महानगर, यानी बड़ी-बड़ी इमारतों के बीच छोटे-छोटे से घर। न कोई बड़ा सा आंगन और न ही बाग बगीचों के लिए कोई जगह। कुल मिलाकर कंक्रीट का एक बड़ा सा जंगल होते हैं ये बड़े शहर। लेकिन कुछ लोग हैं, जो इस कंक्रीट के जंगल में भी पेड़ों को उगा रहे हैं और अपना शौक़ पूरा कर रहे हैं। अब भले ही वे पेड़ आकार में छोटे क्यों न हों।
ऐसी ही एक कलाकार हैं बेंगलुरु की वीणा नंदा, जिन्हें पौधों से बहुत प्यार है। वह दो दशक से भी ज्यादा समय से घरों की खुली जगहों को छोटे-छोटे पेड़ों से सजाने का काम कर रही हैं। वह एक पेशेवर लैंडस्केप आर्टिस्ट हैं, जो सनशाइन गार्डन बुटीक चलाती हैं।
वीना का बचपन बगीचों और बड़ी सी खुली जगह में बीता है। उनके दादाजी का कॉफी के पेड़ों का एक बाग था, जिसकी देखभाल वह खुद किया करते थे। उनकी मां को भी पेड़-पौधों से खासा लगाव था। द बेटर इंडिया से वह कहती हैं, “मुझे हमेशा से बागवानी का शौक़ रहा है। शुक्र है कि यू ट्यूब पर मुझे बोनसाई बनाना सिखाने वाला एक चैनल मिल गया।”
कहां से हुई बोनसाई की शुरुआत?
बड़े से पेड़ का एक छोटा सा रूप जिसे हम बोनसाई कहते हैं। इसको उगाने के लिए पेड़ों की किसी अलग ब्रीड की जरुरत नहीं होती। यह सामान्य से ही पेड़ होते हैं, जिन्हें समय-समय पर कटाई- छटांई करके बढ़ने से रोक दिया जाता है। इससे वह आकार में बड़े तो नहीं हो पाते, लेकिन अपना रूप नहीं खोते हैं। अगर सीधे शब्दों में कहें, तो बोनसाई यानी एक बौना पेड़ (bonsai tree)।
बड़े पेड़ को छोटा बनाकर ट्रे में लगाने की इस कला की शुरुआत चीन से हुई थी। लेकिन जापान ने इस कला को निखारा है। जापानियों ने इसे अलग तकनीक से बेहद ही खूबसूरती के साथ उगाना शुरू किया और इसे इस कदर लोकप्रिय बना दिया कि आज लोग इस कला को सीखने के लिए बकायदा कोर्स कर रहे हैं।
पेड़ों का यह रूप बेहद ही आकर्षक होता है। शहरों के छोटे-छोटे से घरों में ये हरियाली का आभास कराते हैं। इसके लिए कुछ ज्यादा नहीं चाहिए होता, जैसा कि वीना कहती हैं, “ न तो इन्हें ज्यादा जगह की जरुरत होती है और न ही ज्यादा पानी की। यह दिखने में बेहद ही खूबसूरत होते हैं।”
जीतीं कई प्रतियोगिताएं और पुरस्कार
वीना का परिचय मिनी प्लांट की इस दुनिया से करीब 25 साल पहले हुआ था। वीना शादी के बाद मुंबई की भीड़-भाड़ वाली गलियों में शिफ्ट हो गई थीं। वह बताती हैं, “भारत के जाने-माने बोनसाई कलाकार ज्योति और निकुंज मेरे पड़ोस में ही रहते थे। मैंने उनसे इस आर्ट को सीखने का फैसला कर लिया।” ज्योति और निकुंज के सानिध्य में रहते हुए पहले उन्होंने बोनसाई आर्ट से जुड़ा बेसिक कोर्स किया और बाद में एडवांस।
