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हरियाणा में भिवानी के ढाणी माहू के रहनेवाले, सुमेर सिंह एक प्रगतिशील किसान हैं। पिछले छह सालों से जैविक तरीकों से खेती कर रहे सुमेर सिंह न सिर्फ खुद अच्छा खा और कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। हर बार अपने खेतों में नए-नए प्रयोग करने वाले सुमेर सिंह खुद को 'बावला जाट' कहते हैं और उनका सिर्फ एक ही उद्देश्य है, ज्यादा से ज्यादा लोगों को जैविक खेती और खान-पान से जोड़ना।
सुमेर सिंह ने 1999 से खेती शुरू की। अन्य किसानों की तरह सुमेर सिंह भी पहले खेतों में रासायनिक खाद आदि का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने बताया, "मैंने 10वीं तक की पढ़ाई की है। पहले जब हम कपास की खेती करते थे, तो खेतों में दवाई छिड़कनी होती थी। दवाई की वजह से खेत को तो नुकसान होता ही था, हम लोगों को भी दिक्कत होने लगती थी। बाद में मुझे जैविक तरीकों से खेती कर रहे कुछ किसानों का मार्गदर्शन और सहयोग मिला। हमारे इलाके की मिट्टी बहुत अच्छी नहीं है और पानी की भी समस्या रहती है। लेकिन फिर भी मैंने जैविक खेती की शुरुआत कर दी।"
सुमेर सिंह अब अपनी 14 एकड़ जमीन में जैविक तरीके से गेहूं, चना, दलहन और सरसों की खेती कर रहे हैं। इस बार उन्होंने जैविक मल्चिंग से अपनी एक एकड़ जमीन पर प्याज की खेती की शुरू की है।
कैसे की प्याज की जैविक खेती
सुमेर सिंह ने बताया कि प्याज की खेती के लिए सबसे पहले उन्होंने अपनी एक एकड़ जमीन पर बेड तैयार किया। फिर दिसंबर के महीने में प्याज की बुवाई की। बुवाई करने के चार-पांच दिन बाद, उन्होंने मल्चिंग की। लेकिन मल्चिंग के लिए उन्होंने एक अलग तरीका अपनाया। इसके बारे में उन्होंने बताया, "सामान्य तौर पर लोग मल्चिंग के लिए प्लास्टिक शीट का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन मैंने प्राकृतिक तरीका अपनाया। मैंने इसके लिए पराली खरीदी और इसे छोट-छोटे टुकड़ों में काटा। इन्हीं टुकड़ों से मैंने प्याज की मल्चिंग की।"
पराली की मल्चिंग के कारण, मिट्टी में अच्छी नमी बनी रही और इस कारण, उन्होंने फसल के लिए जो 'गौअमृतम बैक्टीरिया कल्चर' डाला था, उसने भी अच्छा काम किया। वह कहते हैं कि पराली की मल्चिंग से खेतों में नमी ज्यादा समय तक रही और इस कारण, उन्हें सिंचाई भी कम करनी पड़ी। लगभग दो-तीन हफ्ते पहले उन्होंने अपनी प्याज की फसल की कटाई शुरू की है।
उन्हें एक एकड़ से लगभग 80 क्विंटल प्याज का उत्पादन मिला है। वह कहते हैं, “एक एकड़ में मल्चिंग के लिए, लगभग पांच एकड़ की पराली काफी होती है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे पराली को जलाएं नहीं, बल्कि अपने खेतों में ही प्रयोग में ले लें।”
प्याज को स्टोर करने का अनोखा तरीका
सुमेर सिंह ने प्याज को स्टोर करने का अनोखा और किफायती तरीका निकाला है। उन्होंने खेत में बनाए शेड में प्याज को केले की तरह कपड़े की रस्सियों से बांधकर लटका दिया है। वह कहते हैं, "जब प्याज को बोरियों में भरकर रखा जाता है, तो बहुत-से प्याज नीचे दबने के कारण और गर्मी के कारण खराब हो जाते हैं। अगर एक प्याज भी बोरी में खराब हो जाए, तो दूसरे प्याज भी खराब होने लगते हैं। लेकिन हमने जो तरीका अपनाया है, उसमें प्याज के खराब होने की संभावना नहीं के बराबर है। अगर कोई प्याज खराब हो भी जाता है, तो आपको पता चल जाएगा और आप इसे आराम से बाहर निकाल सकते हैं।"
सुमेर सिंह ने सबसे पहले प्याज की कटाई के बाद, कुछ प्याजों को साथ में बाँधा और फिर शेड में रस्सी लगाकर इन्हें लटका दिया। उनका कहना है, “आपको इन्हें बिल्कुल वैसे लटकाना है, जैसे दूकानदार केलों को लटकाकर रखते हैं। इससे इन्हें हवा लगती रहेगी और ये कई महीनों तक सुरक्षित रहेंगे।” हालांकि, इस बार उन्होंने कुछ क्विंटल प्याज, एक्सपेरिमेंट के तौर पर लटकाया है ताकि वह देख सकें कि क्या इस तरीके से प्याज साल-डेढ़ साल तक सुरक्षित रह सकते हैं?
पंजाब के जैविक किसान, अमृत पाल धारीवाल कहते हैं, "जिस तरीके से सुमेर सिंह ने प्याज को स्टोर किया है, उसमें प्याज तीन-चार महीने से ज्यादा समय तक सुरक्षित रह सकते हैं। फिर जैसे-जैसे प्याज सूखने लगे, तो आप इसका बाहरी छिलका हटा दें और फिर लटका दें। इस तरह आप इसे सालभर भी रख सकते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने इसमें किसी रसायन का इस्तेमाल नहीं किया है।"
बात अगर मार्केटिंग की करें, तो वह कहते हैं कि अब तक उन्होंने लगभग 25 क्विंटल प्याज बेचे हैं, जिसे उन्होंने पहले 25 रुपए/किलो बेचा और अब 35 रुपए किलो के हिसाब से बेच रहे हैं। वह कहते हैं कि प्याज लगाने की उनकी लागत 50-55 हजार रुपए रही थी। अब तक हुई प्याज की बिक्री से, वह अपनी लागत निकाल चुके हैं और अब अच्छी कमाई कर रहे हैं।
उनके खेतों से नियमित रूप से प्याज खरीदनेवाले, सुख दर्शन कहते हैं, "पिछले काफी समय से हम सुमेर जी से ही सब्जियां खरीद रहे हैं। इस बार उन्होंने प्याज लगाई, तो वह भी हम उनसे ही लेते हैं। उनके जैविक प्याज में और बाजार से लिए प्याज में जमीन-आसमान का फर्क है। खाने में स्वाद होने के साथ-साथ, हम खरीदने के बाद इसे लंबे समय तक रख भी पा रहे हैं।"
सुमेर सिंह कहते हैं, “खेती से जुड़े सभी कामों में रिस्क है, चाहे वह जैविक हो या रसायनिक। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किसान भाई, कोई नया प्रयोग न करें या फिर आगे न बढ़ें। मैं सभी किसानों से अपील करता हूँ कि वे जैविक खेती को अपनाएं।”
अगर कोई किसान भाई जैविक तरीके से प्याज और अन्य फसलों की खेती के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं, तो सुमेर सिंह से 99916 34300 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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