अहमदाबाद के मिलन बोचीवाल, पिछले सात सालों से बलूनवाला नाम से एक अनोखे बिज़नेस मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिसके ज़रिए वह कई ज़रूरतमंद युवाओं को रोज़गार देने के साथ, शहर की पार्टियों में रंग भर रहे हैं।
90 साल की उम्र में भी लक्ष्मी अम्मल, मेहनत करने से नहीं डरतीं। उन्होंने अपनी 72 साल की बेटी के साथ मिलकर पिछले साल ही चेन्नई के पास 'वक्साना फार्म स्टे' की शुरुआत की है।
पुणे में एक सोशल एंटरप्राइज़ चलानेवाले अनीश मालपानी ने दो साल की रिसर्च के बाद, मल्टी-लेयर प्लास्टिक को रीसायकल करके ट्रेंडी सनग्लासेज़ बनाने का एक तरीका खोज निकाला है।
सुंदरबन, बंगाल के रहनेवाले डॉ. फारूक हूसैन ने गरीब लोगों का इलाज करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और आज लोग उन्हें प्यार से 'बिना पैसे का डॉक्टर' कहकर बुलाते हैं।
पहाड़ों के स्वाद को देशभर तक पहुंचाने के लिए उत्तराखंड की शशि बहुगुणा रतूड़ी ने 'नमकवाली' की शुरुआत की थी, जिसके ज़रिए वह 'पिस्यु लूण' यानी पहाड़ी नमक को सिलबट्टे पर पीसकर दुनिया भर तक ले गईं और बना दिया इसे एक ब्रांड।
ओडिशा में बराल गाँव के अनिल प्रधान ने गांव के बच्चों के लिए ‘इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल फॉर रूरल इनोवेशन’ खोला है, जहाँ बच्चों को तकनीक और इनोवेशन का पाठ पढ़ाया जाता है।
गुजरात के बनासकांठा के रहने वाले धवल और जयेश नाई ने गांव में रहकर एक ऐसी अनोखी मशीन बनाई, जो चाय की टपरी पर एक साथ 15 ग्लास साफ कर सकती है। उनका आविष्कार शार्क टैंक इंडिया के मंच के ज़रिए आज देश भर में छा गया है।