पुणे में एक सोशल एंटरप्राइज़ चलानेवाले अनीश मालपानी ने दो साल की रिसर्च के बाद, मल्टी-लेयर प्लास्टिक को रीसायकल करके ट्रेंडी सनग्लासेज़ बनाने का एक तरीका खोज निकाला है।
सुंदरबन, बंगाल के रहनेवाले डॉ. फारूक हूसैन ने गरीब लोगों का इलाज करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और आज लोग उन्हें प्यार से 'बिना पैसे का डॉक्टर' कहकर बुलाते हैं।
पहाड़ों के स्वाद को देशभर तक पहुंचाने के लिए उत्तराखंड की शशि बहुगुणा रतूड़ी ने 'नमकवाली' की शुरुआत की थी, जिसके ज़रिए वह 'पिस्यु लूण' यानी पहाड़ी नमक को सिलबट्टे पर पीसकर दुनिया भर तक ले गईं और बना दिया इसे एक ब्रांड।
गुजरात के बनासकांठा के रहने वाले धवल और जयेश नाई ने गांव में रहकर एक ऐसी अनोखी मशीन बनाई, जो चाय की टपरी पर एक साथ 15 ग्लास साफ कर सकती है। उनका आविष्कार शार्क टैंक इंडिया के मंच के ज़रिए आज देश भर में छा गया है।
Ph.d. की पढ़ाई करने के बाद वर्मीकम्पोस्ट का काम शुरू करने वाले जयपुर के डॉ. श्रवण यादव को लोगों ने कहा- डॉक्टर होकर खाद बेचोगे। आज वह हजारों युवाओं को ट्रेनिंग दे रहे हैं और खुद भी लाखों रुपये कमा रहे हैं। अपनी सफलता का श्रेय वह द बेटर इंडिया को देते हैं।
साल 2023 में पद्म श्री अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले एक कलाकर हैं, भानुभाई चितारा। 80 साल के भानुभाई और उनका पूरा परिवार 400 साल पुरानी 'माता नी पचेड़ी' कला को आज भी जीवित रखने के लिए जाने जाते हैं।
मध्य प्रदेश की बैगा आदिवासी महिला लहरी बाई को ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष' के लिए ब्रांड एंबेसडर घोषित किया गया। उनके बीज बैंक में 150 से ज्यादा दुर्लभ बीजों की किस्में मौजूद हैं।
मिलिए, वडोदरा के रेनाश देसाई से जो शहर के सबसे छोटे बिज़नेसमैन हैं। महज 10 साल की उम्र से उन्होंने Enso shoes नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया। वह हाइड्रोडीप तरीके से स्टाइलिश जूते बनाकर बेचते हैं और अपनी कमाई का 40 प्रतिशत हिस्सा जरूरतमंदों को देते हैं।