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दस साल पहले मुंबई में रहने वाली एक माँ और उद्यमी, मोनिशा नारके का ध्यान पर्यावरण की ओर तब गया, जब उन्होंने इसका प्रभाव अपने बच्चे पर देखना शुरू किया। 45 वर्षीय मोनिशा याद करते हुए बताती हैं, “मेरी बेटी को लगातार खांसी रहती थी। मैं बहुत परेशान रहने लगी। मेरी बेटी की उम्र तब केवल चार साल थी और मैं उसे कोई दवा नहीं देना चाहती थी। इसकी बजाय मैं ऐसा कुछ करना चाहती थी जिससे एक बार में ही समस्या का समाधान निकल जाए।”
यह जानते हुए कि वायु प्रदूषण और कई बार एलर्जी, खांसी का मुख्य कारण होता है, एक माँ के तौर पर मोनिशा ने इन दोनों विषयों पर जानकारी हासिल करना शुरू किया। उन्होंने पाया कि इसके पीछे जो सबसे मुख्य वजह है वह है कचरा डंप करना और उसे जलाना। फिर उन्होंने महसूस किया कि इस समस्या को घर पर हल किया जा सकता है।
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उन्होंने बताया, “कचरे को जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है और हवा में पार्टिकुलेट मैटर के स्तर में वृद्धि होती है जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। मुझे एहसास हुआ कि यह निश्चित रूप से रोका जा सकता है और मुझे पता था कि बदलाव का पहला कदम घर से शुरू होना चाहिए।”
और फिर, मोनिशा ने घर पर जमा होने वाले कचरे को अलग करना शुरू किया। उन्होंने कुछ लोगों और संगठनों से संपर्क किया जो कचरे से खाद बनाने जैसी प्रक्रिया में शामिल थे। मोनिशा ने इस संबंध में उन सबसे जानकारी हासिल की।
बड़े उत्साह के साथ मोनिशा बताती हैं, "अपनी पहली खाद से मैंने अपने खुद के घर में खरबूजा उगाया। मैं प्रकृति के जादू को देखकर उत्साहित थी और फिर मैंने सोचा अगर घर पर इस तरह के छोटे कचरे को रीसाइकल करने से इतने बड़े पैमाने पर लाभ मिल सकता है, तो अगर कई घरों में रीसाइक्लिंग को अपनाया जाए तो क्या परिणाम होंगे। "
मोनिशा ने फिर अपनी बेटी के स्कूल में पढ़ाई कर रही स्टूडेंट्स की माताओं से बात की। उन सभी की चिंता भी मोनिशा जैसी ही थी। इन सभी महिलाओं ने एक साथ मिलकर 2009 के मध्य में एक स्वयंसेवक समूह का गठन किया। समूह का नाम था आरयूआर यानी ‘आर यू रिड्यूसिंग, रियूज़िंग, रिसाइक्लिंग?'
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यह संगठन पिछले 10 सालों से काम कर रहा है और इसका ज़बरदस्त प्रभाव देखने मिला है। मोनिशा ने बताया कि आरयूआर सालाना 750 टन से अधिक कचरा रीसायकल करता है और साल में 80 टन से ज़्यादा CO2 कम करता है।
उन्होंने अपनी वर्कशॉप के माध्यम से 30 लाख से अधिक लोगों को शिक्षित किया है, करीब 100 साइटों में अपने बायो-कंपोस्टर्स स्थापित किए हैं और 200 से ज़्यादा इकाइयां बेची है।
एक स्वयंसेवी पहल से एक सामाजिक उद्यम तक
पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ किए जा रहे काम को लोगों तक पहुंचाने के लिए आरयूआर के सदस्यों ने कई रास्ते अपनाए। उन्होंने नियमित रूप से खाद और अन्य हरी प्रथाओं पर इको-बाज़ार, पर्यावरण-जागरूकता वर्कशॉप का आयोजन किया, जिसे घर पर अपनाया जा सके। मोनिशा यह भी देखती थी कि शहर भर में कचरे का निपटारा कैसे किया जा रहा है और साथ ही लैंडफिल साइटों का निरीक्षण भी करती थी। ऐसी ही एक साइट मुम्बई में स्थित एशिया का सबसे बड़ा डंपिंग ग्राउंड - देवनार लैंडफिल है।
