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प्रीति टौंक

मूल रूप से झारखंड के धनबाद से आनेवाली, प्रीति ने 'माखनलाल पत्रकारिता यूनिवर्सिटी' से पत्रकारिता में मास्टर्स किया है। ऑल इंडिया रेडियो और डीडी न्यूज़ से अपने करियर की शुरुआत करने वाली प्रीति को, लेखन के साथ-साथ नयी-नयी जगहों पर घूमने और अपनी चार साल की बेटी के लिए बेकिंग करने का भी शौक है।

न मिट्टी, न जमीन! इस तरह हवा में उगा सकते हैं आलू

By प्रीति टौंक

अक्सर आलू उगाने के लिए ज्यादा मिट्टी और जगह की जरूरत पड़ती है, लेकिन एरोपोनिक तकनीक से आप हवा में भी आलू उगा सकते हैं।

नेत्रहीन होते हुए भी बखूबी चलाते हैं मसालों का बिज़नेस, औरों को भी दिया रोज़गार

By प्रीति टौंक

बनारस के सत्यप्रकाश मालवीय सिर्फ 25 साल के हैं. उन्होंने बचपन में ही अपनी आँखों की रौशनी खो दी थी, लेकिन जज़्बा ऐसा कि आज अपने साथ-साथ 10 और महिलाओं व दिव्यांगजनों को रोजगार देने में सक्षम हैं।

तमाम व्यस्तताओं के बीच इस डॉ. दम्पति ने घर में बनाया खेत व फिश पॉन्ड

By प्रीति टौंक

सूरत के डॉक्टर दम्पति जिगना और राहुल शाह के टेरेस गार्डन में सब्जियां और फल का उत्पादन किसी खेत से कम नहीं होता, क्योंकि उन्होंने बेहतर पोलीनेशन के लिए छत पर सरसों के पौधे भी उगाए हैं।

जानें कैसे वास्तुकला में आधुनिकता को भी मात देता है, गुजरात का 1000 साल पुराना मोढेरा मंदिर

By प्रीति टौंक

पढ़ें, कैसे 11वीं सदी में बना मोढेरा का सूर्य मंदिर आधुनिक वास्तुकला में आजकल की इमारतों को भी मात देता है। फिर चाहे वह मंदिर में पानी के लिए बनी स्टेप वेल हो या रौशनी के लिए की गई वास्तुकला।

इंजीनियर बनीं 'रीसाइक्लिंग हीरो', मंदिर में चढ़े सूखे फूलों से शुरू किया बेहतरीन बिज़नेस

By प्रीति टौंक

सूरत की 22 वर्षीया मैत्री जरीवाला का स्टार्टअप Begin With Flower, बेकार और मुरझाए फूलों को अपसाइकिल करके 10 से ज्यादा प्रोडक्ट्स बनाता है।

गाने का काम छूटा, तो अपनी दूसरी कला से बनाई पहचान, फ्रैंकी बेचकर चलाने लगीं घर

By प्रीति टौंक

पेशे से सिंगर जामनगर की 37 वर्षीया दुलारी आचार्या ने एक साल पहले मात्र 25 हजार रुपयों के साथ एक फ्रैंकी स्टॉल शुरू किया था और आज वह हर महीने इससे 30 हजार का मुनाफा कमा रही हैं।

10/4 की बालकनी में 100 पौधे और हर पौधा एक DIY पॉट में

By प्रीति टौंक

गजियाबाद में रहनेवाली अंशु जैन, अपने घर से किसी भी प्लास्टिक की बोतल या खाली डिब्बे आदि को फेंकती नहीं, बल्कि अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल करके उसे नया रूप दे देती हैं। उनकी छोटी से बालकनी में रीसायकल करके बनाए गए प्लांटर ही ज्यादा हैं।