बेंगलुरु से 75 किलोमीटर दूर स्थित खूबसूरत ढेंकनी फार्मस्टे, प्रकृति के बीच समय बिताने के लिए बेहतरीन जगह है। इस दो मंज़िला नेचुरल व ईको-फ्रेंडली कॉटेज को लड़की और स्थानीय पत्थरों से बनाया गया है।
जंगल के बीच नीलगिरी की खूबसूरत वादियों में बना 'जंगल हट' होमस्टे 1986 से मेहमानों का स्वागत कर रहा है। प्रकृति के बीच रहने के अलावा यहाँ ट्रेकिंग, जंगल सफारी और बर्ड वाचिंग जैसी एक्टिविटीज़ करने भारत के अलग-अलग हिस्सों से लोग ठहरने आते हैं।
लगभग 100 साल पुराने हिमाचली काठ कुनी घर को खूबसूरत होमस्टे में बदलकर फरीदाबाद के रहने वाले देवेश जोशी अपने शहरी मेहमानों के बीच सस्टेनेबल लिविंग और ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। यहाँ आने वाले लोग प्रकृति के बीच वक़्त बिताने के अलावा कई अडवेंचरस एक्टिविटीज़ में भी हिस्सा ले सकते हैं।
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में 140 एकड़ में फैले अपने 'जिलिंग एस्टेट' की देखभाल के लिए 78 वर्षीय स्टीव लाल, भारतीय वायु सेना की नौकरी छोड़ कर वापस आ गए थे और तब से वह यहां पर लगाए अपने बाग, जंगल और जीव-जंतुओं की देखभाल कर रहे हैं।
प्रसन्ना और उनकी टीम के प्रयासों से ही शहर में चायनीज मांझे के प्रयोग पर रोक लगी और साथ ही, उन्होंने लोगों को वन्यजीव-जंतुओं के प्रति जागरूक करने के लिए भी अभियान चलाए हैं!
बड़े शहरों में अपार्टमेंट्स में रहने वाले लोगों को अंकित 'वर्टीकल गार्डनिंग' करना सिखा रहे हैं, जिससे उन्हें ताजा सब्ज़ियाँ भी मिले और घर में पड़ी बेकार प्लास्टिक की बोतलों का उचित उपयोग भी हो।
2012 में, ‘गो ग्रीन विद टेट्रा पैक’ के तहत ‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत, बेकार टेट्रा पैक को रीसायकल कर बेंच बनाया गया और ये बेंच सरकारी स्कूलों को दान दिए गए।