उन्होंने बताया, “कचरे के ढेर को देखते हुए, हमने महसूस किया कि हमें स्रोत पर बायोडिग्रेडेबल कचरे को रीसायकल करने के लिए सरल, नए, आकर्षक समाधान की आवश्यकता थी, ताकि कम कचरा डंप हो। "
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2010 में, मोनिशा ने अपनी जागरूकता पहल को एक सामाजिक उद्यम में बदलने का फैसला किया और 2010 में आरयूआर ग्रीनलाइफ़ की स्थापना की। इसके तहत, उन्होंने विकेंद्रीकृत और टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन समाधान पर काम करना शुरू किया। मोनिशा के समूह के सदस्य खुशी-खुशी स्वयंसेवकों के रूप में कंपनी के साथ जुड़े रहे।
उद्यम ने मुंबई में हाउसिंग कम्युनिटी, स्कूलों और ऑफिसों में जागरूकता और अपशिष्ट प्रबंधन वर्कशॉप का संचालन शुरू किया।
उन्होंने टेट्रा पैक इंडिया के साथ मिलकर 'गो ग्रीन विद टेट्रा पैक' लॉन्च किया। इस प्रमुख कार्यक्रम के तहत, आरयूआर ने मुंबई भर के प्रमुख रिटेल स्टोरों जैसे सहकारी भंडार और रिलायंस फ्रेश में कलेक्शन सेंटर स्थापित किए, जहां कोई भी अपने इस्तेमाल किए गए टेट्रा पाक डिब्बे जमा कर सकता है। इन डिब्बों को बाद में कंपोजिट शीट में रीसाइकल किया जाता है, जिससे फिर बाद में स्कूल डेस्क, गार्डन बेंच, पेन स्टैंड, कोस्टर, ट्रे जैसे उपयोगी प्रोडक्ट बनाए जाते हैं।
इसके अलावा, उन्होंने एरोबिक बायो-कम्पोस्टर्स का आविष्कार किया। उन्होंने इसे डिज़ाइन किया और इन-हाउस विकसित किया। बाद में, इसे घरों, कम्युनिटी, ऑफिसों और अन्य संस्थानों में लगाया गया।
एक इंजीनियर, एक माँ और इको-योद्धा
बचपन से ही, मोनिशा इंजीनियर बनना चाहती थी। मोनिशा बताती थी, “मेरे पिता एक इंजीनियर थे, जो अपनी कंपनी चला रहे थे और मेरा भाई भी एक इंजीनियर था। मैं अक्सर अपने पिता के कारखाने का दौरा करती थी और सीखने की कोशिश करती थी कि विभिन्न मशीन कैसे काम करती हैं।”
1992 में, मोनिशा ने मुंबई के वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (वीजेटीआई) में दाखिला लिया और इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। 1996 में अपनी डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने यूएस में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग और इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर करने का फैसला किया।
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1998 में, उन्होंने कैलिफ़ोर्निया में एक आईटी कंपनी, सन माइक्रोसिस्टम के साथ काम करना शुरू किया। करीब दो साल बाद, वह मुंबई लौट आईं और क्लैन्ज़ाइड्स कॉन्टामिनेशन कंट्रोल के साथ जुड़ी। इस कंपनी की स्थापना उनके पिता ने 1979 में की थी।
यह कंपनी फार्मास्युटिकल और बायोटेक सेक्टर में अन्य कंपनियों के लिए उपकरण तैयार करती है। यहां, मोनिशा टेक्नोलोजी डेवल्पमेंट मैनेजमेंट देखती थी। एक बार जब वह पूरी तरह से आरयूआर की गतिविधियों में शामिल हो गई, तब उन्होंने नौकरी छोड़ दी और आरयूआर के संचालन को और आगे तक ले जाने की दिशा में काम करना शुरू किया।
‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’
