साल 2016 से प्रदीप सांगवान, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों को प्लास्टिक मुक्त बनाने की मुहिम में लगे हैं। उनकी संस्था 'हीलिंग हिमालय' के वेस्ट कलेक्शन सेंटर में आज हर दिन 5 टन कचरा जमा होता है।
उत्तराखंड की काकुली विश्वास पिछले दो सालों से दिल्ली में एक फ़ूड स्टॉल चला रही हैं, ताकि अपने एक दिव्यांग बेटे और दो बेटियों को पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बना सकें।
एक हादसे में अपने दोनों पैर खोने के बाद हैदराबाद की अर्पिता रॉय एक समय पर ठीक से चल भी नहीं पाती थीं। लेकिन आज वह कठिन से कठिन योग आसन करती हैं और दूसरों को भी सिखाती हैं।
कच्छ की रहने वाली राजीबेन वनकर प्लास्टिक वेस्ट से अलग-अलग प्रोडक्ट्स बनाती हैं। कभी मजदूरी करने वाली राजी बेन आज 30 से 40 महिलाओं को रोज़गार दे रही हैं।
दिल्ली की श्री श्याम रसोई में हर दिन हजारों ज़रूरतमंदों को सिर्फ 1 रुपये में भर पेट खाना मिलता है। इस रसोई को शुरू करने के लिए प्रवीण गोयल ने अपने जीवन की सारी जमा पूंजी लगा दी।
अहमदाबाद की पायल पाठक अपने बेटे सोहम के साथ मिलकर हेल्दी सलाद का बिज़नेस चलाती हैं। घर की रसोई से शुरू हुआ उनका यह बिज़नेस शार्क टैंक इंडिया के मंच पर पहुंचकर तीन सौ गुना बढ़ गया।
पानीपूरी खाते समय कैलोरी और हाइजिन की चिंता से परेशान होकर दिल्ली की तापसी उपाध्याय ने शुरू कर दिया खुद का पानीपूरी बिज़नेस। उनकी बिना तेल की बनी पूरी और मिनरल वॉटर से बना पानी लोगों को खूब पंसद आ रहा है।
अहमदाबाद के मिलन बोचीवाल, पिछले सात सालों से बलूनवाला नाम से एक अनोखे बिज़नेस मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिसके ज़रिए वह कई ज़रूरतमंद युवाओं को रोज़गार देने के साथ, शहर की पार्टियों में रंग भर रहे हैं।