मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले कुणाल वैद पहले टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काम करते थे, लेकिन 2011 में झारखंड दौरे के दौरान महिला बुनकरों को हाथ से रेशम का धागा बनाते देख, उन्हें कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली।
अनुया के इस काम कि शुरूआत एक आंगनवाड़ी में टायर से बना झूला देने से हुई थी और आज वह बच्चों के पूरे प्ले स्टेशन पुराने टायर्स और अन्य बेकार की चीजों से बना रही हैं!
2012 में, ‘गो ग्रीन विद टेट्रा पैक’ के तहत ‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत, बेकार टेट्रा पैक को रीसायकल कर बेंच बनाया गया और ये बेंच सरकारी स्कूलों को दान दिए गए।