इस बीच वह बेंगलुरु शिफ्ट हो गईं। यहां से उन्होंने अपने जुनून को आगे बढ़ाया। पौधों से उनका लगाव और उनके साथ काम करने का शौक़ अब ‘फल’ देने लगा था। साल 1999 से उन्होंने लगातार पांच सालों तक लालबाग बोनसाई प्रतियोगिता में भाग लिया और हर बार जीत हासिल की। वीना ने बताया, “उसके बाद मैने इस कंपटीशन में भाग लेना बंद कर दिया और इस आर्ट के साथ कुछ और बड़ा करने के बारे में सोचा।”
गार्डन एक्सेसरीज के साथ फेंगशुई और लैंडस्केपिंग के अपने काम को लेकर वह कई न्यूज़ चैनल पर आईं और शोज़ भी किए। पेड़-पौधों के साथ काम करने का जुनून उन्हें काफी आगे तक ले आया है। आज उनका काम सिर्फ बोनसाई (bonsai tree) और लैंडस्केपिंग तक सीमित नहीं हैं। वीना कहती हैं, “मैं बोनसाई मेकिंग का कोर्स भी कराती हूं।” इसके अलावा वह ग्रीनस्केपिंग, हार्डस्केपिंग, गेजबॉस आदि सर्विसेज पर भी काम करती हैं।
वह, बोनसाई आर्ट को लोगों तक पहुंचाने के लिए वर्कशॉप और कोर्स भी कराती रहीं हैं। अब तक वह 500 से अधिक लोगों को यह कला सिखा चुकी हैं।
फलों के पेड़ बोनसाई के लिए होते हैं अच्छे
मुंबई से शिफ्ट होने के बाद नंदा ने तीन बोनसाई (bonsai tree) से शुरुआत की थी। तब से अब तक उन्होंने 1000 बोनसाई तैयार कर लिए हैं। अपने अनुभव से वह बताती हैं, “फलों के पेड़ बोनसाई बनाने के लिए अच्छे रहते हैं। मैंने आम, चीकू और अमरुद जैसे फल देने वाले कई पेड़ों पर काम किया है।” पिछले कई सालों में उन्होंने अनेक पेड़ों के बोनसाई बनाए हैं। चट्टान और ड्रिफ्ट्वुड जैसे कठोर सतह पर लैंडस्केपिंग करने में भी वह माहिर हैं।
Bonsai Tree को लेकर कुछ लोगों के रवैये पर टिप्पणी करते हुए वीणा कहती हैं, “बोनसाई को लेकर अंधविश्वास एक ऐसा मसला है, जिसका सामना मैंने पहले भी किया है और आज भी यह अक्सर मेरे सामने आ जाता है। कई लोगों का मानना है कि बौने पेड़ यानी बोनसाई दुर्भाग्य लाते हैं। अगर ऐसा होता तो जापान सड़क पर होता! यहां तो हर दिन ज्यादा से ज्यादा लोग इस आर्ट को सीख रहे हैं।”
कम खर्च में सीखें कमाल की कला
लैंडस्केपर वानी के अनुसार, “बागवानी अब सिर्फ लड़कियों का शौक़ नहीं है। शुरू में मेरे पास बागवानी सीखने आने वाले छात्रों में 80 प्रतिशत महिलाएं थीं। लेकिन आज मेरी वर्कशॉप में पुरुषों की भी अच्छी खासी संख्या है। बागवानी के बारे में सबके शौक अब खुलकर सामने आ रहे हैं।”
बोनसाई एक ऐसी कला है, जिसके लिए निरंतर अभ्यास और धैर्य दोनों की जरूरत है। वह कहती हैं, “बोनसाई बनाने की इस खूबसूरत सी कला को सीखने के लिए आपको मामूली सी रकम खर्च करनी होगी और मुझे लगता है कि हर किसी को उसे एक बार सीखने की कोशिश जरुर करनी चाहिए।”
मूल लेखः रिया गुप्ता
संपादनः अर्चना दुबे
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