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बीटेक की डिग्री पा कर नौकरी कर रहे राकेश महंती को महसूस होने लगा था कि इस नौकरी से उन्हें पैसा तो मिल रहा है पर संतोष नहीं। काफी विचार के बाद आखिरकार उन्हें समझ आया कि इस नौकरी को छोड़ कर उन्हें वो काम करना चाहिए जिसमें उनकी रुचि थी और उन्होंने वही किया।
महंती की 20 एकड़ पुश्तैनी ज़मीन अनाथ पड़ी हुई थी और शायद इंतज़ार कर रही थी ऐसे वारिस का, जो अपने पसीने से इसकी खोई हरियाली वापस ला दे। इस वारिस ने अपनी भूमि को निराश नहीं होने दिया। राकेश अपने बड़ों द्वारा छोड़ दिये गए व्यवसाय को फिर से शुरू करने तो आए ही, साथ ही झारखंड के पटमदा ब्लॉक के किसानों के लिए राहत भी लाये।
साल 2017 में उन्होंने अपना सोशल एंटरप्राइज ‘ब्रूक एन बीज़’ के नाम से शुरू किया, जो मूल रूप से सामुदायिक कृषि की धारणा पर काम करता है। राकेश स्थानीय किसानों के साथ मिल कर जैविक फसल उगाते हैं। राकेश और ये किसान भूमि, संसाधन, उपकरण, ज्ञान, मेहनत व मशीन एक दूसरे के साथ बांटते हैं।
द बेटर इंडिया को राकेश बताते हैं, “ मैं ग्रामीण क्षेत्र में पला बढ़ा हूँ, और मैं अपने गाँव के मौसम के बदलाव, पानी की कमी, रसायनयुक्त भोजन, कम उत्पादन जैसी समस्याओं से भली भांति परिचित हूँ। मैं जानता था कि मैं किसानों को समाजिक व आर्थिक रूप से आगे बढ़ाना चाहता हूँ। साथ ही, मैं अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं था। इसलिए मैं वापस अपने गाँव आया और खेती करने लगा। मेरी असल योजना कुछ दिनों तक खेती करने की थी पर समस्याओं को जानने के बाद मैंने यहीं रहने का फैसला ले लिया”।
आज करीब 80 स्थानीय किसान ‘ब्रूक एन बीज़’ से जुड़ कर 50 एकड़ ज़मीन पर काम कर रहे हैं। जिनमें उनकी खुद की ज़मीन के साथ ही राकेश की ज़मीन भी शामिल है। इन किसानों को हर माह निश्चित वेतन के साथ ही लाभ का 10 प्रतिशत दिया जाता है। इसके साथ ही, उन्हें अपने उत्पादों को बेचने या मंडी तक पहुंचाने के खर्च के बारे में भी चिंता नहीं करनी पड़ती।
किसानों की मदद और उनके जीवन में बदलाव
अपने परिवार व स्थानीय किसानों से पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद राकेश ने कृषि के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने अपने 0.33 एकड़ ज़मीन के साथ खेती की शुरुआत की। भारत भर में उन्होंने अनेक एजेंट से बीजों के लिए संपर्क किया और टमाटर, ब्रोकोली, तोरी जैसे सब्जियों के 30 क़िस्मों के पौधे लगाए। रासायनिक उर्वरकों के बदले उन्होंने गोबर, फसल अपशिष्ट और केंचुओं से वर्मिकंपोस्टिंग द्वारा जैविक खाद तैयार की।
अगले 2 सालों तक राकेश नें अपनी तकनीक को पुख्ता किया, जिसके बाद सहभागिता के लिए स्थानीय लोगों से संपर्क करना आरंभ किया। तब वह इस बात से अवगत नहीं थे कि इनके प्रस्ताव की निंदा की जाएगी।
राकेश बताते हैं, “ चूंकि ज़्यादातर किसानों के पास छोटे खेत थे इसलिए वे उच्च पैदावार के लिए प्रचुर मात्रा में कीटनाशकों का इस्तेमाल किया करते थे। इसके साथ ही अनियमित आय ने कुछ किसानों को, खेती छोड़ मजदूरी का काम ढूँढने के लिए शहर जाने को मजबूर कर दिया था।”
राकेश ने अपने काम में बदलाव किया। उन्होंने निश्चय किया कि वे उन प्रवासी मजदूरों से बात कर उन्हें वापस खेती शुरू करने को मनाएंगे, लेकिन इस बार बिना रासायनिक उर्वरकों के। राकेश बताते हैं, “अपने खेतों के लिए किसान कीटनाशक कंपनियों पर निर्भर करते हैं। उन्हीं के सुझावों के हिसाब से ये किसान फसल उगाते हैं। ऐसी स्थिति में उनका यह अंधविश्वास तोड़ना कि सब्जियाँ बिना रासायनिक उर्वरकों के बढ़ नहीं सकती, एक मुश्किल काम था”।
अधिकतम रोजगार देने के लिए उन्होंने किसानों के परिवार को साथ जोड़ा। इस तरह अगर एक ही परिवार के 4 सदस्य अगर राकेश के साथ काम करेंगे तो वे 24,000 (6000रु प्रति व्यक्ति) रुपये कमा सकते हैं। जैसा संथाल समुदाय का हेंबरोम परिवार कर रहा है। वे लोग पहले आरक्षित वनों पर निर्भर किया करते थे। पर वन संबधित कड़े कानून के कारण इस परिवार के पास अपने निर्वाह के लिए कोई विकल्प नहीं बचा था। 2 साल पहले ब्रूक एन बीज़ ने इन्हें विकल्प दिया। 19 वर्षीय किशुन हेंबरम बताते हैं, “स्थायी आय ने हमारी आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद की है। एक ओर जहां मेरी माँ व बहन चावल निकलाने की प्रक्रिया पर काम करतीं हैं, वहीं मैं और मेरे पिताजी खेतों में काम करते हैं”।
