बेंगलुरु के बाहरी इलाके कागलीपुरा में 8,000 sq.ft ज़मीन पर बने इस घर का नाम है- ‘Breathe’. जैसा नाम वैसा ही काम; यह सस्टेनेबल घर अपने अनोखे डिज़ाइन के कारण आम घरों के मुकाबले काफ़ी खुला, हवादार और सुकून भरा है।
सस्टेनेबल लिविंग को ध्यान में रखकर Bir Terraces को पारंपरिक पहाड़ी तरीके से बनाया गया है। वादियों में बसे इस घर को बनाते समय एक भी पेड़ नहीं काटा गया और इसे बनाने में रीसाइकल्ड लड़की जैसी प्राकृतिक चीज़ों का ही इस्तेमाल किया गया है।
मुज़फ्फरनगर (उत्तरप्रदेश) के प्रशांत शर्मा को अपनी दादी और पापा से गार्डनिंग का शौक़ मिला था। आज उनके घर में विदेशी किस्मों के कई फूल खिलते हैं, रेल लिली का उनके पास जो कलेक्शन है, वह तो शायद ही किसी के पास होगा।
नवसारी (गुजरात) के डूंगरी गांव में बना, रिटायर्ड इंजीनियर सुरेशचंद्र पटेल का घर किसी फार्म हाउस से कम नहीं है। उनका पूरा परिवार साथ मिलकर 8000 से ज्यादा पौधों की देखभाल करता है।
आगरा के रहनेवाले चंद्र शेखर शर्मा ने अपने घर में करीब 400 किस्मों के पौधे लगाए हैं। इस हरियाली के साथ उनके घर पर अपना एक इकोसिस्टम भी तैयार हो गया है, जिसके कारण आगरा की भीषण गर्मी में भी उनके घर के अंदर का तापमान 4 से 5 डिग्री कम रहता है।
आर्मी से रिटायर होने के बाद, खगरिया (बिहार) के जितेंद्र कुमार ने गार्डनिंग को अपना ज्यादा समय देना शुरू किया। उनके गार्डन की सुंदरता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मात्र एक हफ्ते पहले ही उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने गार्डन की फोटोज़ डालीं, जिसे 17 हजार से ज्यादा लोगों ने पसंद किया।
मिलिए पुणे की डेटा साइंटिस्ट मानसी दुनाखे से, जिन्हें छह साल पहले तक पौधों की ज्यादा जानकारी नहीं थी। लेकिन उन्हें हरियाली वाली जगह में घूमना पसंद था। हरियाली के अपने इसी शौक़ के कारण, उन्होंने अपने घर को एक मिनी जंगल में बदल दिया है।
कोटा, राजस्थान की रहने वाली पारुल सिंह को सात साल पहले तक गार्डनिंग की कोई जानकारी नहीं थी। न ही वह कोई पौधा उगाती थीं। लेकिन एक बार अपने बेटे के एक सवाल का जवाब देते हुए, उन्हें गार्डनिंग का ऐसा शौक हुआ कि उन्होंने अपने घर में 1500 से ज्यादा पौधे उगा लिए।
नोएडा के प्रदूषण और गर्मी में भी आलिया वसीम का घर रहता है किसी हिल स्टेशन जैसा ठंडा और घर आने वाला कोई भी मेहमान इसकी तारीफ किए बिना नहीं रहा पता। जानिए कैसे किया उन्होंने यह कमाल!