देश के किसी भी शहर में आप जाएंगे तो आपको ऐसी कोई न कोई जगह जरूर दिख जाएगी, जहाँ कूड़ा-कचरा का अंबार लगा रहता है। लेकिन क्या कभी आपने ऐसे शख्स के बारे में सुना है जो ऐसी जगहों को साफ कर वहाँ सब्जी उगा रहा हो, वह भी जैविक तरीके से? आज द बेटर इंडिया आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी सुनाने जा रहा है।
केरल के कोची में रहने वाले 46 वर्षीय जैविक किसान एंथनी के. ए. शहर में सालों से खाली पड़ी या फिर कूड़ा-कचरा इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल की जा रही ज़मीनों पर तरह-तरह की सब्ज़ियां उगा रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया और अब तक वह दो फसलें ले चुके हैं।
12वीं कक्षा तक पढ़े एंथनी पिछले 10 सालों से अलग-अलग जगह पर जैविक खेती कर रहे हैं और इसके साथ ही वह एक ऑर्गेनिक स्टोर भी चलाते हैं।
अपने इस सफर के बारे में एंथनी ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे परिवार का पुश्तैनी काम खेती ही था। एक वक़्त ऐसा भी आया जब मुझे खेती घाटे का सौदा लगने लगा और मैं अलग-अलग तरह के बिज़नेस में अपना हाथ आजमाने लगा। लेकिन वक़्त के साथ मुझे समझ में आ गया कि खेती पर ही ध्यान देना चाहिए। साथ ही, खेती के प्रति लोगों का नजरिया भी बदल रहा था। मुझे बहुत से लोगों से जैविक खेती के बारे में जानने को मिला। मैंने एक-दो किसानों से इसके बारे में बातचीत की और समझने की कोशिश की। फिर मुझे ऑर्गेनिक खेती पर होने वाले कोर्स के बारे में पता चला।”
एंथनी ने जैविक खेती से जुड़े कई कोर्स किए। उन्होंने केवी दयाल जैसे एक्सपर्ट्स के मार्गदर्शन में जैविक खेती की शुरूआत की। एंथनी ने तमिलनाडु के थेनी में कुछ जगह लीज पर ली और वहाँ पर जैविक खेती करना शुरू किया। वह बताते हैं कि उन्होंने शुरूआत में बहुत-सी परेशानियाँ झेलीं। जिस ज़मीन को उन्होंने लीज पर लिया था वह कई सालों से बंजर पड़ी थी। उन्होंने कई महीने मेहनत करके सबसे पहले इस ज़मीन को तैयार किया। जिसके लिए उन्होंने गाय के गोबर, गौमूत्र, कृषि अपशिष्ट आदि का इस्तेमाल किया।
फिलहाल, वह अलग-अलग जगह पर लगभग 50 एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती कर रहे हैं। वह सब्जी और फल उगाते हैं और साथ ही, कुछ एक्सोटिक वैरायटी भी उन्होंने ट्राई की हैं। “मैं टमाटर, तोरई, लेटस, सेलेरी, शिमला मिर्च, मिर्च, लौकी, पेठा, करेला, बीन्स आदि उगा रहा हूँ। इसके साथ ही कुछ स्थानीय फल भी उगाता हूँ। मेरा उद्देश्य लोगों को अच्छा खिलाना है। मैं सिर्फ इस विश्वास पर काम कर रहा हूँ कि खाना ही सबसे अच्छी दवाई है,” एंथनी ने कहा।
अपने फल और सब्जियों को बाज़ार तक पहुँचाने के लिए उन्होंने शहर में अपना खुद का स्टोर शुरू किया है। जिसका नाम है ‘प्योर क्रॉप ऑर्गनिक स्टोर’। इसके साथ ही वह दूसरे सर्टिफाइड ऑर्गेनिक स्टोर्स को भी सब्जियां सप्लाई करते हैं और दुबई में रहने वाले मलयाली लोगों के लिए भी वह एक्सपोर्ट कर रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान एंथनी का अपने खेतों पर जाना मुश्किल हो गया। अपने खेतों पर जाने के लिए उन्हें शहर से बाहर जाना पड़ता है और यह लॉकडाउन में मुमकिन नहीं था। मार्च-अप्रैल का वक़्त फसल लेने के बाद ज़मीन को तैयार कर अगली फसल लगाने का होता है। लेकिन कोविड-19 और लॉकडाउन ने इस शेड्यूल को बिल्कुल ही बदल दिया। एंथनी कहते हैं कि वह हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न वह अपने शहर कोची में ही खेती करें।