इसके अलावा किसानों को अपनी मेहनत के फल के रूप में बेहतर आय मिलती है। साथ ही, कार्य-अवधि कम होने के कारण इनके पास खाली समय भी बच पाता है। जहां अन्य खेतों में लगातार 10 घंटे काम करना अनिवार्य हो जाता है वहीं ब्रूक एन बीज़ में किसान 6-7 घंटे ही काम करते हैं।
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स्वदेशी व विदेशी फसलों की खेती
टमाटर, बीन्स, स्वीटकॉर्न, कद्दू, लौकी, ओक्रा, साग, सूरजमुखी, सरसों, बाजरा से ले कर विभिन्न प्रकार के चावल जैसे काली, लाल व गोविंदभोज चावल जैसे जैविक खाद्य को ब्रुक्स एन बीज़ पूरे झारखंड में उपलब्ध करवाते है। कृषि प्रक्रिया में संरक्षित व सटीक खेती (जैसे ग्रीनहाउस, शेड नेट, नर्सरी), माइक्रो इरीगेशन (टपक सिंचाई , छिड़काव ) और विभिन्न फसल पद्धति जैसे मेडागास्कर विधि, बहुस्तरीय फसल प्रणाली जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
राकेश के अनुसार हर प्रक्रिया अपने आप में फायदेमंद है। जहां ड्रिप इरिगेशन पानी की खपत को 55 प्रतिशत कम करता है, वहीं पलवार वाष्पीकरण को रोक पानी की कमी होने नहीं देता। इसी तरह बहुपरत खेती में पैदावार अधिक होती है साथ ही एक ही स्थान पर कई तरह की फसल उगाई जा सकती है।
इसके अलावा 6 एकड़ के वाटरशेड में हर बरसात के मौसम में लाखों लीटर पानी को जमा कर लिया जाता है जिससे पानी की कमी से निपटना आसान हो जाता है।
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ डिपार्टमेंट ऑफ एग्रिकल्चर- नैशनल ऑरगनिक प्रोग्राम (USDA-NOP) और नैशनल प्रोग्राम फॉर ऑरगनिक प्रोडक्शन (NPOP, GOI) द्वारा प्रमाणित जैविक फसलों को साप्ताहिक कृषि बाज़ार, जमेशपुर की हाउसिंग सोसाइटी व व्यक्तिगत खरीददारी करने वाले लोगों को बेची जाती है, इससे “फार्म टू टेबल” धारणा को बढ़ावा मिलता है।
इस संगठन के खाद्य पदार्थ आज लोकप्रिय हो चुके हैं और पिछले साल इन्हें 8 लाख की आय हुई।कुछ माह पहले, इसका विस्तार शहरी क्षेत्र में “फार्म पाठशाला” प्रोजेक्ट के रूप में किया गया। यहां राकेश छात्रों व प्रोफेशनल्स के लिए वर्कशॉप का आयोजन करते हैं जिससे वे खेतों में रह कर खेती के बारे में जान सकें।
राकेश समझाते हैं, “ इस प्रोग्राम को स्कूली छात्रों, कॉर्पोरेट के लोगों व शहरी समुदाय के लिए बनाया गया है। इसकी पाठ्यक्रम सामाग्री में कृषिविज्ञान, पर्यावरण, खाद्य विविधता, ग्रामीण आजीविका, समुदायिक विकास व शहरी खेती पर ज़ोर दिया गया है। सरल शब्दों में, यह 'ऑन-फार्म क्लासरूम प्रोग्राम' है।”
हार नहीं मानी
जब राकेश ने अपनी नौकरी को छोड़ने का निर्णय लिया, तब उनके माँ-पिता ने उनके इस निर्णय का विरोध किया। उनकी सोच उस धारणा से जुड़ी थी, जब वे खुद किसान हुआ करते थे। और इस कारण वे समझ नहीं पा रहे थे कि पढ़ लिख कर भी उनका बेटा वह काम क्यों करना चाह रहा है, जिसे उन लोगों ने बहुत पहले छोड़ दिया था। लेकिन राकेश ने तब भी हार नहीं मानी जब अपनी सारी जमापूंजी इस व्यवसाय में लगाने के बाद किसानों ने मुँह मोड़ लिया था बल्कि, वह औरों के लिए एक उदाहरण बने। सफलता की एक कहानी और एक नयी कहानी को जन्म देती चली गयी।
सफलताओं कि अनेक सीढ़ियों में एक मुकाम वो भी रहा जब राज्य सरकार ने अपनी एक नयी तकनीक को इनके खेतों मे प्रयोग करने की अनुमति के लिए इनसे संपर्क किया। क्योंकि ये उन चुनिन्दा किसानों में से एक थे जो जैविक फसल उगा रहे थे। इसके बदले उन्हें बीजों पर सब्सिडी दी गयी जिससे फसल के चक्र को स्थिर करने में सहायता मिली।
सभी मुश्किलों का सामना कर राकेश ने अपने समुदाय में परेशान किसानों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान किये और शहरी निवासियों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए रसायन मुक्त भोजन मुहैया करवाने का माध्यम बने।
अगर आप भी राकेश महंती से संपर्क करना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें।
संपादन - अर्चना गुप्ता