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एक मेट्रो शहर में किसी बड़ी टेकनिकल कंपनी में काम करना कई लोगों का सपना होता है। लेकिन कर्नाटक के एक गांव, डोनहल्ली में पली-बढ़ीं, रोजा रेड्डी का सपना यह नहीं था। एग्रीकल्चर के लिए अटूट प्रेम रखने वाली रोजा किसान बनना चाहती थीं। लेकिन यह सपना सिर्फ़ रोजा का ही था, उनके परिवार का नहीं। रोजा का परिवार जो पीढ़ियों से खेती करता आ रहा है, चाहता था कि खेतों की मिट्टी में मेहनत करने के बजाय वह शहर में अच्छी सैलरी वाली नौकरी करें।
अपने परिवार की इच्छा के अनुसार, रोजा ने बी.ई. की पढ़ाई पूरी की। जल्द ही उन्हें बेंगलुरु की एक बढ़िया कंपनी में नौकरी मिल गई। कुछ समय तक रोजा अपने सपने को किनारे कर कॉर्पोरेट जॉब करती रहीं। लेकिन 2020 में COVID-19 महामारी के आने के बाद चीज़ें बदल गईं।
कैसे हुई ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत?
लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम की वजह से वह अपने घर लौट आईं। फिर उन्होंने ऑर्गेनिक खेती शुरू करने का फैसला किया।
द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए रोजा बताती हैं कि उनके पिता और भाई फुलटाइम किसान हैं। लेकिन कुछ सालों से उन्हें खेती में भारी नुक़सान हो रहा था।
वह कहती हैं, “वे पूरी तरह से हार मानने लगे थे और मैं इस बारे में कुछ करना चाहती थी। हालांकि मेरा परिवार नहीं चाहता था कि मैं खेती करूं। लेकिन मैंने अपने खेत को ऑर्गेनिक तरीक़ों से पुनर्जीवित करने की ठान ली। ऑफ़िस का काम ख़त्म होने के बाद, शाम 4 बजे से खेत में काम करना शुरू कर दिया।”
रोजा आगे बताती हैं, “मेरे परिवार को यक़ीन नहीं था कि मैं ऑर्गेनिक तरीक़े से ज़मीन को फिर से उपजाऊ बना सकती हूं, क्योंकि वे कई सालों से केवल केमिकल फर्टिलाइज़र का इस्तेमाल कर रहे थे। यही केमिकल हमारे खेत की उपज को कम करने का सबसे बड़ा कारण थे। बहुत मेहनत के बाद, मैंने उन्हें ग़लत साबित कर दिया। ”
आज, रोजा ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और एक फुलटाइम किसान के रूप में काम करती हैं। वह 50 एकड़ की विशाल ज़मीन पर ऑर्गेनिक सब्जियां उगाती हैं। वह बताती हैं कि अब उनकी सालाना कमाई क़रीब 1 करोड़ रुपये है।
केमिकल छोड़ ऑर्गेनिक खेती क्योंज़रूरी?
रोजा बताती हैं कि जब उन्होंने 2020 में ऑर्गेनिक खेती शुरू की, तो उनके परिवार, ख़ासकर उनके पिता और भाई ने उनके फैसले का विरोध किया। रिश्तेदारों और आस-पास के लोगों ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि जब रोजा के पास एक अच्छी सैलरी वाली कॉर्पोरेट जॉब है तो उन्हें खेती करने की क्या ज़रूरत।
रोजा आगे कहती हैं, “लोगों का मानना था कि केवल केमिकल खेती से ही उन्हें बेहतर उपज मिलेगी, लेकिन यह सोच बिलकुल ग़लत थी।”
वह कहती हैं कि बड़े होते हुए उन्होंने अपने दादाजी को ऑर्गेनिक खेती करते देखा था, लेकिन उनके पिता और भाई ने इतने लंबे समय तक केमिकल का इस्तेमाल किया कि मिट्टी की क्वालिटी बहुत गिर गई, जिसका असर उपज पर पड़ा।
सूखाग्रस्त चित्रदुर्ग जिले के डोनहल्ली गाँव में 20 एकड़ के खेतों में से केवल छह का इस्तेमाल उनका परिवार अनार उगाने के लिए करता था। सिंचाई में कठिनाई होने की वजह से बाक़ी की ज़मीन का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था।
रोजा ने अपने परिवार से कहा कि वे उसे इस्तेमाल नहीं हो रही ज़मीन पर खेती करने दें। वह छह एकड़ में अपना ऑर्गेनिक सब्जी का फार्म बनाना चाहती थी।
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लोग ऑर्गेनिक खेती तकनीकों का उड़ाते थे मज़ाक
जब उन्होंने पहली बार खेती शुरू की, तो उनके रिश्तेदार, अन्य किसान, गाँव वाले और यहां तक की बागवानी विभाग के अधिकारी भी ऑर्गेनिक खेती की तकनीकें अपनाने के लिए उनका मज़ाक उड़ाते थे।
रोजा आगे बताती हैं, “मैंने इंटरनेट से ऑर्गेनिक खेती के बारे में जानने-समझने की कोशिश की और कई ऐसे किसानों से संपर्क किया जो इसे सफलतापूर्वक कर रहे हैं। उनके मार्गदर्शन से, मैं कुछ महीनों में अपना खुद का ऑर्गेनिक सब्जी फार्म बना पाई।” वह बताती हैं कि शुरुआत में उन्होंने बीन्स, बैगन और शिमला मिर्च सहित लगभग 40 अलग-अलग तरह की सब्जियां उगाईं।
उन्होंने अपनी फ़सलों के लिए ऑर्गेनिक खाद और कीटनाशक जैसे जीवामृत, नीमस्त्र, अग्निस्त्र भी बनाए।
खुद बनाई अपनी राह
