोचने की शक्ति नहीं रखते।
डॉ. अनिल राजवंशी ने बीते चार दशकों में तकनीक के जरिए गांवों के विकास को एक नई ऊंचाई दी है। उनके उल्लेखनीय योगदानों के लिए सरकार ने उन्हें हाल ही में पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया है। पढ़िए उनकी प्रेरक कहानी!