तमिलनाडु, होसुर के पास Denkanikotta में बने आर्किटेक्ट राजीव कुमारवेल का घर गर्मियों में भी ठंडा रहता है। सीमेंट का कम से कम उपयोग करके बने इस घर में उनका परिवार साल भर बारिश का पानी पीता है और घर में उगी सब्जियां ही खाता है।
पढ़ें, कैसे 11वीं सदी में बना मोढेरा का सूर्य मंदिर आधुनिक वास्तुकला में आजकल की इमारतों को भी मात देता है। फिर चाहे वह मंदिर में पानी के लिए बनी स्टेप वेल हो या रौशनी के लिए की गई वास्तुकला।
हैदराबाद के रहनेवाले धर्मेंद्र दादा बीते साल अप्रैल में, अपने दोस्त से मिलने के लिए बिहार के गया जिले के चौपारी गांव गए थे। इस दौरान, उन्होंने गांव में कुछ हंसों की दशा देख, उन्हें बेहतर आसरा देने के लिए चूना और सुरखी का इस्तेमाल कर एक तालाब बना दिया।
2001 में, गुजरात के भुज में आए भूकंप के दौरान सीमेंट से बने घर तो टूट गए थे, लेकिन ‘भूंगा’ शैली से मिट्टी से बने घरों को ज़रा सा भी नुकसान नहीं पहुंचा था।
तमिलनाडु के कोयम्बटूर के रहनेवाले श्रीनाथ गौतम और विनोथ कुमार ने साल 2018 में सस्टेनेबल आर्किटेक्चर को बढ़ावा देने के लिए ‘भूता आर्किटेक्ट्स’ की शुरुआत की। पढ़ें, कहां से मिली उन्हें इसकी प्रेरणा?
अमरेली के रहनेवाले कैलाशबेन और कनुभाई करकर के घर में तमाम सुविधाएं होते हुए भी, बिजली-पानी का कोई खर्च नहीं आता है। इतना ही नहीं, सरकार उन्हें सालाना 10 हजार रुपये देती है। तभी तो इसे मिला है गुजरात के आदर्श घर का अवॉर्ड।