कोयम्बटूर (तमिलनाडु) की 23 वर्षीया राधिका जेए को हड्डियों की एक दुर्लभ बीमारी है, जिस वजह से वह ज़्यादा बाहर आ-जा नहीं सकतीं। लेकिन अपने हुनर के दम पर अब वह घर बैठे, महीने के 8-10 हज़ार रुपये कमा लेती हैं।
अपनी माँ और सास से गार्डनिंग के गुण सीखने के बाद, गाज़ियाबाद की रुचि गोयल को कोरोना काल में गार्डन सजाने का ऐसा जुनून सवार हुआ कि उन्होंने अपने घर के कबाड़ से ज़ीरो बजट में, गार्डन में चार चाँद लगा दिए, जिसकी तारीफ़ आज हर कोई करता है।
मिलिए उत्तर प्रदेश के चिरोड़ी गांव के 25 वर्षीय मास्टर सचिन बैंसला से, जिन्हें एक समय पर स्टार्टअप शुरू करने के लिए ढेरों ताने सुनने पड़े थे। लेकिन आज उनका पूरा गांव उन्हीं के नाम से जाना जाता है। पढ़ें, इस युवा के सफलता की कहानी।
अडूर (केरल) के रहने वाले राजेश थिरुवल्ला ने अपना बचपन ग़रीबी में, माता-पिता के प्यार के बिना ही गुज़ार दिया। लेकिन आज वह एक नहीं, 300 बुज़ुर्गों के बेटे हैं और सबकी ज़िम्मेदारी बड़े प्यार से उठा रहे हैं। पढ़ें, महात्मा जनसेवा केंद्रम के संस्थापक राजेश थिरुवल्ला की कहानी।
जयपुर के सात साल के सभ्य गुप्ता बचपन से ही खाना बनाने के शौक़ीन हैं। अपने इंस्टाग्राम पेज mymom_taughtmethis में वह अक्सर अपना कुकिंग टैलेंट दिखाते हैं। उनके मस्ती भरे अंदाज के एक लाख से ज़्यादा फॉलोवर्स हैं।
कोरोनाकाल में नौकरी जाने और पिछले साल ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी का पता चलने के बाद भी, अहमदाबाद के मिलिन वाढेर ने हिम्मत हारने के बजाय अपनी पत्नी के साथ एक नई शुरुआत की है। पढ़ें, उनके टिफिन सर्विस बिज़नेस के बारे में।
5,000 से अधिक किन्नरों के एक संगठन ने अपनी कमाई से एक हिस्सा निकालकर, महाराष्ट्र के कल्याण रेलवे स्टेशन के पास एक अनोखा किचन शुरू किया है। यहां वे हर दिन करीबन 500 लोगों को मात्र एक रुपये में नाश्ता और 10 रुपये में खाना खिला रहे हैं।
78 वर्षीय कमल चक्रवर्ती, पिछले 26 सालों से पुरुलिया( पश्चिम बंगाल) में ‘भालो पहाड़' नाम की एक सोसाइटी चला रहे हैं। जिसके तहत उन्होंने एक भव्य जंगल बनाया है और यहाँ रहते आदिवासियों तक शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधा पहुंचा रहे हैं।