“मैंने मजाक-मजाक में यह सोचा था लेकिन इतना अच्छा नतीजा मिलेगा यह बिल्कुल दिमाग में नहीं था। मैंने अपने पड़ोस में रहने वाले ही कुछ लोगों से पूछा कि अगर उनकी कोई खाली ज़मीन हो तो मुझे दें। मुझे तीन अलग-अलग जगह पर प्लाट मिले जहाँ मैं कुछ उगा सकता था,” उन्होंने बताया। लेकिन यह इतना आसान नहीं था क्योंकि जो ज़मीन उन्हें मिलीं वह सालों से खेती के लिए इस्तेमाल नहीं हुईं थीं। एक जगह बड़ी-बड़ी इमारतों की सोसाइटी के बीच थी तो दूसरी जगह पर डंपयार्ड हुआ करता था।
अप्रैल महीने से उन्होंने इन ज़मीनों को तैयार करना शुरू किया। एक टुकड़ा सिर्फ 50 सेंट का था, दूसरा एक एकड़ से थोड़ा-सा ज्यादा और तीसरा मात्र 17.5 सेंट का। उन्होंने एक महीने तक मेहनत करके इन ज़मीनों को खेती के लिए तैयार किया। वह कहते हैं इस काम में उनकी मदद उनके ‘5 करोड़ कामगरों’ ने की। यहाँ कामगरों से उनका मतलब केंचुआ, चींटियों, सूक्ष्म जीवों से है जो ज़मीन में वर्मीकंपोस्ट और अन्य खाद आदि डालने से आते हैं। फसल का उत्पादन मिट्टी की गुणवत्ता के ऊपर निर्भर करता है और इसलिए उन्होंने पूरी मेहनत कर इसे तैयार किया।
इसके बाद उन्होंने अलग-अलग सब्जियों के बीज लगाए और इनकी देखभाल की। जुलाई में जब उन्हें उपज मिलना शुरू हुआ तो वह और उनके पडोसी, सभी हैरान थे। किसी ने भी नहीं सोचा था कि उनका यह एक्सपेरिमेंट सफल हो जाएगा।
“मैंने जिन भी लोगों की ज़मीन ली उन्हें बदले में कोई किराया नहीं दिया था। बल्कि किराए के तौर पर वह जितनी चाहे सब्जियां यहाँ से ले सकते थे। बाकी जो भी उपज हमें मिली, उसे हमने अपने स्टोर के ज़रिए ग्राहकों तक पहुँचाया। यह प्रोजेक्ट बहुत सफल रहा। शुरूआती फसल बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन दूसरी फसल में हमें हर दिन लगभग 60 किलो सब्ज़ियों का उत्पादन मिला है और वह भी सिर्फ 50 सेंट वाली प्लाट से। इसके बाद मुझे और भी लोगों ने सम्पर्क किया कि मैं उनकी खाली पड़ी ज़मीन भी इस्तेमाल कर सकता हूँ,” एंथनी ने कहा।
लेकिन एंथनी का मकसद सिर्फ कोची तक सीमित होकर रहना नहीं है। वह कहते हैं कि व्यतिल्ला और कलूर जंक्शन के बीच लगभग 100 एकड़ ज़मीन खाली और बंजर पड़ी है। इस ज़मीन को वह एक बड़े फ़ूड फॉरेस्ट में बदलना चाहते हैं। उन्होंने बहुत से लोगों को सम्पर्क भी किया है लेकिन हर किसी को मनाना आसान नहीं है। वह कहते हैं कि शहर की जितनी भी खाली ज़मीन हैं अगर लोग उन्हें सही ढंग से जैविक सब्जियां और फल आदि उगाने के लिए इस्तेमाल करें तो शहर भर के लिए खाना उगाया जा सकता है।
इससे लोग आत्म-निर्भर बनेंगे और साथ ही, स्वस्थ व स्वच्छ खाएंगे। एंथनी के मुताबिक, इस तरह से जैविक खेती करने से स्वस्थ खाने की समस्या तो दूर होगी ही, साथ ही पर्यावरण को राहत मिलेगी और खाद के लिए गीले कचरे का उपयोग होने लगेगा, इससे वेस्ट मैनेजमेंट भी हो जाएगा। इसके साथ लोगों के लिए रोज़गार भी उत्पन्न होंगे। अंत में वह सिर्फ इतना कहते हैं कि जैविक खेती में बहुत-सी कठिनाइयाँ हैं लेकिन अगर आप सीखते रहते हैं तो जीत आपकी ही होती है।
अक्सर किसान सोचते हैं कि जैविक खेती से ज्यादा उत्पादन नहीं मिलता है। लेकिन पैसे और उत्पादन से पहले हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचना चाहिए। हमें उनके लिए एक खूबसूरत और स्वस्थ दुनिया बनानी है और वह हम सिर्फ तब बना पाएंगे जब हमारा खाना बिना किसी रसायन उगे। इसलिए प्रकृति और अपने लिए एक यू-टर्न लें और आज से ही जैविक खेती अपनाएं।
अगर आपको जैविक खेती के बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो आप एंथनी से 9074603332 पर संपर्क कर सकते हैं!
संपादन – जी. एन झा
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