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एक युवक ने की पहल और सड़क पर रहनेवाले 300 बच्चों की बदली ज़िंदगी

By प्रीति टौंक

गोरखपुर के रत्नेश तिवारी आज खुद की एक कंपनी चलाने के साथ-साथ, ज़रूरतमंद बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए भी काम कर रहे हैं। वह अब तक 300 से ज़्यादा बच्चों को स्कूल तक पहुंचा चुके हैं।

यह कार्यक्रम बच्चों के सीखने की क्षमता को सुधारने में 12 राज्यों के शिक्षकों की कर रहा मदद

By अर्चना दूबे

सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन, एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो निपुन भारत मिशन के दिशा निर्देशों के अनुसार बच्चों में सीखने की क्षमता का विकास करके, भारतीय स्कूल शिक्षा प्रणाली को बदलने की दिशा में काम कर रहा है।

नन्ही कली प्रोजेक्ट बदल रहा लड़कियों का जीवन, 26 सालों में 5 लाख लड़कियों की मिली शिक्षा

By पूजा दास

आनंद महिंद्रा ने ‘नन्ही कली’ नाम से एक प्रोजेक्ट शुरु किया है। 1996 में शुरू किए गए इस प्रोजेक्ट का मकसद शिक्षा के माध्यम से युवा लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाने की कोशिश करना है।

इस 17 वर्षीय लड़की ने 700 बच्चों को शिक्षा से जोड़ा, रोके 50 से ज्यादा बाल विवाह!

By निशा डागर

"जितने बड़े सपने होंगे, उतनी ही ज्यादा चुनौतियाँ होंगी। जितना ज्यादा संघर्ष होगा, उतनी ही बड़ी मंजिल होगी, इसलिए बस एक कदम बढ़ाकर देखें।"

हर महीने बचाते हैं कुछ पैसे, ताकि गरीब बच्चों का जीवन संवार सकें!

By नीरज नय्यर

कुछ साल पहले सड़क पर भीख मांगते बच्चों को देखकर नवीन के मन में उन्हें शिक्षित करने का ख्याल आया, ताकि वह इज्जत के साथ रोजी-रोटी कमा सकें।

कभी फीस के लिए नहीं होते थे पैसे, आज 4 हज़ार बच्चों को निशुल्क पढ़ा चुके हैं यह शख्स!

By भरत

सेंटर चलाने के लिए संजय किसी से भी आर्थिक मदद नहीं लेते हैं और न ही उन्होंने कोई एनजीओ बना रखा है। सेंटर का सारा खर्च संजय अपनी सैलरी से खुद उठाते हैं।

24 वर्षीया पायल ने बदल दिया ढर्रा, कच्ची बस्ती के बच्चों को जोड़ा स्कूल से!

“अभी नहीं तो कब? और तुम नहीं तो कौन? यह प्रश्न हमेशा मेरे मन में आते थे। धूमा में अभिभावक बच्चों को पढ़ने भेजने के लिए तैयार तो थे लेकिन सुविधाओं का अभाव था। आज धीरे-धीरे वहाँ तक भी सुविधाएँ पहुँच रही है। ‘शिक्षा’ अभियान की एक बच्ची माधवी परसे का चयन ‘स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ में हुआ है। आज ''शिक्षा'' के माध्यम से बरसाना का एक-एक बच्चा पाठशाला जाता है।''

कार्डबोर्ड से बना 10 रुपये का यह स्कूल बैग बन जाता है डेस्क भी!

By सोनाली

चीजें जो हम नज़रअंदाज़ करते हैं, वह अक्सर सबसे महत्वपूर्ण होती है। डेस्क, कुर्सी या ब्लैक बोर्ड किसी स्कूल की सबसे बेसिक आवश्यकता होती है। इसके बावजूद ग्रामीण भारत के सैकड़ों स्कूल इन सुविधाओं से दूर है। "

पॉकेट मनी से शुरू किया स्कूल, कूड़ा बीनने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ा!

By अदिति मिश्रा

"इस काम को शुरू करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी उस बस्ती में रहने वाले बच्चों व उनके माता-पिता को इसके लिए तैयार करना और शिक्षा के प्रति उनके मन में जागरूकता पैदा करना। क्योंकि यह बच्चे अपने अभिभावकों को आर्थिक सहायता देने के लिए कुछ न कुछ काम करते थे। इनमें कुछ बच्चे कूड़ा बीनकर तो कुछ कूड़ा उठाने वाली गाड़ी पर काम करके पैसे कमाते थे।'' 

बिहार: खुद नहीं बन पाई खिलाड़ी पर 3 हज़ार लड़कियों को फुटबॉल सीखा, लड़ रही है बाल विवाह से!

जिन सामाजिक बुराइयों के साथ जीने की लोगों ने आदत डाल ली हो, ऐसे मुद्दों पर लोगों को झकझोर कर जगाने, जागरूक करने और समाज सुधार की लड़ाई के इस नए लड़ाकों का स्वागत किया जाना चाहिए।