साल 2015 में भारतीय रेलवे ने ट्रेन में और रेलवे स्टेशन पर स्वच्छता के लिए एक योजना की घोषणा की। इस काम को सुनिश्चित करने के लिए 'पर्यावरण और हाउस कीपिंग प्रबंधन निदेशालय' विंग का गठन किया गया। दो साल बाद, पश्चिमी रेलवे, मुंबई के तत्कालीन डिप्टी चीफ़ मकैनिकल इंजीनियर (गुड्स) फेड्रिक पैरियथ को डिप्टी चीफ़ पर्यावरण और हाउसकीपिंग मैनेजर की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी।
60 वर्षीय फेड्रिक याद करते हुए बताते हैं कि उस समय, उन्होंने अपने दो दशक के करियर में इससे पहले केवल मकैनिकल इंजीनियर के तौर पर ही काम किया था। लेकिन नई ज़िम्मेदारी से पीछे न हटते हुए, उन्होंने इस नए काम को एक बदलाव की शुरुआत की तरह देखा और स्वीकार किया।
उन्होंने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, "मैंने यह ज़िम्मेदारी हाथ में लेने का फ़ैसला किया। इस काम में मेरे करने के लिए बहुत कुछ था, क्योंकि पहली बार रेलवे ने पर्यावरण से संबंधित कोई पहल की थी।"
2019 में, वह पश्चिम रेलवे के अहमदाबाद डिवीज़न में चले गए। उसके बाद आने वाले सालों में, विभाग ने उनके नेतृत्व में कई डिपार्टमेंट्स में प्रगति की।
कई स्टेशन्स, विशेष रूप से अहमदाबाद डिवीज़न के आठ एनजीटी-नामित, अहमदाबाद, गांधीधाम, भुज, मणिनगर, वीरमगाम, पालनपुर, महेसाणा और समाखियाली पर आज एक बढ़िया वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम, वॉटर रीसायकलिंग सिस्टम, सोलर पैनल आदि मौजूद हैं।
स्टेशन पर पर्यावरण संबंधी काम करना थी बड़चुनौती
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2022/10/Plastic-bottle-crushing-machine-installed-at-Gandhidham-railway-station.-1664916309-1024x580.jpg)
वह बताते हैं, "सबसे पहले मैंने ब्लू चिप कंपनियों को रेलवे में CSR एक्टिविटीज़ शुरू करने के लिए राज़ी किया। ज़्यादातर कंपनियों के पास सीएसआर एक्टिविटीज़ के लिए काफ़ी फंड्स हैं, लेकिन वे अक्सर यह नहीं जानते कि उनका इस्तेमाल कैसे किया जाए।"
फेड्रिक का कहना है कि जब उन्होंने 2017 में मुंबई हेडक्वाटर्स में पर्यावरण और हाउस कीपिंग मैनेजमेंट के साथ काम करना शुरू किया था, तब तक उनके ज़्यादातर कामों की सिर्फ़ प्लानिंग ही हुई थी।
वह आगे कहते हैं, "मैंने उन्हें प्लास्टिक बॉटल क्रशिंग मशीन्स लगाने का आइडिया दिया, जो स्टेशनों पर प्लास्टिक मैनेजमेंट को आसान बनाने में मदद कर सकें। इसके बाद, पश्चिम रेलवे के कई स्टेशनों पर ऐसी 20 से ज़्यादा मशीनें लगाई गईं।"
दो साल बाद, वह सीनियर डिविज़नल पर्यावरण और हाउसकीपिंग मैनेजर के रूप में अहमदाबाद डिवीज़न में चले गए। फेड्रिक कहते हैं, "जब मुझे अहमदाबाद डिवीज़न में जाने का मौक़ा मिला, तो मैंने वहाँ से भी अपना काम जारी रखा।"
वह कहते हैं, "पूरे भारतीय रेलवे में अहमदाबाद डिवीज़न, लोडिंग, पैसेंजर ट्रांसपोर्टेशन जैसे मामलों में टॉप परफॉर्मिंग डिवीज़न्स में से एक है। लेकिन सस्टेनेबल एनवायरनमेंट मैनेजमेंट के मामले में यह पीछे था। मैंने वेस्ट मैनेजमेंट और पॉल्यूशन कंट्रोल की योजनाओं को लागू करने का फ़ैसला किया, ताकि इन मामलों में भी इसे आगे बढ़ा सकूँ।"
प्लास्टिक प्रदूषण ख़त्म करने की कोशिश
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2022/10/Products-made-from-recycled-PET-bottles-are-on-display-at-the-Ahmedabad-station.-1664916416-1024x580.jpg)
रेलवे स्टेशनों पर बॉटल क्रशिंग मशीन्स लगाने के बाद, फेड्रिक ने प्लास्टिक वेस्ट से निपटने के लिए काम किया। इसके लिए उन्होंने त्रिची (तमिलनाडु) में मौजूद कंपनी EcoHike के साथ कोलैबोरेट किया, जो पीईटी बोतलों से कपड़े बनाती है। रेलवे स्टेशन
