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लॉकडाउन में नहीं बिक रहे थे कद्दू, तो किसानों ने कर्नाटक में बना लिया आगरा का पेठा!

By निशा डागर

सालों से, तीर्थहल्ली के किसान आगरा के पेठे के लिए अपनी फसल भेजते रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन ने इस सिलसिले को रोक दिया। पहली बार यह शहर खुद अपना पेठा बना रहा है!

किसानों से खरीद ग्राहकों के घर तक पहुंचा रहे हैं सब्ज़ियाँ, वह भी बिना किसी कमीशन के!

By निशा डागर

हर दिन सुबह 6 से 10 बजे तक युवाओं की यह टीम लोगों के घरों पर सब्ज़ियाँ पहुंचाती है। पिछले एक महीने में उन्होंने लगभग 115 परिवारों को अपनी सेवाएं दी हैं!

जानिए कैसे लॉकडाउन में प्रोसेसिंग से टमाटर और प्याज को बचा रहे हैं ये गाँववाले!

By निशा डागर

"लॉकडाउन में दो चीजों की कोई कमी नहीं है एक तो समय और दूसरा सूरज। तो हमने सोचा कि क्यों न इन दोनों का उपयोग कुछ भलाई के लिए किया जाए!"

मिलिए 'सूखे बोरवेल के डॉक्टर' अयप्पा मसगी से, 50 लाख लोगों को मिली है मदद!

By निशा डागर

"मैं बचपन में 3 किमी दूर से माँ के साथ जाकर पानी लाता था और यही सोचता था कि कैसे यह परेशानी खत्म होगी। फिर मेरी माँ चक्की पिसती तो गाती थी कि उनका बेटा सब ठीक कर देगा। बस वहीं से मेरे मन में यह बात रच-बस गई कि मुझे पानी के लिए काम करना है।"

दिन में ऑफिस, शाम में ऑटो ड्राईवर और रात में फ्री एम्बुलेंस सर्विस देता है यह शख्स!

By निशा डागर

एक्सीडेंट में हाथ और पैर टूटने के बावजूद मंजुनाथ सुबह नौकरी करते और शाम को ऑटो चलाते हैं। रात में वह अपना ऑटो एम्बुलेंस सर्विस के लिए देते हैं और इससे हुई कमाई को दान कर देते हैं। लॉकडाउन में भी उनकी ये सेवा जारी है।

किसान ने बना दी 30 सेकेंड में 30 मीटर ऊँचे पेड़ पर चढ़ने वाली बाइक!

By निशा डागर

गणपति के मुताबिक, यह बाइक 1 लीटर पेट्रोल में 80 पेड़ों पर चढ़ सकती है। आधे मिनट में 30 मीटर चढ़ने वाली इस बाइक पर आपको न तो गिरने का डर है और न ही चोट लगने का!

800+ गरीब और ज़रूरतमंद महिलाओं को सिक्योरिटी गार्ड बनने की ट्रेनिंग दे रही है यह उद्यमी!

By निशा डागर

पहले ग्रामीण महिलाओं के सवाल होते थे, 'कोई और काम नहीं है क्या? यह तो मर्दों का काम है? पैंट-शर्ट कैसे पहनेंगे, आप साड़ी दे दो?' लेकिन आज यही महिलाएं अपनी यूनिफॉर्म पहनने में गर्व महसूस करतीं हैं!

लोगों के ताने और पत्थर की मार खाकर भी इंजीनियर 'अप्पा' ने लिया 55 HIV+ बच्चों को गोद!

By निशा डागर

HIV+ बच्चों को गोद लेने की वजह से लोगों को लगता था कि महेश खुद HIV+ हैं। इसलिए वह जहाँ भी जाते उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता। लेकिन जब महेश को उनके काम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो वही लोग उनके स्वागत में रेलवे स्टेशन पर पहुंचे।

ताउम्र देश के लिए समर्पित रही यह महिला, फिर भी नहीं है इतिहास की किताबों में नाम!

By निशा डागर

नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किए गए लोग जब जेल से बाहर निकले तो बिल्कुल बेसहारा हो गए थे। न खाने को खाना, न रहने को छत, ऐसे में, उमाबाई ने इन सेनानियों को अपने घर में आश्रय दिया!

पानी से भरा एक पुल, बीच में फंसी एंबुलेंस, फिर 12 साल के बच्चे ने दिखाई राह!

वेंकटेश वीरता पुरस्कार मिलने से खुश है, लेकिन वह अब भी कहता है कि उसने सिर्फ वही किया जो हर इंसान को करना चाहिए - 'एक दूसरे की मदद'!