जो आपके लिए हैं बेकार, वे कपड़े आ सकते हैं किसी के काम, जुड़िए हमारी इस ख़ास मुहिम के साथ

winter campaign Uddeshya

ठंड में ठिठुरते ज़रूरतमंद लोगों तक गर्म कपड़े और कंबल पहुंचाने में द बेटर इंडिया दे रहा है गाजियाबाद की संस्था ‘उद्देश्य' का साथ। क्या आप बनना चाहेंगे इसका हिस्सा?

क्रिसमस और नए साल की खुशियों के बीच कई लोग ऐसे भी हैं, जो सड़क के किनारे ठंड से ठिठुरने को मजबूर हैं। ऐसे लोगों के लिए हमदर्दी तो शायद कइयों को होगी, लेकिन इनके लिए काम कम लोग ही कर पाते हैं। ऐसे में अगर सब मिलकर कोशिश करें या उन लोगों की मदद करें, जो क्लॉथ डोनेशन ड्राइव जैसी कोशिशों के ज़रिए ज़रूरतमंदों तक सचमुच में खुशियां पहुंचा रहे हैं, तो साल का इससे अच्छा अंत और नए साल की इससे अच्छी शुरुआत और क्या होगी? 

इसीलिए हमने, गाज़ियाबाद की एक ऐसी संस्था को आपसे जोड़ने का सोचा, जो आपकी मदद से एक बदलाव लाने की कोशिश कर रही है।

कोरोना के दौर में गाज़ियाबाद के रावली स्लम इलाके में रहनेवाले मोजिद अली की पढ़ाई छूट गई थी। परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि फिर से उसका दाख़िला किसी अच्छे स्कूल में करवाकर, उसकी पढ़ाई का ख़र्च उठा सकें। ऐसे में, ‘उद्देश्य’ ने उसका हाथ थामा और साल 2022 में मोजिद अली का एडमिशन छठी कक्षा में करवाया।

सिर्फ शिक्षा ही नहीं, ‘उद्देश्य’ इस बस्ती में रहनेवाले कई बच्चों की तमाम ज़रूरतों का ध्यान रखती है। यह संस्था ठण्ड के समय इन बच्चों तक कम्बल और स्वेटर भी पहुंचाती है और उनकी इन्हीं कोशिशों में इस साल ‘द बेटर इंडिया’ ने उनका साथ देने का फैसला किया है। 

कैसे हुई क्लॉथ डोनेशन ड्राइव की शुरुआत?

Winter Campaign by Uddeshhy
Winter Campaign by Uddeshhy

साल 2018 में, इसी कॉलेज से पास हुए मनीष वर्मा ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “कई लोग हमारे कॉलेज के पास की बस्ती में ठण्ड के समय बोरी या पतली चादर में दुबककर रात गुज़ारा करते थे, जिसके बाद हमने न सिर्फ बस्ती, बल्कि सड़क के किनारे और स्टेशन पर रह रहे लोगों की भी ठंड में मदद करने का फैसला किया। हमारी क्लॉथ डोनेशन ड्राइव में हमारे कॉलेज के स्टूडेंट्स मदद करते हैं और जमा हुए फंड के ज़रिए हम लोगों की मदद करते हैं।”

वह कहते हैं न कि नया साल नई उम्मीद लेकर आता है, तो आने वाला साल ऐसे ज़रूरतमंद लोगों के जीवन में यूँ ही उम्मीद की किरण बिखेरता रहे, इसके लिए द बेटर इंडिया और ‘उद्देश्य’ की कोशिश है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपनी इस मुहीम के ज़रिए मदद और खुशियां पहुंचा सकें।  

क्या है ‘उद्देश्य’ और कैसे हुई इसकी शुरुआत?

Cloth Collection Drive
Cloth Collection Drive

लगभग 12 साल पहले गाज़ियाबाद के Krishna Institute of Engineering and Technology यानी KIET में इंजीनियरिंग करने आए कुछ छात्रों ने देखा कि कैंपस में पंप मैन से लेकर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स तक के बच्चे स्कूल नहीं जाते। क्योंकि न तो उनके माता-पिता के पास स्कूल में एडमिशन कराने के पैसे थे, न ही उनके भविष्य के लिए सपने। 

तब इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के एक ग्रुप ने कैंपस में ही ऐसे 4-5 बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने अपनी क्लास पूरी करने के बाद, शाम को एक स्पेशल क्लास में इन बच्चों को न सिर्फ़ किताबी ज्ञान देना, बल्कि भविष्य में आगे बढ़ने और कुछ बनने के लिए तैयार करना भी शुरू किया। 

देखते ही देखते यह ग्रुप कॉलेज का एक अहम हिस्सा बन गया। आज वही छोटा सा ग्रुप, एक संस्था बन चुका है, जिसके ज़रिए कॉलेज के पास के स्लम एरिया के बच्चों को पढ़ाया जाता है और क्लॉथ डोनेशन ड्राइव जैसी कोशिशों के ज़रिए उनकी बेसिक ज़रूरतों को भी पूरा किया जाता है।  

1000 से अधिक लोगों को बांट चुके हैं कंबल, चप्पल, कपड़े और स्वेटर

शुरुआत में इस काम की पूरी ज़िम्मेदारी छात्र ही उठाते थे। इसके लिए ग्रुप से जुड़े सभी सदस्य हर एक सेमेस्टर में 500 रुपये जमा करते थे, ताकि बच्चों के लिए स्टेशनरी और कपड़े खरीदे जा सकें। फिर अपने काम को और बेहतर ढंग से करने के लिए उन्होंने अपने संगठन को एक संस्था में बदलने का फैसला किया, ताकि उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मदद मिल सके और इस तरह साल 2018 में ‘उद्देश्य’ नाम की संस्था बनाई गई।

आज ‘उद्देश्य’ शिक्षा के साथ-साथ ब्लड और क्लॉथ डोनेशन ड्राइव जैसे लगभग 8 प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। सैकड़ों बच्चों और महिलाओं को उनकी पहल से मदद मिल रही है। पिछले साल टीम ने गाज़ियाबाद और NCR में 1000 से अधिक लोगों को कंबल, चप्पल, कपड़े और स्वेटर बांटे थे।

 इस साल इस खास कैंपेन के ज़रिए हम ‘उद्देश्य’ के लिए ज़्यादा से ज़्यादा मदद जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। आप भी हमारे इस कैंपेन से जुड़कर ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं, जिन्हें सही मायनों में हमारे सहारे की ज़रूरत है। आपका छोटा सा डोनेशन भी किसी के लिए वरदान बन सकता है। 

उद्देश्य को डोनेशन देने के लिए यहां क्लिक करें। 

संपादन- अर्चना दुबे

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