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Global Teacher Award: जानिए कौन हैं 7 करोड़ रुपए जीतने वाले शिक्षक रंजीत सिंह दिसाले

ग्लोबल टीचर पुरस्कार से सम्मानित दिसाले साल 2016 में उस वक्त भी सुर्खियों में थे, जब उन्होंने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को लेकर, एक क्यूआर कोड प्रणाली की शुरुआत की थी, जिसे कई राज्यों द्वारा अपनाया गया था।

ओडिशा: पिछले 7 दशकों से अपने गाँव के बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रहे हैं 102 वर्षीय नंदा सर

By निशा डागर

ओडिशा ने 102 वर्षीय नंदा प्रुस्टी पिछले 7 दशकों से मुफ्त में पढ़ा रहे हैं, उन्होंने अब तक गाँव की तीन पीढ़ियों को शिक्षित किया है!

हर महीने बचाते हैं कुछ पैसे, ताकि गरीब बच्चों का जीवन संवार सकें!

By नीरज नय्यर

कुछ साल पहले सड़क पर भीख मांगते बच्चों को देखकर नवीन के मन में उन्हें शिक्षित करने का ख्याल आया, ताकि वह इज्जत के साथ रोजी-रोटी कमा सकें।

"अपने बेटे के लिए कुछ करना है," 350 बच्चों को मुफ़्त शिक्षा दे रहीं हैं शहीद की माँ!

By निशा डागर

6 अक्टूबर 2017 को अरुणाचल प्रदेश के तवांग में एमआई-17 हेलीकॉप्टर हादसे में स्क्वाड्रन लीडर शिशिर तिवारी शहीद हो गए थे।

200 बच्चों को मुफ्त पढ़ाता है 'मिड डे मील' बनाने वाली माँ का यह बेटा!

By निशा डागर

"बहुत से लोग मुझे पागल ही कहते थे क्योंकि मैं कचरा बीनते बच्चों को, बकरी चराते बच्चों को इकट्ठा करके एक टोली बना लेता और उन्हें अपने घर पर लाकर कुछ न कुछ पढ़ाना शुरू कर देता था। पर मेरी माँ तब भी मेरे साथ खड़ी रहीं।"

वीकेंड पर 8 किमी दूर गाँव में जाकर बच्चों को पढ़ाता था यह IIT छात्र, राष्ट्रपति ने दिया गोल्ड मेडल!

By निशा डागर

अपने डिपार्टमेंट में भी हमेशा टॉपर्स की लिस्ट में रहने वाले अनंत को अपनी पढ़ाई और एक्स्ट्रा-कर्रिकुलर गतिविधियों को मैनेज करना बख़ूबी आता है।

24 वर्षीया पायल ने बदल दिया ढर्रा, कच्ची बस्ती के बच्चों को जोड़ा स्कूल से!

“अभी नहीं तो कब? और तुम नहीं तो कौन? यह प्रश्न हमेशा मेरे मन में आते थे। धूमा में अभिभावक बच्चों को पढ़ने भेजने के लिए तैयार तो थे लेकिन सुविधाओं का अभाव था। आज धीरे-धीरे वहाँ तक भी सुविधाएँ पहुँच रही है। ‘शिक्षा’ अभियान की एक बच्ची माधवी परसे का चयन ‘स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ में हुआ है। आज ''शिक्षा'' के माध्यम से बरसाना का एक-एक बच्चा पाठशाला जाता है।''

पढ़िए 76 साल की इस दादी की कहानी जिसने 56 की उम्र में की बीएड, खोला खुद का स्कूल!

''माँ के देहांत के कारण बचपन में ही नन्हें कंधों पर रसोई और घर के कामों की जिम्मेदारी आ गई। 15 वर्ष की उम्र तक स्कूल का दरवाजा नहीं देखने वाली इस महिला के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था। ज़िद करते हुए नन्हीं बच्चियों के साथ साड़ी पहने हुए ही स्लेट पकड़कर अक्षर ज्ञान लिया। 18 वर्ष की होने तक शादी कर दी गई। ससुराल में पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी के बावजूद पढ़ाई का क्रम जारी रखा। प्राइवेट कैंडिडेट के तौर पर घर पर पढ़ाई कर किसी तरह ग्रेजुएशन और फिर अपनी बेटी के साथ ही बीएड किया। आज खुद का स्कूल चला रही है। शिक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल बनकर उभरी है।''

दिल्ली: ग्रोसरी शॉप के साथ चलाते हैं पुल के नीचे 300 बच्चों के लिए फ्री स्कूल!

By रोहित मौर्य

राजेश ने दो बच्चों के साथ पढ़ाना शुरू किया था और आज उनके पास करीब 300 बच्चे पढ़ाने आते हैं।