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हालांकि रोजा ने साबित कर दिया कि केमिकल वाली ज़मीन को एक समृद्ध ऑर्गेनिक खेत में बदला जा सकता है, लेकिन असली चुनौती का सामना उन्हें अपनी उपज की मार्केटिंग में करना पड़ा।
रोजा कहती हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की मार्केटिंग करना इतना कठिन होगा। हालांकि मैंने सैकड़ों किलो सब्जियां उगाईं, लेकिन सब्जियों के लिए बाज़ार ढूंढना काफ़ी मुश्किल था।” वह आगे बताती हैं कि उनके गाँव और आस-पास के इलाकों के लोग ऑर्गेनिक खेती या प्रोडक्ट्स के बारे में नहीं जानते थे। वे इसकी क्वालिटी या फ़ायदों को नहीं जानते थे और इसलिए कोई ख़रीदार नहीं था।
अपनी उपज की मार्केटिंग करने के लिए रोजा पूरे राज्य में अलग-अलग जगहों पर गईं। इस बारे में बात करते हुए वह बताती हैं “मैंने अलग-अलग तालुकों में गई और पहले चित्रदुर्ग से आठ ऑर्गेनिक किसानों का एक ग्रूप बनाया। अपनी उपज के लिए बाज़ार बनाने के लिए हमें थोड़ी जगह की ज़रूरत थी, जिसके लिए हमने हर तालुक के स्थानीय अधिकारियों से बात की। हम ऑर्गेनिक सब्जियों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए घर-घर गए और उन्हें अपने बाज़ार में आने को कहा। हमने हफ़्ते में दिनों के हिसाब से अलग-अलग क्षेत्रों में अपना बाज़ार लगाना शुरू किया।”
राज्य भर के ऑर्गेनिक किसानों के शामिल होने से आख़िरकार उनका नेटवर्क बढ़ने लगा।
यह ऑर्गेनिक बाज़ार उडुपी, दक्षिण कन्नड़ जैसे दूसरे जिलों में भी पहुंच गया
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रोजा ने निसारगा नेटिव फार्म्स के नाम से अपना खुद का ब्रांड बनाया है, जो बेंगलुरु में कुछ रिटेल आउटलेट्स के साथ भी मिलकर काम कर रहा है। वह बताती हैं, “आज पूरे कर्नाटक में मेरे नेटवर्क में लगभग 500 किसान हैं। हम एक साल से राज्य भर में ऑर्गेनिक बाज़ार स्थापित कर रहे हैं। हमें बेंगलुरू जैसे शहरों से भी भारी ऑर्डर मिलने लगे हैं।”
इस तरह, साल भर के अंदर न केवल उन्होंने अपनी पारिवारिक ज़मीन को एक फलते-फूलते ऑर्गेनिक खेत में बदल दिया है, बल्कि अपनी उपज को बेचने के लिए बाज़ार और ख़रीदार भी खड़े कर दिए।
अपनी योग्यता साबित करने के बाद, वह कहती हैं कि उनके परिवार को उनके जुनून और काबिलियत पर भरोसा हो गया था, इसलिए उन्होंने फुलटाइम किसान बनने के लिए अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी।
एक और चुनौती जो उनके सामने आई वो सिंचाई की थी। वह कहती हैं, “क्योंकि चित्रदुर्ग में सूखे की समस्या रहती है, इसलिए इस क्षेत्र में सिंचाई हमेशा कठिन रही है।”
वह बताती हैं, "ऑर्गेनिक खेती के बारे में कई अच्छी चीज़ों में से एक यह है कि इनऑर्गेनिक खेती के तरीक़ों के मुक़ाबले, इसमें बहुत कम पानी की ज़रूरत होती है। लेकिन सिंचाई का ठोंस इंतज़ाम करना तो ज़रूरी था। इसलिए अपनी ज़मीन पर तीन बोरवेल के अलावा, मैंने रेन हार्वेस्टिंग के लिए दो तालाब भी बनवाए हैं।” रोजा ने अपने खेत के लिए ड्रिप इरीगेशन सिस्टम भी सेटअप किया है।
ऑर्गेनिक खेती ने बनाया आत्मनिर्भर, पूरा किया सपना
अपने गांव में ऑर्गेनिक खेती में सबसे सफल किसान होने की वजह से, आज कई किसान इसे सीखने रोजा के पास आते हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं जिन्होंने शुरुआत में इस तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए उनका मज़ाक उड़ाया था।
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रोजा बताती हैं कि अब तक उनके गाँव के लगभग 25 किसानों ने उनसे मार्गदर्शन लिया है और ऑर्गेनिक खेती को अपनाया है। वह कहती हैं, “मैं उन्हें बिना किसी बिचौलिए के सीधे बाज़ारों में अपनी उपज बेचने में मदद करती हूं, जिससे उनकी कमाई भी अच्छी होती है।”
अब उन्होंने अपने खेत का विस्तार छह एकड़ से 50 एकड़ तक कर लिया है और टमाटर, बीन्स, गाजर, बैंगन, भिंडी, लौकी, करेला, मिर्च और खीरे की किस्मों सहित लगभग 20 तरह की सब्जियां उगा रही हैं।
रोजा रेड्डी बताती हैं, “मैं हर दिन लगभग 500 से 700 किलो सब्जियों की कटाई करती हूं और सालाना क़रीब 1 करोड़ रुपये कमाती हूं।” उन्होंने अपने खेत पर लगभग 10 ग्रामीणों को रोज़गार भी दिया है।
अधिक जानकारी के लिए निसारगा नेटिव फार्म्स से 8088064510 पर संपर्क करें।
मूल लेख - अंजली कृष्णन
संपादन - भावना श्रीवास्तव
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