अगर होम या इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन का ख्याल आपको वैकेशन पर निकलने से रोक रहा है तो उन मंजिलों के हो जाएं जहाँ न कोविड टेस्ट ज़रूरी है और न क्वारंटाइन।
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अलका कौशिक
अलका कौशिक की यात्राओं का फलक तिब्बत से बस्तर तक, भूमध्यसागर से अटलांटिक तट पर हिलोरें लेतीं लहरों से लेकर जाने कहां-कहां तक फैला है। अपने सफर के इस बिखराव को घुमक्कड़ साहित्य में बांधना अब उनका प्रिय शगल बन चुका है। दिल्ली में जन्मी, पली-पढ़ी यह पत्रकार, ब्लॉगर, अनुवादक अपनी यात्राओं का स्वाद हिंदी में पाठकों तक पहुंचाने की जिद पाले हैं। फिलहाल दिल्ली-एनसीआर में निवास।
जर्नलिज़्म को किया अलविदा, अब हिमाचल के कस्बों का स्वाद पहुँचातीं हैं पूरे देश तक!
कोरोना काल में कुछ ऐसा होगा सफ़र, घूमने के शौक़ीन हो जाएँ तैयार!
एक दिन ऐसा भी आएगा जब कोरोनाकाल सिर्फ बुरे ख्वाब की तरह बचा रह जाएगा। लेकिन इस बुरे ख्वाब से हमने कुछ सीख हासिल की हैं, आने वाले दिनों में अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी से लेकर सैर-सपाटे पर लागू करेंगे उन्हें। हम ही क्या, समूचा पर्यटन उद्योग इसकी तैयारी में है। आइये जानते हैं कैसा होगा सफर कोविड-19 की प्रेतछाया के बीतने के बाद।
वैश्विक महामारी पार्ट 3: कहाँ से हुई थी क्वारंटाइन की शुरुआत?
इतिहास में ऐसे कई वाकयात मिलते हैं जब महामारियों पर अंकुश लगाने के लिए संक्रमितों को स्वस्थ लोगों से अलग-थलग रखा जाता था। बेशक, मध्यकालीन यूरोप में स्वास्थ्यकर्मियों को बैक्टीरिया या वायरस की जानकारी नहीं थी लेकिन वे इतना समझते थे कि रोगी को शेष स्वस्थ आबादी से अलग रखकर, या कारोबारी के जरिए आने वाली वस्तुओं को नहीं छूने से रोगों से बचा जा सकता है।