यह लेख सेंट्रल स्वेयर फाउंडेशन ने स्पॉन्सर किया है।
“मुझे कलर करना, अपनी वर्कबुक में बिंदुओं को जोड़ना और मार्बल्स के ज़रिए गिनती सीखना बहुत पसंद है। गणित मेरा पसंदीदा विषय है, “यह कहना है मध्य प्रदेश में सीहोर जिले के रहनेवाले दर्पण मालवीय का। दर्पण, कोडिया छिट्टू गांव के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 1 के छात्र हैं।
दर्पण का स्कूल भारत के उन अनेक प्राथमिक विद्यालयों में से एक है, जहाँ सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था में कई शानदार बदलाव हुए हैं। राज्य शिक्षा बोर्ड के ढांचे और निपुन भारत मिशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन (CSF), पाठ्यक्रम की सही डिलीवरी करते हुए मौलिक साक्षरता और संख्यात्मक कौशल के साथ बच्चों को सशक्त बनाने के लिए काम कर रहा है।
2012 में स्थापित, सीएसएफ एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो मुख्य रूप से आर्थिक रूप से कमज़ोर समुदायों के बच्चों में सीखने की क्षमता का विकास करके, भारतीय स्कूल शिक्षा प्रणाली को बदलने की दिशा में काम कर रहा है।
सीएसएफ का काम मुख्य रूप से चार चीज़ों पर केंद्रित है – मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन), एडटेक, किफायती प्राइवेट स्कूल और बच्चों की शुरुआती शिक्षा।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए सीएसएफ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अनुस्तूप नायक कहते हैं, “हम फिलहाल भारत भर में लगभग 12 राज्यों में काम कर रहे हैं और ज़्यादातर राज्यों में, हमारे पास रूम टू रीड (आरटीआर) और लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन (एलएलएफ) जैसे दूसरे एजुकेशन पार्टनर एनजीओ भी हैं, जो बच्चों और शिक्षकों दोनों के लिए प्रोग्राम डिज़ाइन करने का काम करते है।”
उनका कहना है कि वे अपने टेक्निकल एजुकेशन पार्टनर्स के साथ अपने कार्यक्रमों के डिज़ाइन की गुणवत्ता में सुधार के लिए काम करते हैं। “हम ग्लोबल बैस्ट प्रैक्टिसेज़ को देखते हैं और उन अच्छे उदाहरणों पर विचार करते हैं, जिन्हें हमने यह देखने के लिए खुद बनाया है कि क्या शिक्षक इन प्रोग्राम्स का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। हम मटेरियल को देखते हैं और चेक करते हैं कि क्या यह सरल और समझने में आसान है। हम मूल रूप से शिक्षकों और छात्रों के लिए कार्यक्रमों के यूज़र इंटरफेस में सुधार करते हैं।”
इन प्रोग्राम्स के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, “अधिकांश कार्यक्रम अच्छी तरह से डिज़ाइन तो किए जाते हैं, लेकिन कई बार उस पर काम करने में दिक्कतें आती हैं। इसलिए, हम खुद फील्ड में उतरते हैं, कक्षाओं में बैठते हैं, टीसर्च ट्रेनिंग प्रोग्राम्स को देखते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि जो प्रोग्राम डिज़ाइन किया गया है, उसमें क्या सही से काम कर रहा है और किसमें सुधार करने की ज़रूरत है। फिर हम प्रोग्राम डिज़ाइन को बेहतर बनाने के लिए फ़ीडबैक देते हैं।”
अनुस्तूप ने बताया कि कैसे उनकी टीम, उनके टेक पार्टनर्स के लिए एक थॉट पार्टनर की तरह है, “जब भी हम संयुक्त रूप से सरकार के सामने किसी शैक्षणिक रणनीति की वकालत कर रहे होते हैं, तो हम खुद भी उनके साथ बैठते हैं।”
शिक्षक एक शैक्षिक प्रणाली की नींव होते हैं
भारत में सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके इस मकसद के साथ, सीएसएफ शिक्षकों के साथ मिलकर बहुत करीब से काम करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी टीचर्स के पास सही ट्रेनिंग, सही तकनीक और सही उपकरण मौजूद हों।
