जयपुर में रहने वाले 45 वर्षीय प्रतीक तिवारी ने MNC की नौकरी छोड़ पोर्टेबल फार्मिंग सिस्टम का बिजनेस शुरू किया है, जिसके तहत वह देश के 25 से अधिक शहरों में 1500 से अधिक घरों को खेती से जोड़ चुके हैं।
कोरोना काल में जब थाली में दाल को भी तरस रहा था पूरा गांव, इन महिला किसानों ने छोटी सी जमीन पर किचन गार्डन लगा कर पूरे साल के लिए फल, सब्जियां और जड़ी बूटियों का इंतजाम किया और अपने पड़ोसियों की मदद भी की।
बेंगलुरु के जयनगर में रहने वाली, मीना कृष्णामूर्ति, छत पर बागवानी करने के साथ, जैविक खाद भी बनाती हैं। इनसे आप कम्पोस्टिंग की ट्रेर्निंग भी ले सकते हैं।
अपने बायोगैस प्लांट से हरियाणा के भिवानी में रहने वाले अमरजीत अपने घर के जैविक कचरे का सही मैनेजमेंट कर पा रहे हैं और साथ ही, उन्हें गैस और खाद भी मिल रही है!
रिटायरमेंट के बाद मनोहरण ने जैविक खेती को लक्ष्य बनाकर दूसरे किसानों को ट्रेनिंग देना शुरू किया। उनके फार्म में 70 से ज्यादा तरह के पेड़ हैं, और वह खुद जैविक खाद और हर्बल पेस्टीसाइड बनाते हैं। साथ ही वह अपने संगठन के जरिए कई किसानों को रासायनिक खेती से निजात दिला रहें हैं।