कृषि में हरे सोने के नाम से जाना जाता है शैवाल, जिसकी मांग आज दवाई से लेकर ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में काफी ज्यादा है। एक वक्त था जब आम लोग ही नहीं किसान भी इस सुपरफूड और इसके गुणों से अंजान थे, लेकिन हिम्मत करके एक महिला किसान ने 10 साल पहले इसे उगाना शुरू किया और आज इसे देश के 1200 से ज्यादा किसानों के बीच लोकप्रिय बना दिया।
कम निवेश और कम देखभाल में ज़्यादा मुनाफ़े के लिए मोती की खेती कर रहे अजमेर, रसूलपुरा गांव के 41 वर्षीय रज़ा मोहम्मद ने प्रयोग के तौर पर एक छोटी सी शुरुआत की थी, लेकिन आज वह इससे लाखों कमा रहे हैं।
कभी मज़दूरी करने वाली गोरखपुर की कोइला देवी आज एक सफल महिला किसान बन चुकी हैं। बाक़ी किसानों को खेती की बारीकियां समझती हैं और अन्य महिलाओं की भी मदद कर रही हैं।
गांव की आम महिला पहले 'साइकिल चाची' बनी फिर 'किसान चाची' (Kisan Chachi) और तय किया पद्म श्री तक का सफर। मुजफ्फरपुर के सरैया की रहनेवाली राजकुमारी देवी आज कई महिला किसानों के लिए प्रेरणा हैं।
पंजाब के 65 वर्षीय प्रेमचंद पिछले 40 वर्षों से गन्ना (Sugarcane farming), आलू, गेहूं और बीट जैसे फसलों की खेती कर रहे हैं। अपने खेत में वह तीन तरह के गुड़ बनाते हैं, जिससे उन्हें डेढ़ गुना अधिक कमाई हो रही है।
भोपाल, मध्यप्रदेश के रहने वाले मिश्रीलाल राजपूत को, पिता की पारम्परिक खेती में कोई दिलचस्पी नहीं थी। यही कारण है कि वह, खेती में नए-नए प्रयोग करने लगे। इन प्रयोगों से न सिर्फ उनकी आय बढ़ी, बल्कि दूसरे किसानों को भी प्रेरणा मिली।
पहले जहां पारंपरिक खेती से घर का गुजारा मुश्किल से चलता था, वहीं आज अपनी मेहनत और कुछ नए प्रयासों की बदौलत लाखों कमा रहे हैं, महाराष्ट्र के प्रगतिशील किसान तुकाराम गुंजल।
राजस्थान के एटॉमिक पावर स्टेशन में एक ठेकेदार के तौर पर काम करनेवाले, एस शिवगणेश ने 2010 में नौकरी छोड़कर किसानी करने की ठानी। अब वह एक सफल किसान हैं। खेती में Intercropping से उन्हें सालाना 16 लाख रुपये की कमाई हो रही है।