गुवाहाटी, असम में स्थित पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी 'डेफोडिल नर्सरी' चलाने वाले ध्रुबज्योति शर्मा ने आज अपने पिता के 38 साल पुराने बिज़नेस को दिया एक नया रूप, जानिए इसकी शुरुआत की कहानी।
पटना की अमृता सौरभ यूं तो बचपन से अपने पिता को गार्डनिंग करते देखती थीं, लेकिन ससुराल आकर उन्होंने अपना खुद का गार्डन बनाना शुरू किया और कई देशी-विदेशी सजावटी पौधों से यहां हरियाली फैला दी। अब वह दूसरों के गार्डन डिज़ाइन करने का भी काम कर रही हैं।
सालों पहले गुजरात के नवसारी जिले के दोलधा गांव के किसान, नुकसान के कारण खेती छोड़ने को मजबूर थे। लेकिन आज यह गांव नर्सरी हब बन गया है और पूरे गुजरात, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में पौधे बेचता है।
43 वर्षीय सुमित बचपन से गार्डनिंग के शौक़ीन रहे हैं। सालों तक वह अपने पिता के स्टूडियो को संभाल रहे थे, लॉ की पढ़ाई भी की, लेकिन आख़िरकार पिछले एक साल से उन्होंने अपने मन का काम करने के लिए सब छोड़कर नर्सरी बिज़नेस शुरू किया। उनके डिज़ाइनर पौधे लाखों में बिकते हैं।
डीसा (गुजरात) के मयूर प्रजापति अपनी नर्सरी में किसानों के लिए मौसमी सब्जियों के पौधे तैयार करते हैं। इस हाई-टेक नर्सरी से वह खुद तो अच्छा मुनाफा कमा ही रहे हैं, साथ ही दूसरे किसानों को भी समय से अपनी फसल तैयार करने में मदद कर रहे हैं।
महाराष्ट्र के सोलापुर में रहने वाले गौरव जक्कल और उनका परिवार पिछले 50 सालों से गार्डनिंग कर रहा है। यह टेरेस गार्डन उनकी दादी, लीला ने शुरू किया था, जो आज एक मशहूर नर्सरी का रूप ले चुका है।