आंध्र प्रदेश की जी. कामाक्षी, तेलापरोलु सचिवालय में महिला पुलिस पद पर कार्यरत हैं और साथ ही, 'अनुश्रीनू कलेक्शन' के नाम से अपना छोटा-सा बिज़नेस चला रही हैं।
जमशेदपुर के राजेश कुमार, पिछले लॉकडाउन से पहले अपनी नौकरी छोड़कर घर लौट आये थे। उन्होंने घर में ही मशरूम की खेती शुरू की, जिससे आज वह हर महीने अच्छी कमाई कर रहे हैं।
हिमाचल में कांगड़ा के सोहरन गाँव के रहने वाले 73 वर्षीय रिटायर्ड कर्नल प्रकाश चंद राणा, हल्दी, अदरक, लहसुन जैसी फसलों के साथ मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। साथ ही, वह अपनी उपज को प्रोसेस करके हल्दी पाउडर, पांच तरह के अचार और दो तरह के शहद सीधा ग्राहकों को उपलब्ध करा रहे हैं।
बिहार के पश्चिमी चंपारण में रहने वाले, नीतिल भारद्वाज नौकरी छोड़कर, मोती पालन और मछली पालन कर रहे हैं। उन्होंने 'भारद्वाज पर्ल फार्म एंड ट्रेनिंग सेंटर' के नाम से अपना ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू किया है, जहाँ लॉकडाउन में बेरोज़गार हुए लोगों को मुफ्त ट्रेनिंग दी गयी।
सांगली, महाराष्ट्र में रहने वाले सचिन येवले और वर्षा येवले 'कृषिदूत एग्रो फार्म' ब्रांड के जरिये जैविक गुड़, मसाला गुड़, कैंडी, लॉलीपॉप और चाय बनाकर ग्राहकों तक पहुंचा रहे हैं।
पहले ग्रामीण महिलाओं के सवाल होते थे, 'कोई और काम नहीं है क्या? यह तो मर्दों का काम है? पैंट-शर्ट कैसे पहनेंगे, आप साड़ी दे दो?' लेकिन आज यही महिलाएं अपनी यूनिफॉर्म पहनने में गर्व महसूस करतीं हैं!
“हमें लगा हमारी पीढ़ी के जाने के बाद कोई जानेगा ही नहीं इन खिलौनों के बारे में। हम चाहे जितना भी कम कमा रहे हैं, यह कला है हमारी, ऐसे कैसे ख़त्म होने दें।"