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प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों को बनाने में गणित व विज्ञान का शानदार तालमेल, कर देगा आपको हैरान

क्या, आप जानते हैं सदियों पहले बने प्राचीन मंदिर, जंतर-मंतर या ताजमहल में क्या समानता है? गणित! गणित और सिमिट्री के सिद्धांत का प्रयोग करके देश में कई ऐसे स्मारक बनाए गए हैं, जो आज भी अचंभित करते हैं।

पद्म श्री दुलारी देवी: गोबर की लिपाई करके सीखी कला, रु. 5 में बिकी थी पहली पेंटिंग

By प्रीति टौंक

दुलारी देवी (Padma Shri Dulari Devi) को बिहार की मशहूर मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में योगदान के लिए इस साल पद्म श्री से सम्मानित किया गया। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया है।

शौक के लिए नदी किनारे पड़े पत्थरों से बनाते थे क्रिएटिव चीजें, वही हुनर बना कमाई का जरिया

By प्रीति टौंक

महाराष्ट्र के परभणी जिले के एक छोटे से गांव वाजुर के रहनेवाले प्रल्हाद पवार, नदी के किनारे पड़े पत्थरों से कई रचनात्मक कलाकृतियां बनाते हैं। उनकी यह कला आज जिले की शान बन गई है।

फ्रांस में मिल रही जॉब को छोड़, देश में रहकर किया ऐसा काम, गिनीज़ बुक में दर्ज हो गया नाम

By Sanjay Chauhan

अपनी माटी के लिए कुछ करने की खातिर, देवभूमि उत्तराखंड की शिवानी ने सात समंदर पार की नौकरी को भी ठुकरा दिया। आज वह अपनी बेहतरीन चित्रकारी की वजह से लोगों के बीच एक चर्चित चेहरा बन चुकी हैं।

दुर्गा पूजा: दर्दभरी इस मूर्ति के पीछे है किस मूर्तिकार का हाथ, क्यों हैं माँ उदास

By अर्चना दूबे

जानिये, दक्षिण कोलकाता में बेहाला बरिशा क्लब पंडाल की मार्मिक माँ दुर्गा की मूर्तियों के पीछे है किसकी सोच।

महालया: इस बंगाली पर्व पर 90 सालों से प्रसारित किया जा रहा है भद्रा का कार्यक्रम, जानें क्यों

By द बेटर इंडिया

बीरेंद्र कृष्णा भद्रा एक प्रमुख बंगाली नाटककार थे। उनके द्वारा जाप किए गए 'चंडीपाठ' ने, न जाने कितनी पीढ़ियों को महालया के दिन, सुबह-सुबह 4 बजे बिना किसी झुंझलाहट के जगाया है।

कच्छ का यह परिवार सहेज रहा है 700 साल पुरानी कला, विदश तक पहुंचाएं खराद कालीन

By प्रीति टौंक

कच्छ के तेजशीभाई और उनका पूरा परिवार, आज भी हाथों से बुनकर बनाते हैं, कच्छ के प्रसिद्ध खराद कालीन।

कम जगह में बड़ा काम! इनसे सीखें आम, चीकू, अमरुद जैसे पेड़ों के बोनसाई लगाना

बेंगलुरु की वीना नंदा बोनसाई बनाने की कला में माहिर हैं, जिसके लिए उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते हैं।

न सड़क, न बिजली, फिर भी सीखा प्लास्टिक से प्रोडक्ट बनाना, दिया कई महिलाओं को रोज़गार

By अर्चना दूबे

काजीरंगा (असम) के छोटे से गाँव (बोसागांव) में रहने वाली रूपज्योति गोगोई, प्लास्टिक को रीयूज़ करके उससे बैग्स बनाती हैं।

पेंटिंग विश्व चैंपियन बने तो जापान ने दिया ऑफर, पर देश में रहकर महिलाओं को बनाया सशक्त

By अर्चना दूबे

एक कलाकार हमेशा समय से आगे की सोचता है। जब काम करने के लिए बहुत कम महिलाएं घरों से बाहर निकलती थीं, खासकर छोटे शहरों में। तब उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले मऊ के रहने वाले मुमताज़ खान ने कई लड़कियों और महिलाओं को हुनरमंद बनाने और रोज़गार से जोड़ने का बीड़ा उठाया।