लड्डू को सबसे पहले किसी हलवाई ने नहीं, बल्कि 4th सेंचुरी बीसी में भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने बनाया था और इसे दवाई की तरह इस्तेमाल किया जाता था। कैसे लड्डू ने दवाई से मिठाई का रुप लिया, आइए जानते हैं इसके मज़ेदार इतिहास के बारे में...
मिलिए, आजमगढ़ के असद अब्दुल्लाह से, जिन्होंने कबाड़ के सामान से एक ऐसी छह सीटर इलेक्ट्रिक बाइक बना दी है, जिसमें दो दोस्त ही नहीं पूरा परिवार सवार होकर घूम सकता है। वह भी बिना पेट्रोल की चिंता किए।
दिल्ली के 25 वर्षीय श्रेय गुप्ता ने अपनी फर्म 'ब्लू बुक होटल्स' के ज़रिए नैनीताल के गेठिया में, प्रकृति के बीच एक ऐसा लग्जरी होटल बनाया है, जहाँ जाकर आप बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच रह सकते हैं और खूबसूरत नज़ारों का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा, ब्रिटिश एरा के बंगले को बदलकर बनाया गया यह होटल अपने मेहमानों को पुराने ज़माने की फील देता है।
डॉक्टर्स ही नहीं, शिमला के सरबजीत सिंह भी हैं मरीज़ों और ज़रूरतमंदों के मसीहा। वह सालों से शवों के लिए वाहन, पेशेंट्स के लिए एम्बुलेंस सुविधा सहित ब्लड कैंप और मुफ्त में खाना खिलाने जैसी सुविधाएं ज़रूरतमंदों तक पंहुचा रहे हैं।
असम के सीरियल इनोवेटर कनक गोगोई का बनाया छोटा और किफायती ट्रैक्टर, किसानों की मदद करने के साथ-साथ, बेरोज़गार युवाओं को खेती से जोड़ने के लिए काफी उपयोगी है। कनक को उनकी ग्रेविटी ऑपरेटेड साइकिल के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है।
आगरा का पेठा देश ही नहीं, दुनियाभर में मशहूर है। इसके बनने की कहानी बेहद रोचक है। कई इतिहासकार कहते हैं कि यह मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की देन हैं, तो कईयों का मानना है कि मुग़लों के आने के बहुत पहले से हम भारतीय इसे बनाने और खाते आ रहे हैं। पूरा किस्सा पढ़कर बताइए कि आपको क्या लगता है?
ठंड में ठिठुरते ज़रूरतमंद लोगों तक गर्म कपड़े और कंबल पहुंचाने में द बेटर इंडिया दे रहा है गाजियाबाद की संस्था ‘उद्देश्य' का साथ। क्या आप बनना चाहेंगे इसका हिस्सा?
दिल्ली में रहने वाली हिरण्यमयी शिवानी और उनकी बहू मंजरी सिंह ने लॉकडाउन के दौरान अपने क्लाउड किचन की शुरुआत की। 'द छौंक' के बिहारी व्यंजनों का स्वाद आज पूरे शहर में मशहूर है और यह बिज़नेस हर महीने लगभग 4 लाख रुपये कमा रहा है।
ज़िंदगी भर अपने पिता को अपनी स्कूल की फ़ीस भरने के लिए कड़ी मेहनत करते देख, 31 साल के उद्देश्य सचान ने अपना ही नहीं, बल्कि कई गरीब बच्चों का भविष्य बनाने की ठानी और उनको फ्री में पढ़ाना शुरू कर दिया। आज कानपुर के गुरुकुलम में 150 से ज़्यादा बच्चे ख़ुशी से, खेल-कूदकर पढ़ाई करते हैं।