फेड्रिक बताते हैं, "उन्होंने टी-शर्ट, बेड-शीट, पिलो कवर, नैपकिन, हेडरेस्ट वग़ैरह बनाने के लिए पीईटी बोतलों को रिसाइकिल किया। हालांकि जितने प्रोडक्ट्स उन्होंने बनाए वे पूरे डिवीज़न में सप्लाई करने के लिए काफ़ी नहीं थे, लेकिन मेरा इरादा यह दिखाना था कि ऐसे कई तरीक़े हैं जिनसे हम प्लास्टिक के ख़तरे से निपट सकते हैं।" इसके बाद उन्होंने Bisleri को भी इस काम में शामिल कर लिया, जो रेलवे से हर 50 किग्रा मल्टी-लेयर्ड प्लास्टिक (एमएलपी) के बदले रीसाइकल्ड प्लास्टिक से बनी एक बैठने की बेंच देने के लिए राज़ी हुई।
रीसाइकल्ड पीईटी बोतलों से बने प्रोडक्ट्स और बिसलरी की बनाई हुईं बेंच, आज गुजरात के अहमदाबाद और गांधीधाम रेलवे स्टेशन पर लोगों के देखने के लिए लगे हुए हैं। वह कहते हैं, "मैं चाहता था कि लोग इन्हें देखकर यह समझें कि इन आम प्रोडक्ट्स को भी रीसायकल किया जा सकता है। मुझे भरोसा है कि इससे वे पर्यावरण की तरफ़ अपनी ज़िम्मेदारी को और अच्छे से समझेंगे और सही आदतें अपनाएंगे।"
रेलवे स्टेशन पर बनाया बेहतरीन वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2022/10/ApNova-bin-left-compost-machine-middle-and-e-vehicle-for-transporting-garbage-at-Ahmedabad-railway-station.-1664916520-1024x580.jpg)
फेड्रिक ने वेस्ट सेग्रीगेशन की ओर भी काम किया और प्रमुख रेलवे स्टेशन्स पर गीले, सूखे और प्लास्टिक कचरे के लिए अलग-अलग रंग के डिब्बे लगाए।
वह बताते हैं, "इसके अलावा, हमने ApNova वेस्ट बिन्स भी लगाए। ये अच्छी क्वालिटी वाले भारी डिब्बे हैं, जो जल्दी नहीं टूटते और न चोरी हो सकते हैं। इसलिए ऐसे बिन्स रेलवे स्टेशन जैसी सार्वजनिक जगहों के लिए काफ़ी सही हैं।"
स्टेशनों पर गीले कचरे के मैनेजमेंट के लिए उन्होंने दो कम्पोस्ट मशीनें लगाने की पहल की- एक 500 किलो क्षमता का और दूसरा 250 किलो का। वह बताते हैं, "हम इससे लगभग 6 से 7 टन कम्पोस्ट बनाने में सफल रहे। इसके लिए हमें एनएबीएल सर्टिफिकेट मिला है, जो इस बात का प्रमाण है कि यह कंपोस्ट अच्छी क्वालिटी का है और ऑनलाइन भी बेचा जा सकता है। लेकिन हमने इसे गार्डनिंग के लिए इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया।"
अहमदाबाद और गांधीधाम जैसे प्रमुख स्टेशनों पर ज़ीरो वेस्ट मैनेजमेंट पर आधारित दो सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट्स भी लगाए गए थे। वह आगे बताते हैं, "हम जो भी कचरा इकट्ठा करते हैं, उसे ले जाकर सॉलिड वेस्ट प्लांट में डाल दिया जाता है। इसके लिए ई-वाहनों का इस्तेमाल किया जाता है, जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलते हैं।"
रेलवे स्टेशन पर बनाए सोलर रूफ़, सौर्य ऊर्जा को बढ़ावा
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2022/10/The-patch-of-Miyawaki-forest-on-the-premises-of-Ahmedabad-Railway-Station.11-1664916699.jpg)
फेड्रिक बताते हैं, "हमें कचरे में बहुत सारी सिल्वर फॉयल मिलती है, जिसे हम अलग करते हैं और साफ़ करके सुखाते हैं। दहेज (गुजरात) में ईस्टर्न कार्गो नाम की कंपनी की मदद से हमने सिल्वर फॉयल, टेट्रा पैक और प्लास्टिक को पॉलीओल शीथ्स में बदला। ये शीथ्स वॉटरप्रूफ़ हैं और निर्माण में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इसके अलावा ये प्राकृतिक हीट अब्सॉर्बर्स हैं, जो तापमान को 4 डिग्री सेल्सियस कम करते हैं।" वह कहते हैं कि इसके अलावा, शीशे को अच्छे से क्रश करके उनसे कैंडल स्टैंड बनाए गए।
