अमिताभ 2003 में इंग्लैंड गए और ब्रिटिश सरकार के सोशल वेलफेयर बोर्ड लंदन में करीब 10 साल तक काम किया। इस सरकारी नौकरी से वह दुनिया का हर ऐशो-आराम हासिल कर सकते थे, लेकिन उनकी मंजिल कुछ और थी।
पहले शहर की गन्दगी की ओर लोगों का रवैया बेहद उदासीन था, लेकिन उनकी खूबसूरत पेंटिंग्स ने वो कमाल कर दिखाया है कि अब लोग अपनी मर्ज़ी से इन खूबसूरत दीवारों के आसपास साफ़-सफाई रखने लगे हैं।
डॉ. ध्रुव कक्क्ड़ एक अच्छे अस्पताल में कार्यरत थे और डॉ. प्रियांजलि उनके यहां इंटर्नशिप कर रही थीं। वे चाहते तो बड़े अस्पतालों में काम करते हुए आराम की ज़िंदगी गुजारते। लेकिन उनका जूनून स्वास्थ्य सुविधाओं को घर-घर तक पहुँचाना है!
दिव्यांग-जनों के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वे नियमित तौर पर खड़े हों ताकि उनके शरीर के निचले भाग का ब्लड सर्कुलेशन और हड्डियां ठीक रहें। लेकिन इससे पहले इसके लिए उन्हें हमेशा दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था।