पेशे से सिंगर जामनगर की 37 वर्षीया दुलारी आचार्या ने एक साल पहले मात्र 25 हजार रुपयों के साथ एक फ्रैंकी स्टॉल शुरू किया था और आज वह हर महीने इससे 30 हजार का मुनाफा कमा रही हैं।
गजियाबाद में रहनेवाली अंशु जैन, अपने घर से किसी भी प्लास्टिक की बोतल या खाली डिब्बे आदि को फेंकती नहीं, बल्कि अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल करके उसे नया रूप दे देती हैं। उनकी छोटी से बालकनी में रीसायकल करके बनाए गए प्लांटर ही ज्यादा हैं।
कोझीकोड के ई. बालकृष्णन की छत पर 500 से अधिक किस्मों के कैक्टस के पौधे हैं, जिसे उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ जापान, चीन, इंडोनेशिया, ब्राजील से इकट्ठा किया है।
भरुच (गुजरात) के सरकारी टीचर कमलेश कोसमिया, पिछले 22 सालों से पौधे लगाने का काम कर रहे हैं। अपनी ड्यूटी शुरू होने से पहले, हर दिन दो-तीन घंटे का समय निकालकर वह यह काम करते हैं। उनकी इस मेहनत की वजह से आज स्कूल में हर जगह हरियाली छा गई है।
भजन मण्डली में, हाथों में छोटा सा मंजीरा लिए कलाकार को जरूर देखा होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुजरात के कच्छ में बना मंजीरा, आज देश ही नहीं, विदेशों में भी ख़रीदा जा रहा है।
अंगुल (ओडिशा) की मोनालिसा पटनायक पांच सालों से अपने घर के गार्डन को किसी थीम पार्क की तरह सजा रही हैं। कभी उनका गार्डन शांति का सन्देश देता है, तो कभी शादी की झांकी दिखाता है। मजेदार बात तो यह है कि इसके लिए वह सिर्फ घर की बेकार चीजों का ही इस्तेमाल करती हैं।
सांगली, महाराष्ट्र के 44 वर्षीय अशोक आवती ने पढ़ाई भले ज्यादा न की हो, लेकिन दिमाग किसी इंजीनियर से कम नहीं। हाल ही में, उन्होंने अपने परिवार के लिए कबाड़ से एक जुगाड़ू कार बनाई है, जो दिखने में फोर्ड कंपनी के 1930 मॉडल जैसी है।
लखनऊ के गोसाईगंज के पास एक छोटे से गांव माढरमऊ की सोनाली साहू बचपन से ही पढ़ाई में अच्छी रही हैं। उनकी लगन और कुछ बनने की इच्छा को देखकर उनके स्कूल की प्रिंसिपल ने उनका साथ देने का फैसला किया। स्कूल प्रिंसिपल की छोटी सी मदद से सोनाली आज बड़े सपने भी देख पा रही हैं।