फेड्रिक का मानना है कि रेलवे स्टेशन पर डिब्बों और प्लेटफॉर्म्स को धोने के लिए बहुत ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है, जो एक तरह से वेस्टेज है। वह कहते हैं, "हमने वॉशिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी को फाइटोरेमेडिएशन मॉडल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में रीसायकल किया, जो अहमदाबाद डिवीज़न में अलग-अलग जगह लगे हुए हैं। इससे लगभग हर दिन 860 किलो लीटर पानी रीसायकल होता है, जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से गार्डनिंग और कोच धोने के लिए किया जाता है।"
इसके अलावा, इस ऑफ़िसर ने अहमदाबाद रेलवे स्टेशन के परिसर में एक मियावाकी जंगल भी बनाया। वह कहते हैं, "अक्टूबर 2020 में हमने 800 स्क्वायर मीटर क्षेत्र में 42 अलग-अलग किस्मों के लगभग 2,400 पेड़ लगाए। आज इन पेड़ों की औसत ऊंचाई 15-20 फीट है।" वह पौधे लगाने की ड्राइव भी चलाते आ रहे हैं।
उन्होंने 313.8 kWp की क्षमता वाले सोलर पॉवर पैनल्स भी लगवाए थे। वह बताते हैं, "हमने अहमदाबाद स्टेशन पर लगभग 4,20,274 किलोवाट यूनिट जेनेरेट किया, जो स्टेशन की कुल बिजली खपत का लगभग 21 प्रतिशत है।" अहमदाबाद, साबरमती, और वटवा जैसे स्टेशनों पर सोलर हार्वेस्टिंग के लिए भी सिस्टम मौजूद हैं।
इस पहल से क्या प्रभाव पड़ा?
/hindi-betterindia/media/media_files/uploads/2022/10/Fedrick-received-several-awards-1664916835-1024x580.jpg)
फेड्रिक की इस पहल के तहत, अहमदाबाद स्टेशन में रियल-टाइम बेसिस पर वायु गुणवत्ता सूचकांक और ध्वनि प्रदूषण के स्तर की निगरानी शुरू कर दी गई, जो प्लेटफॉर्म पर डिस्प्ले होते हैं।
वह आगे कहते हैं, "मेरी जानकारी में यह एकमात्र रेलवे स्टेशन है, जहां एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम है। इसके अलावा, अहमदाबाद स्टेशन को इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल द्वारा 'प्लैटिनम ग्रीन' रेटिंग से सम्मानित किया गया है। इसे पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली (ईएमएस) के लिए आईएसओ-14001 सर्टिफिकेशन भी दिया गया है।"
परिमल शिंदे, पूर्व एडीआरएम, अहमदाबाद डिवीज़न और मुंबई सेंट्रल रेलवे में वर्तमान सीडब्ल्यूएम, जिन्होंने तीन साल तक फेड्रिक के साथ काम किया, वह कहते हैं, "फेड्रिक हमेशा एक एनर्जेटिक और काफ़ी सेल्फ मोटिवेटेड व्यक्ति रहे हैं। उनकी पहल की वजह से ही डिवीज़न में पर्यावरण मैनेजमेंट से जुड़े बहुत सारे पॉज़िटिव बदलाव हुए। उनके कामों से आज पूरे भारत के रेलवे डिवीज़न्स को सीखना चाहिए और उनके दिखाए रास्ते को फॉलो करना चाहिए।"
लोगों में आ रहा बदलाव
फेड्रिक के मुताबिक़, "देश भर में आज उस सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे हमने स्थापित किया था। मैंने इस काम से जुड़े, जो भी डाक्यूमेंट्स तैयार किए थे, उन्हें हर डिवीज़न को भेजा गया।"
वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि लोग अब कूड़े या प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में ज़्यादा जागरूक हो गए हैं। जब से हमने रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर डस्टबिन्स लगाए हैं, और रीसाइकल्ड प्लास्टिक से बने प्रोडक्ट्स को डिस्प्ले किया है; हमने यात्रियों के व्यवहार में बदलाव देखा है। पानी की बर्बादी को लेकर रेलवे कर्मचारी भी अब जागरूक हैं।"
हाल ही में रिटायर हुए फेड्रिक अब पर्यावरण से संबंधित परियोजनाओं के लिए एक सलाहकार के रूप में काम करते हैं।
आप फेडरिक पैरियथ से 9909844050 या freddypariath@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।
मूल लेख - अंजली कृष्णन
संपादनः अर्चना दुबे
यह भी पढ़ें - ‘उल्टा छाता’ : सौर उर्जा के साथ बारिश का पानी इकट्ठा करने वाला भारत का पहला रेलवे स्टेशन!