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10 लाख घरों को धुएं से बचा रहा है इन MBA ग्रैजुएट्स का एक आविष्कार, ‘ग्रीन-चूल्हा’

इस प्रोडक्ट को डिज़ाइन करने से पहले इन युवाओं ने देश के उन सूदूर इलाकों का दौरा किया, जहां मिट्टी के चूल्हे इस्तेमाल होते हैं!

यह कहानी ऐसे दो दोस्तों की है, जिन्होंने अपने स्टार्टअप के जरिए जहां एक ओर ग्रामीण जीवनशैली को सुधारने में अहम भूमिका निभाई है वहीं वे पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी बचा रहे हैं।

साल 2006 में नेहा जुनेजा और अंकित माथुर ने दिल्ली कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से अपनी पढ़ाई पूरी की और उसके बाद दोनों ने एमबीए की भी डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने अन्य दो दोस्तों के साथ मिलकर, साल 2008 में अपना स्टार्टअप शुरू किया। लगभग 6-8 महीने उन्होंने उस स्टार्टअप को चलाया। लेकिन उस साल आई आर्थिक मंदी के कारण उन्हें अपना स्टार्टअप बेचना पड़ा।

नेहा ने द बेटर इंडिया को बताया, “ऐसा नहीं था कि हमारा बिजनेस ही फेल हो गया। दरअसल उस स्टार्टअप में दोनों पक्षों को लाभ हासिल नहीं हो रहा था। इसके बाद ही हमने सोचा कि ऐसा कुछ किया जाए जिससे सभी को फायदा मिले। इसके लिए हमने जगह-जगह ट्रैवल किया। हम ऐसा कुछ ढूढ़ना चाहते थे, जिससे कि हम दूसरों के लिए भी कुछ करें। जब हम ट्रैवल कर रहे थे तो हमने देखा कि भारत में अभी भी बहुत से घरों में मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनता है। यह सिर्फ गांवों में ही नहीं है बल्कि शहरों में भी झुग्गी-झोपड़ियों में आप जाकर देखेंगे तो आपको सब घरों में मिट्टी के चूल्हे ही मिलेंगे।”

Neha Juneja with Women

आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में हो रहे क्लाइमेट चेंज में 2% हिस्सा पारम्परिक मिट्टी के चूल्हों से निकलने वाले धुएं का भी है। दुनिया में हर साल मिट्टी के चूल्हे से निकलने वाले धुएं की वजह से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की वजह से 40 लाख लोगों की मौत होती हैं। इनमें एक चौथाई मौत सिर्फ भारत में ही होती है।

नेहा और अंकित ने इस बारे में कुछ करने की ठानी। उनकी तलाश, स्मोकलेस क्लीनस्टोव पर आकर खत्म हुई। उन्होंने लगभग एक-डेढ़ साल की मेहनत से ऐसे स्टोव का डिज़ाइन तैयार किया, जिसमें कम ईंधन इस्तेमाल हो और एकदम ना के बराबर धुंआ निकले। कई एरर और ट्रायल के बाद उनका प्रोडक्ट फाइनल हो गया। इसके बाद, उन्होंने आम लोगों को प्रोडक्ट को दिखाया और इस्तेमाल किया। लगभग 3-4 महीने तक टेस्टिंग के बाद, जब उनके प्रोडक्ट्स का रिजल्ट अच्छा आने लगा तो उन्होंने फिर अपने स्टार्टअप की नींव रखी।

साल 2011 में नेहा और अंकित ने अपने एक और साथी, शोएब क़ाज़ी के साथ मिलकर ग्रीनवे ग्रामीण इंफ़्रा की नींव रखी। इसके ज़रिये वह अपने दो प्रोडक्ट्स, स्मार्ट स्टोव और जंबो स्टोव को लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

Greenway Stove

ग्रीनवे स्मार्ट स्टोव:

सिंगल बर्नर के साथ आने वाली यह स्टोव किसी भी तरह के सॉलिड बायोमास जैसे लकड़ी, बांस, उपले और कृषि अपशिष्ट आदि से काम करता है। इसकी खासियत यह है कि इसमें 65% कम ईंधन लगता है और पारंपरिक चूल्हे से 70% तक कम धुंआ निकलता है। इसे स्टील और एल्युमीनियम से बनाया गया है।

ग्रीनवे जंबो स्टोव:

