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बचपन में अपने जियोलॉजिस्ट पिता के साथ रहते हुए, जम्मू के 49 वर्षीय नवजीव डिगरा को प्रकृति और पेड़-पौधों (Plantation) से एक जुड़ाव हमेशा से था। अपने पिता के साथ वह बचपन से अलग-अलग जंगलों में जाया करते थे। लेकिन मरीन इंजीनियर बनने के बाद, जब वह जहाज पर गए, तो उन्होंने प्रकृति का एक नया रूप देखा।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “जहाज पर रहते हुए मैंने जल प्रदूषण को काफी करीब से देखा है और हमारे आस-पास जिस तरह से हरियाली कम हो रही है, वह तो एक चिंता का विषय है ही।"
इसी सोच और चिंता के कारण नवजीव जहां भी जाते, वहां पौधे लगाने लगे और साथ ही लोगों को भी हरियाली फ़ैलाने (Plantation) के बारे में बताने लगे। नवजीव कोशिश करते हैें कि ज्यादा से ज्यादा स्थानीय पौधे लगाए जाएं। क्योंकि उनका मानना है कि ये स्थानीय पौधे ही हमारे ईको-सिस्टम को मजबूत कर सकते हैं।
साल 2018 में नवजीव के एक दोस्त ने उन्हें शहर का एक पार्क दिखाया, जिसे उनके दोस्त ने लीज पर लिया था। नवजीव ने जब इस पार्क को देखा, तब उन्हें इतना दुःख हुआ कि इतनी बड़ी जगह में पौधे बिल्कुल कम लगे हैं। इसके बाद, उन्होंने सरकारी अनुमति के साथ यहां पौधे लगाने का काम शुरू किया।
उनके घर से यह पार्क नौ किमी दूर है। नवजीव ने इस काम को एक मिशन के रूप में लिया और कुछ ही साल में इस जगह का रूप ही बदल दिया।
बार-बार सूख जाते थे उनके लगाए पौधे (Plantation)
वैसे तो पौधे लगाने का काम ज्यादा मुश्किल नहीं होता, लेकिन नवजीव को इस गार्डन में हरियाली फैलाने में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने जितने भी पौधे वहां लगाए, सब मर जाया करते थे और शुरुआत में इन दिक्कतों को देखते हुए वह काफी परेशान भी हुए।
बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी। बाद में कुछ स्थानीय लोगों से पूछने पर उन्हें पता चला कि जिस जगह पर पार्क बना है। वहां पहले चूना भट्टी हुआ करती थी, जिसके बाद एक बार फिर से पौधे लगाने के लिए उन्होंने मिट्टी को नीचे तक कुरेदकर चूने की परत को हटाया। फिर एक नए सिरे से यहां नई मिट्टी डाली गई और पौधे लगाने का काम शुरू किया गया।
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धीरे-धीरे उन्होंने अमरुद, सहजन, रीठा, रुद्राक्ष, आंवला, टिमरूं, पारिजात, कटहल, शम्मी जैसे 180 अलग-अलग किस्मों के पौधे लगाना शुरू किया। आज यहां 50 से ज्यादा फलों के पेड़ लगे हैं, जिसके कारण यहां कई पक्षी भी फल खाने आते हैं। उन्होंने यहां कई औषधीय पौधे भी अलग-अलग शहरों से मंगवाकर लगाए हैं।
लाखों रुपये खर्च कर शहर को दिया सुन्दर पार्क
नवजीव ने पौधे लगाने (Plantation) के इस काम को किसी माली को सौंपने के बजाय, खुद मेहनत करना शुरू किया, जिसके लिए वह स्थानीय लोगों की मदद लेते थे। पार्क की देखभाल के लिए उन्होंने दो माली को भी काम पर रखा है, जिन्हें वह खुद सैलरी भी देते हैं। फिलहाल नवजीव के दोस्त भी इस काम में उनकी आर्थिक मदद कर रहे हैं।
शुरुआत में जब नवजीव यहां अपने पैसों से पौधे लगा रहे थे, तब कई लोग उनका मज़ाक ही उड़ाते थे। वह कहते हैं, “कई लोग मुझसे कहते थे कि क्या जरूरत है सरकारी पार्क के लिए इतने पैसे खर्च करने कि लेकिन मेरे अंदर अपने शहर और पर्यावरण के लिए कुछ करने की ललक थी। इसी शहर से पढ़कर मैंने एक अच्छी नौकरी और जिंदगी हासिल की है, इसलिए मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं भी इस शहर के लिए कुछ करूं।"
अपनी इसी सोच के साथ उन्होंने अपने शहरवालों को एक सुंदर पार्क तोहफे में दिया। आज लोग यहां आकर किस्म-किस्म के पौधों की ठंडी छाव में बैठ पाते हैं। यहां इतने सारे फलों के पेड़ लगे हैं कि यह सैकड़ों पक्षियों का घर भी बन गया है। उनके इस पार्क में स्थानीय लोगों के साथ, वन-विभाग के कई लोग भी आते हैं और उनके पार्क की बढ़-चढ़कर तारीफ करते हैं।
'क्लाइमेट फ्रंट' नाम से की फाउंडेशन की शुरुआत
नवजीव ने इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए करीबन छह से सात लाख रुपये खर्च किए हैं। वह मात्र एक पार्क को हरा-भरा बनाने के बाद रुके नहीं हैं। वह अब आस-पास के गावों में जाकर, स्कूल-कॉलेजों और हर खाली जगह पर पौधे लगाने (Plantation) का काम करते हैं।
फिलहाल, वह शहर के कुछ पर्यावरण प्रेमी लोगों के साथ मिलकर 'क्लाइमेट फ्रंट' नाम से फाउंडेशन भी चला रहे हैं। नवजीव इस फाउंडेशन के डायरेक्टर भी हैं और उनका यह ग्रुप शहर में पौधा रोपण का काम करने के साथ-साथ, जंगल बचाने के लिए भी काम कर रहा है।
अपने इस प्रयास से वह, यह सन्देश देना चाहते थे कि एक इंसान अगर चाहे, तो अपनी कोशिशों से पर्यावरण में कई बदलाव ला सकता है। आशा है आपको भी नवजीव की इस कहानी से प्रेरणा ज़रूर मिली होगी। अगर हाँ, तो आप भी अपने आस-पास कुछ पौधे जरूर उगाएं।
आप नवजीव के काम के बारे में ज्यादा जानने के लिए उन्हें फेसबुक पर सम्पर्क कर सकते हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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