झारखंड के इस गाँव के लोगों ने बाँस से बनाया 100 फीट लंबा झूलता हुआ पुल

नदी के दोनों किनारों पर बड़े-बड़े पेड़ों पर तार खींचकर उस पर बांस बिछाकर पुल में चलने के रास्ते तैयार किए गये और करीब 25 से 30 दिनों की मेहनत के बाद कटांग का झूला पुल आज लोगों का संकटमोचक बनकर तैयार है।

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 125 किमी दूर लातेहार जिले के हेरहंज में देशी जुगाड़ से बना बिना पिलर का झूलता पुल लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। कटांग नदी पर स्थानीय ग्रामीणों की जुगाड़ तकनीक से बना यह पुल आस-पास के कई गाँव को जोड़ता है। इस इलाके में हर साल बारिश के बाद बाढ़ क वजह से दर्जनों गांव का संपर्क अन्य इलाके से टूट जाता था।

दशकों से पुल की आस लिए ग्रामीणों की उम्मीद जब टूटने लगी तो उन्होंने इस समस्या का हल खुद ही निकाल लिया। ग्रामीणों ने उत्तराखंड के ऋषिकेश के झूला पुल की तर्ज पर देशी पुल बनाने का निर्णय लिया। फिर क्या था ग्रामीणों ने चंदा कर पैसा जमा किया और रोजाना श्रमदान कर पुल बनाने में जुट गए। बाँस, तार, रस्सी और बल्ली के सहारे इस पुल को तैयार किया गया।

Jharkhand Villagers
गाँव वालों ने आपस में चंदा करके यह कार्य शुरू किया

नदी के दोनों किनारों पर बड़े-बड़े पेड़ों पर तार खींचकर उस पर बांस बिछाकर पुल में चलने के रास्ते तैयार किए गये और करीब 25 से 30 दिनों की मेहनत के बाद कटांग का झूला पुल आज लोगों का संकटमोचक बनकर तैयार है।

पुल निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले प्रेमचंद उरांव ने पुल के निर्माण में दिन-रात मेहनत किया। प्रेमचंद बताते हैं, “हम लोगों ने पुल निर्माण के लिए सरकार, प्रशासन सबका दरवाजा खटखटाया लेकिन दशकों तक कुछ भी नहीं हुआ। इसके बाद ही हम सब ग्रामीणों ने मिलकर श्रमदान से पुल बनाया। झूला पुल के निर्माण होने से हमारे गाँव के बच्चों को हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए हेरहंज में भाड़े पर रहने की जरुरत अब नहीं पड़ेगी, अब बच्चे बरसात में भी स्कूल जा सकते हैं। वहीं बरसात के दिनों में हमारे गांव में डाकिया चिट्ठी तक नहीं दे पाता था। पिछले 20 साल से हमलोग इस दुर्दशा को देख रहे थे। अब वो बीते दिन की बात हो गई है।”

कटंगा के एक अन्य ग्रामीण निर्मल उरांव बताते है कि इस पुल के बनने से लोकल बाजार एवं प्रखण्ड कार्यालय हेरहंज सिर्फ 2 किमी दूर है, जबकि पहले दूसरी ओर से करीब 25 किमी दूरी तय कर हेरहंज जाना पड़ता था। यही नहीं करीब 8000 की आबादी वाले कटांग एवं आस-पास के गाँव के लोग अब पैदल एवं साइकिल के जरिए इस झूला पुल से दूसरे तरफ आराम से जा सकते हैं।

निर्मल बताते हैं, “हम लोग जब पुल बनाने के लिए माथापच्ची कर रहे थे तो उसी समय हमारे गाँव के दामाद प्रकाश कुजूर लॉकडाउन के दौरान यहीं फंस गए थे। प्रकाश जी के बिना यह पुल बनाना संभव नहीं था, वह पेशे से सिविल इंजिनीयर हैं और इस पुल के पीछे का पूरा विज्ञान उन्हीं का है। नक्शा के जरिए स्टील के तार एवं बांस के क्लैम्प से जोड़ कर हमलोग पुल का निर्माण कर चुके है जो 100 फीट लंबा एवं करीब 4 फीट चौड़ा है। यह झूला पुल एक बार में करीब 35 लोगों का वजन झेल सकता है।”

Jharkhand Villagers
पुल बनाते ग्रामीण

झूला पुल के निर्माण में सिर्फ पुरूषों ने ही नहीं महिलाओं ने भी श्रमदान दिया है। गाँव की सरिता कुजूर बताती हैं, “अभी और काम करना है ताकि पुल को और सुरक्षित बनाया जा सके। प्लेटफार्म पर स्टील प्लेट्स एवं दोनों तरफ फेन्सिंग करना है ताकि बैलेंस खराब होने पर कोई नदी में न गिरे। अब तक करीब 50 हजार की राशि हमलोगों ने खर्च की है जल्द ही हम सब मिलकर बचे हुए काम भी पूरा कर लेंगे।”

प्रेमचंद बताते हैं कि बारिश के दिनों में कटांग नदी में डूबने से कई लोगों की मौत हो चुकी है। उन्हें उम्मीद है कि पुल की वजह से लोग अब नहीं। वह बताते हैं, “सालों से हम बरसात से पहले 3 महीने का राशन एक साथ खरीदते थे। इन दिनों में बाजार, प्रखण्ड कार्यालय या कहीं और जाना हमारे लिए बड़ी समस्या थी। बिना पिलर के इस झूला पुल ने हम गांव के लोगों को एक नई उम्मीद दी है औऱ हम ग्रामीणों ने अब सीख लिया है कि कुछ भी मुश्किल नहीं है, कुछ करने का दृढ़ संकल्प अगर कर लिया जाए तो लाख परेशानियां भी बाधक नहीं बनती है।”

हेरहंज के प्रखण्ड विकास पदाधिकारी संजय कुमार यादव इस पहल की तारीफ करते हुए बताते हैं कि ग्रामीणों ने बिना किसी बाहरी मदद के पुल का निर्माण किया जो प्रशंसनीय है। करीब 5000 से ज्यादा लोग जो कटांग के आस-पास के गाँव में रहते है उनको हेरहंज आने में इस पुल की वजह से काफी आसानी हो जाएगी।

Jharkhand Villagers
ग्रामीणों ने पूरे ताकत झोंक कर इस असंभव कम को संभव कर दिया

सालों से अपने हालात का रोना रो रहे ग्रामीणों ने जब ठान लिया तो महीने भर के श्रमदान से स्टील रोप एवं बांस का बना झूला पुल बना दिया। कटांग एवं आसपास के गांव में खुशी की लहर है, अब बरसात के मौसम में ग्रामीणों को नदी किनारे पेड़ के नीचे रात काटने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा।

देशी जुगाड़ तकनीक से अपनी चुनौतियों को अवसर में तब्दील कर अपने बूते झूला पुल का निर्माण करने वाले कटांग गाँव के ग्रामीणों को द बेटर इंडिया का सलाम।

यह भी पढ़ें- मिट्टी, बांस और पुआल से बना यह घर, बंगाल के तूफ़ान में भी डट कर खड़ा रहा, जानिए कैसे

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X