आरयूआर के सामाजिक उद्यम बनने के बाद जब मोनिशा ने पहली बार इसका संचालन शुरू करने का फैसला किया तब उन्हें एहसास था कि वह यह काम अकेले नहीं कर सकती हैं। इसलिए, उन्होंने दो लोगों को काम पर रखा, एक जो विभिन्न परियोजनाओं के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार था और दूसरा जो प्रोडक्ट डिजाइन में उनकी मदद कर सके।
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उनकी टीम ने कॉरपोरेट्स, शैक्षणिक संस्थानों और हाउसिंग कॉम्प्लेक्स परिसरों के लिए वर्कशॉप आयोजन करने में भी उनकी मदद की। उनके लिए, उस समय यह राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत था।
इस दौरान,यह समझने के लिए कि बड़े पैमाने पर रीसाइक्लिंग कैसे काम करती है, मोनिशा ने काफी ज़मीनी काम किया और इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से जुड़ने के लिए बहुत सारे कान्फ्रेंस में भी शामिल हुई। उन्होंने विभिन्न प्रकार की रीसाइक्लिंग इकाइयों पर रिसर्च भी किया और यह जानने के लिए भी काफी इच्छुक थी कि टेट्रा पैक का रीसायकल कैसे किया जाता है।
उन्होंने याद करते हुए बताया कि, “मैंने सीखा कि कैसे रीसायकल किए गए टेट्रा पैक डिब्बों को रीसायकल करके कम्पोज़िट शीट्स का उत्पादन किया जा सकता है। मैंने पाया कि इन कम्पोज़िट शीट्स का इस्तेमाल ऑटो के अंदर सीट बनाने और कई अन्य चीजें बनाने के लिए किया जा सकता है।
अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए, उन्होंने वापी में एक रीसाइक्लिंग सेंटर का दौरा करने का फैसला किया, जो इन टेट्रा पेक डिब्बों को रीसायकल करता था। उन्होंने वहां टेट्रा पैक टीम के साथ मुलाकात की और महसूस किया कि कंपनी डिब्बों का रिसायकल का काम आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है। दोनों के लक्ष्य समान थे - जलवायु प्रभाव को कम करना।
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मोनिशा ने बताया, “हमें एहसास हुआ कि टेट्रा पैक डिब्बों की रीसायकल के बारे में जागरूकता फैलाने का एक तरीका कलेक्शन सेंटर स्थापित करना है।‘गो ग्रीन विथ टेट्रा पैक’ कार्यक्रम 2010 में शुरू किया गया था और यह टेट्रा पैक, आरयूआर ग्रीनलाइफ, सहकारी भंडार और रिलायंस फ्रेश के साथ एक साझेदारी सहयोग है। ”
मुंबई में, उनके पास वर्तमान में दुकानों पर 44 ऐसे सार्वजनिक कलेक्शन सेंटर हैं और सोसाइटी, स्कूलों, आफिसों और अन्य संस्थानों में 180 निजी कलेक्शन सेंटर हैं। उन्होंने पुणे के रिलायंस फ्रेश स्टोर्स में पांच ऐसे सेंटर स्थापित किए हैं। इन डिब्बों को रीसाइक्लिंग इकाइयों में भेजने और कंपोजिट शीट्स में बदल देने के बाद, आवश्यकता के आधार पर, आरयूआर इसमें से कुछ वापस खरीदता है।
गुजरात में उनकी ऊबरगाँव सेंटर में इन शीट्स से कई छोटे उत्पाद बनाए जाते हैं जैसे पेन स्टैंड, कोस्टर, फोटो फ्रेम और यहां तक कि बेंच भी।
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2012 में, ‘गो ग्रीन विद टेट्रा पैक’ के तहत, ‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’ अभियान शुरू किया गया था, जहां इस्तेमाल किए गए टेट्रा पैक डिब्बों को रीसायकल कर बेंच बनाए गए और सरकारी स्कूलों में दान दिए गए।
इसी तरह, उन्होंने ‘बिन से बेंच तक’ अभियान भी शुरू किया, जिसमें इसी कंपोजिट शीट का इस्तेमाल करते हुए बगीचे की बेंच बनाए गए। इस पहल ने काफी गति प्राप्त की है और जनता के बीच इसकी लोकप्रियता ने कोलाबोरेशन को करीब 150+ गार्डन बेंच और 260+ स्कूल डेस्क दान करने में मदद की है।
