पुणे के पास पानशेत गांव में बना है बैम्बू एंड ब्रिक्स रिसोर्ट, जिसे बनाया है राहुल कोंडेकर ने। यहां बांस से बनी बेहतरीन नक्काशी देखने कई आर्किटेक्चर के छात्र भी आते हैं।
घर के हर कबाड़ को काम का समझते हैं श्री मुक्तसर साहिब, पंजाब के रहनेवाले 18 वर्षीय जुगाड़ू कारीगर प्रज्जवल सोनी, जिन्होंने बड़ी सामान्य सी चीजों के इस्तेमाल से एक से बढ़कर एक काम की चीज़ें बनाई हैं।
आज जहां देश के गाँवों में भी स्थानीय बोली बोलने वाले लोग कम होते जा रहे हैं, ऐसे में देश में एक ऐसी दुकान भी है, जहां आज भी वेदों की भाषा बोली जाती है।
बेंगलुरु के डॉ. प्रभाकर राव, हरियाली सीड नाम से एक ऐसा सीड बैंक चला रहे हैं, जिसमें आपको 500 से ज्यादा देसी किस्म के सब्जियों के बीज मिल जाएंगे। उन्होंने साल 2011 में दुबई में आर्किटेक्ट का काम छोड़कर देसी सब्जियों की खेती शुरू की।
फरीदाबाद की तूलिका सुनेजा, साल 2018 से एक बर्तन बैंक चला रही हैं और इसके ज़रिए वह कई शहरों से लाखों प्लास्टिक प्लेट्स, ग्लास और चम्मच जैसे सिंगल यूज़ प्लास्टिक को लैंडफिल में जाने से बचा रही हैं।
कुछ साल पहले तक जिन कामों को सिर्फ पुरुषों का काम समझकर महिलाएं नहीं करती थीं। आज उन्हीं कामों को अपनी पहचान बनाकर आर्थिक रूप से आज़ाद बनीं इन पांच महिलाओं की कहानी ज़रूर पढ़ें।
परिवार के लिए सालों तक चाय बनाने वाली एक सामान्य गृहिणी कोकिला पारेख ने अपने हाथों के स्वाद के दम पर अपने बिज़नेस की शुरुआत की, वह भी 80 की उम्र में। पढ़े उनकी प्रेरक कहानी।
उत्तराखंड सिविल सेवा से जुड़े रजनीश सच्चिदानंद यशवस्थी ने पहाड़ों में बसने वाले किसानों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहले किसानों को कीवी की खेती सिखाई और अब मिट्टी के कुमाऊंनी घर को एग्रो टूरिज्म सेंटर बना दिया है।