यह साइज़ में स्मार्ट स्टोव से बड़ा होता है। बाकी सभी विशेषताएं एक जैसी ही हैं। नेहा बतातीं हैं कि उन्होंने इस में जो एयर रेगुलेशन टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की है, उस पर उनका पेटेंट भी है। इस मैकेनिज्म से यह स्टोव क्लीन कुकिंग करता है।

“जब हम अपने प्रोडक्ट की टेस्टिंग कर रहे थे तो अक्सर लोग कहते थे कि मिट्टी के चूल्हे से क्या समस्या है? सालों से लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। इन लोगों को यह समझाना बहुत मुश्किल है कि इस धुएं में कई तरह की हानिकारक गैस होती हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक हैं। खासकर कि महिलाओं के लिए,” उन्होंने आगे कहा।

नेहा और उनकी टीम ने लोगों की जागरूकता पर काफी काम किया है। उन्होंने गाँव-देहात में भी खुद जाकर, लोगों के बीच बैठकर इस स्टोव पर खाना पकाकर दिखाया है। उनके अभी भी ज़्यादातर प्रोडक्ट्स लोगों के ज़रिए ही नए-नए ग्राहकों तक पहुँचते हैं। उन्होंने बहुत ही कम सोशल मीडिया प्रमोशन पर ध्यान दिया है।

इसके अलावा, उन्होंने रिटेलर्स की बजाय सामाजिक संगठनों, महिला सहकारिताओं और माइक्रो-फाइनेंस कंपनियों के ज़रिए अपने प्रोडक्ट्स को लोगों तक पहुँचाया है। पिछले 10 सालों में कंपनी 10 लाख क्लीन कुकस्टोव बेचने में सफल रही है। इस तरह से उन्होंने 10 लाख घरों को धुएं से बचाया है।

हालांकि, उनका सफर चुनौतियों भरा रहा है। नेहा कहती हैं कि उनकी शुरुआत सिर्फ तीन लोगों से हुई थी। उन्होंने अपने पहले बिज़नेस की बचत के पैसों से इस बिज़नेस में फंडिंग की। पर सबसे बड़ी समस्या थी लोगों के बीच अपने प्रोडक्ट के लिए जगह बनाना। उनका प्रोडक्ट भले ही सभी तरह की खूबियों से भरा हुआ था लेकिन यह पुरुष की नहीं बल्कि महिलाओं की बात करता है। आज भी भारत में खाना पकाना महिलाओं का ही काम समझा जाता है और बहुत ही कम लोग हैं जो इस काम में महिलाओं को कोई आराम देने के बारे में सोचते हैं।

लोग यह मानने को बिल्कुल ही तैयार नहीं हैं कि मिट्टी के चूल्हे से निकलने वाला धुंआ हानिकारक है। अगर है भी तो औरत के लिए है, इससे क्या फर्क पड़ता है। इस सोच में बदलाव लाने के लिए उन्हें काफी जद्दोज़हद की और लगभग 2-3 सालों बाद उनकी कोशिशें रंग लाने लगी। वह कहतीं हैं कि भारत में उनका सबसे ज्यादा बिज़नेस दक्षिण राज्यों में है और इसके अलावा, उनके प्रोडक्ट्स आज अफ्रीकन देशों में भी जा रहे हैं।

आम लोगों और पर्यावरण, दोनों के हित में काम करे उनके स्टार्टअप को कई जगह सम्मानित भी किया गया है। उन्हें साल 2018 में फेसबुक इंडिया स्टार्टअप डे अवॉर्ड, वीमेन इंटरप्रेन्योर 2019 अवॉर्ड, टाइम मैगज़ीन अवॉर्ड सहित अब तक 10 से भी ज्यादा जगहों पर सम्मान मिल चुका है।

आज नेहा की कंपनी देश की सबसे बड़ी बायोमास स्टोव बनाने वाली कंपनी है। उनकी फैक्ट्री गुजरात के वडोदरा में स्थित है। स्टोव के अलावा उन्होंने लोगों की मांग पर सोलर लैंप और वाटर प्योरीफायर भी देना शुरू किया है। ये दोनों उनके अपने डिज़ाइन किए हुए प्रोडक्ट्स नहीं हैं। नेहा के मुताबिक उनका उद्देश्य ग्रामीण लोगों की ज़रूरत के हिसाब से प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराना है। वह कहतीं हैं कि आज की ज़रूरत ग्रामीण भारत के लिए इनोवेशन करने की है तभी हमारे देश में शहर और गांवों के बीच का फासला कम होगा।

अगर आप ग्रीनवे के प्रोडक्ट्स के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उनकी वेबसाइट देख सकते हैं!

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