इनमें से एक ऐसा ही स्कूल मुंबई के बांद्रा में स्थित सुपारी टैंक म्यूनिसिपल स्कूल था। स्कूल के हेडमास्टर माधुरी फ्रांसिस डिसूजा ने बताया कि उन्हें 2018 में 10 डेस्क मिले थे।
54 वर्षीय डिसूजा बताती हैं कि, यह देख कर कि टेट्रा पैक को रीसायकल कर क्या बनाया जा सकता है, बच्चे इसे अब जमा करने के लिए ज़्यादा सक्रिय हो गए हैं। वह बताती हैं, “बच्चे बहुत ज़्यादा प्रेरित हैं। प्रत्येक छात्र यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें कम से कम एक या दो इस्तेमाल किए गए टेट्रा पैक कार्टन मिले। उनके द्वारा फैलाई गई जागरूकता से बच्चों की मानसिकता पूरी तरह से बदल गई है। ”
साथ-साथ बदलाव की ओर
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पेशे से इंजिनियर और दिल में कुछ नया करने की चाहत लिए मोनिशा जैव-खाद भी विकसित करना चाहती थी और अपनी इस ख्वाहिश को साकार करने के लिए उन्होंने 2014 से 2016 के बीच इसी मुद्दे पर काम किया।
मोनिशा बताती हैं, “खाद बनाने के अपने अनुभव से, मुझे पता था कि लोगों को किन मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। अभी जो पारंपरिक सिस्टम उपलब्ध हैं, उनमें ज़्यादा मेहनत लगती है, गन्दगी फैलती है और बहुत ज़्यादा गंध उत्पन्न करती हैं। मैंने महसूस किया कि लोगों को ऐसी तकनीक की ज़रूरत थी जो इस्तेमाल में आसान हो।”
आरयूआर ने जैव-खाद का अपना पहला मॉडल 2016 में लॉन्च किया और इसे इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल एंड कॉन्फिड्रेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) द्वारा प्रमाणित किया गया। इसे एरोबिक आरयूआर ग्रीनगोल्ड बायो-कम्पोस्टर (RGGC) नाम दिया गया और यह प्रति दिन 800 ग्राम से 200 किलोग्राम के बीच बायोडिग्रेडेबल वेट किचन वेस्ट को कम्पोस्ट करता है और यह XS, S, M, L मॉडल के साथ उपलब्ध है। RGGC-XS मॉडल की कीमत लगभग 15,000 रूपये है जबकि RGGC-L मॉडल की कीमत 62,000 रूपये प्रति यूनिट है। वर्तमान में उन्होंने इसे 100 साइटों पर स्थापित किया है और वार्षिक रखरखाव सेवाएं भी प्रदान करते हैं।
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मुंबई स्थित सामाजिक सेवा क्षेत्र की सलाहकार 46 वर्षीय रुक्मिनी दत्ता के अपार्टमेंट परिसर में आरयूआर के जैव-कम्पोस्टर सिस्टम स्थापित हैं। कॉम्प्लेक्स में लगभग 21 घर हैं और वे पिछले साल अक्टूबर से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
ज़ीरो वेस्ट लाइफस्टाइल में विश्वास रखने वाली दत्ता कहती हैं, "जब तक कोई समस्या ना हो, तब तक लोग कदम नहीं उठाते हैं और शायद यही वजह है कि लोग पर्यावरण के मुद्दों के बारे में ज़्यादा सतर्क नहीं हैं। लेकिन, मुझे खुशी है कि आरयूआर, खाद बनाने के बारे में जागरूकता लाने में सक्षम है।"
इनके द्वारा बनाई गई खाद का इस्तेमाल उनके परिसर में बागवानी और वहां रहने वाले परिवार वालों द्वारा भी किया जाता है।
जरूरी है फिट रहना
मोनिशा का मानना है कि एक व्यस्त दिन के लिए हर किसी को फिट रहने और पूरी ऊर्जा की ज़रूरत होती है। इसलिए, वह हर सुबह टेनिस खेलती है, जिसके बाद वह नाश्ता खाती है और अपने बच्चों के लंचबॉक्स तैयार करती है।