अनुस्तूप ने बताया, “बच्चों को भाषा या गणित के बेसिक्स पढ़ाने के लिए, कुछ वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तकनीकें होती हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप बच्चों को संख्याओं के बारे में पढ़ाना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि उन्हें प्रैक्टिकल हैंड्स ऑन मॉडल्स के साथ शुरू किया जाए। हमारे कार्यक्रमों में, एब्स्ट्रैक्ट सिंबल समझाने से पहले, बच्चों को मार्बल्स जैसी कुछ चीज़ें दी जाती हैं, जिनके ज़रिए वे संख्याएं सीखते हैं। इन तकनीकों के इस्तेमाल से बच्चे आसानी से चीज़ें सीखते हैं और बेहतर तरीके से याद रखते हैं।”

ज़्यादातर पारंपरिक कक्षाओं में, शिक्षकों के पास भी वही किताबें होती हैं, जो बच्चों के पास होती हैं। लेकिन सीएसएफ कार्यक्रमों में, शिक्षकों को बहुत सारे दूसरे सहायक टूल्स मुहैया कराए जाते हैं।
अनुस्तूप ने आगे बताया, “हमारा प्राइमरी टूल एक टीचर गाइड है। इसमें स्टेप बाई स्टेप लेसन प्लान्स हैं, जिसकी मदद से शिक्षक स्कूल टाइम टेबल के अंदर ही इन तकनीकों का इस्तेमाल कर छात्रों को चीज़ें समझा सकते हैं। यहां तक कि बच्चों को भी बेहतर डिज़ाइन वाली वर्कबुक और भाषा सीखने के लिए सप्लिमेंट्स दिए जाते हैं।”
वह कहते हैं कि बहुत बार, टीचर ट्रेनिंग के दौरान शिक्षकों को एक तरफा मटेरियल दे दिया जाता है, जो बहुत प्रैक्टिकल नहीं होता है। शिक्षक कई ट्रेनिंग प्रोग्राम्स से गुज़रते हैं, लेकिन वहां उन्हें प्रैक्टिकल तकनीक नहीं सिखाई जाती, जिन्हें वे वास्तव में कक्षा में लागू कर सकें।
“हम जो डिज़ाइन कर रहे हैं उसका एक बड़ा हिस्सा डेमोंस्ट्रेशन है, जिसमें हम सारी तकनीकों का इस्तेमाल करके पढ़ाने के नए तरीके शिक्षकों को समझाते हैं, ताकि वे इसका प्रभाव समझ सकें।”
अनुस्तुप का कहना है कि शिक्षकों को लगातार कोचिंग भी मुहैया कराई जाती है। “ब्लॉक और क्लस्टर रिसोर्स पर्सन हर महीने एक या दो बार स्कूल आते हैं। वे कक्षा में शिक्षकों का निरीक्षण करते हैं, उन्हें फीडबैक देते हैं, अधिक डेमो कक्षाएं संचालित करते हैं और कुछ बच्चों का आकलन भी करते हैं। इस तरह, साल में एक या दो बार होने वाली एक बार की ट्रनिंग वर्कशॉप के बजाय शिक्षक को निरंतर इनपुट दिया जाता है।”
उत्तर प्रदेश के सेवापुरी जिले के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में तीसरी कक्षा की सहायक शिक्षिका सुनीता सिंह कहती हैं, “पहले मैं बच्चों को पढ़ाती थी। मैंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। लेकिन, मैंने कड़ी मेहनत की और 6 सितंबर 2018 को इस स्कूल में बतौर शिक्षिका मेरा चयन हुआ। शुरुआत में मैं पारंपरिक तरीकों से बच्चों को पढ़ाती थी, लेकिन तब कुछ बच्चों को तो पढ़ाई गई चीज़ें समझ आ जाती थीं, लेकिन कुछ बिना समझे ही रह जाते थे। लेकिन अब, मेरे पास टीचर्स गाइड है। इससे छात्रों को जो पढ़ाया गया वह उन्हें कितना समझ आया, इसका आकलन करना बहुत आसान हो गया है। इससे मेरे लिए उनके साथ को-ऑपरेट करना और ज़रूरत पड़ने पर उनकी मदद करना भी आसान हो गया है।”
उसी स्कूल की कक्षा 1 की शिक्षिका वंदना दुबे कहती हैं, “मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं और मैंने उन्हें जुनून और ईमानदारी के साथ भविष्य के लिए तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत की है। पहले, मैं उन्हें बुनियादी भाषा और गणित के कॉन्सेप्ट पढ़ाती थी, लेकिन मेरे कई प्रयासों के बावजूद, उन्हें चीज़ें समझ नहीं आती थीं। लेकिन टीचर्स गाइड ने मेरी समस्या हल कर दी। अब मैं अधिक आत्मविश्वास के साथ पढ़ाती हूं और कॉन्सेप्ट को अच्छी तरह से समझने में छात्रों की मदद कर सकती हूँ। आज, मैं सुधार विभाग (Department of Corrections) में एक सक्रिय शिक्षामित्र के रूप में जानी जाती हूँ और यह मेरे लिए गर्व की बात है।”
इस तरह के प्रभाव की कहानियों और सीएसएफ, इसके एजुकेशन पार्टनर एनजीओ, शिक्षकों और छात्रों के अथक प्रयासों से, यह कार्यक्रम पूरी शिक्षा प्रणाली को एक उज्जवल भविष्य की ओर ले जाने में मदद कर सकता है।
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