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वह फिर दिनचर्या की योजना बनाती है और अपने और अपनी टीम के काम तय करती हैं। कई दिन वह कंपोस्टिंग साइटों पर जाती है या जागरूकता बढ़ाने के लिए वर्कशॉप का आयोजन करती है। वह नियमित रूप से परिचालन की देखरेख करने के लिए कारखाने का दौरा करती है।
हालांकि, उद्यमी के रूप में यह सफर उनके लिए आसान नहीं रहा है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
वह विस्तार से बताती हैं, "लोगों को एहसास नहीं है कि नगरपालिका निकाय जो आपके कचरे को इकट्ठा करते हैं, उस कचरे का निपटारा ठीक से किया जाता है या नहीं। लेकिन चूंकि, कचरे को उनके दरवाजे पर से इकट्ठा किया जाता है, इसलिए यह उनके पास केंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल के लिए आसान तरीका है। वे अपने स्वयं के कचरे का प्रबंधन करने के लिए थोड़ा और आगे नहीं जाना चाहते हैं।"
लेकिन इस चुनौती से निपटने के लिए, मोनिशा ने ’ग्रीन चैंपियन’ की एक टुकड़ी का गठन किया, जो मूल रूप से ऐसे लोग हैं जो उन्हें वर्कशॉप के माध्यम से मिलते हैं। मोनिशा बताती हैं, “वे आपके कचरे को अलग करने, पुन: उपयोग, खाद और रीसाइक्लिंग के महत्व जैसे मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाते हैं।”
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छोटे व्यवसायियों के लिए सलाह
“छोटे व्यवसाय करने वालों को अपने कर्मचारियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाना चाहिए और उन्हें कचरे को कम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। अपने ऑफिस में और आस-पास हरे पौधों को उगाएं और ऑफिस के भीतर कचरा अलग करना और उनका प्रबंधन करना शुरू करें।"
क्या है आरयूआर की योजना?
मोनिशा ने बताया कि वे वर्तमान में बड़े पैमाने पर खाद बनाने के मॉडल पर काम कर रही हैं। वह एक तकनीक पर काम कर रही हैं जिससे नागरिकों के लिए स्रोत पर खाद बनाना आसान होगा और इससे कचरा कम होगा।
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अंत में मोनिशा कहती हैं, “हमारी विज़न विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन समाधानों के लिए वन स्टॉप सल्यूशन बनना है। हम चाहते हैं कि भारत भर में 200 से अधिक कंपोस्टिंग प्रोजेक्ट्स हों, ताकि लैंडफिल तक कम कचरा जाए। हमें उम्मीद है कि तैयार खाद का इस्तेमाल शहरों में ग्रीन कवर बढ़ाने और हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जाता है। हम अपनी परियोजनाओं के माध्यम से पर्यावरण सुधार में योगदान देना चाहते हैं।"
रैपिड फायर
* एक उद्यमी जिसकी आप प्रशंसा करती हैं।
उत्तर: बागित की संस्थापक नीना लेखी
* नई तकनीक जो छोटे व्यवसायों के भविष्य को बदल सकती है
उत्तर: डेटा एनालिटिक्स
* एक मूल्य जो छोटे व्यवसायों को बढ़ने में मदद कर सकता है
उत्तर: स्थिरता
* आपकी पसंदीदा पुस्तक
उत्तर: Siddhartha by Herman Hesse
* ख़ाली व़क्त में क्या करती हैं
उत्तर: टेनिस खेलना, तैराकी करना, योगाभ्यास करना, बागवानी करना और ट्रेक करना
* इस साक्षात्कार से पहले आपकी स्थिती
उत्तर: उत्साहित!
* एक चीज़ जो कॉलेज में नहीं पढ़ाया गया लेकिन व्यवसाय में महत्वपूर्ण है
उत्तर: जुनून
* एक सवाल जो मैं लोगों को काम पर रखने से पहले पूछती हूं
उत्तर: हरित पर्यावरण के लिए आप क्या करते हैं।
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