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कानपुर का हीरो चायवाला: कमाई का 80% हिस्सा देते हैं गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए

By प्रीति टौंक

कभी आर्थिक तंगी के कारण अपनी खुद की पढ़ाई पूरी न कर पाने वाले कानपुर के महबूब मलिक, पिछले 8 सालों से गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रहे हैं।

झुग्गी-झोपड़ी के 5 बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने से की थी शुरुआत, आज हैं 150 बच्चों के पिता

ज़िंदगी भर अपने पिता को अपनी स्कूल की फ़ीस भरने के लिए कड़ी मेहनत करते देख, 31 साल के उद्देश्य सचान ने अपना ही नहीं, बल्कि कई गरीब बच्चों का भविष्य बनाने की ठानी और उनको फ्री में पढ़ाना शुरू कर दिया। आज कानपुर के गुरुकुलम में 150 से ज़्यादा बच्चे ख़ुशी से, खेल-कूदकर पढ़ाई करते हैं।

बाजार से क्यों खरीदें? जब घर पर ही मुफ्त में बना सकते हैं प्राकृतिक 'लूफा'

By निशा डागर

कानपूर की रहने वाली, अल्पना ठाकुर पिछले दो साल से अपनी जीवनशैली को इको-फ्रेंडली बनाने में जुटी हैं और हाल ही में, उन्होंने 'प्राकृतिक लूफा' बनाया है।

एक IPS की श्रद्धांजलि, शहीद हेड कांस्टेबल की याद में शुरू किया मुफ़्त बुक-बैंक

By द बेटर इंडिया

छत्तीसगढ़ के युवा IPS सूरज सिंह परिहार मुफ़्त बुक-बैंक पहल से हजारों युवाओं की मदद कर रहे हैं।

IIT कानपूर ने लॉन्च किए डाटा साइंस के दो मुफ्त ऑनलाइन कोर्स

By निशा डागर

IIT कानपूर ने डाटा साइंस के दो मुफ्त ऑनलाइन कोर्स लॉन्च किए हैं, जिनके लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख 25 जनवरी 2021 है।

Metro Recruitment 2020: उत्तर-प्रदेश मेट्रो में निकले पद, वेतन 2,80,000 रु प्रतिमाह तक

By निशा डागर

उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPMRCL) ने कानपुर और आगरा मेट्रो रेल परियोजनाओं में विभिन्न पदों भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया है!

7वें फ्लोर पर गार्डनिंग: 21 सालों से अपनी ज़रूरत की हर चीज़ उगातीं हैं कानपुर की दीपाली

By निशा डागर

दीपाली के गार्डन में 500 से भी ज्यादा पेड़-पौधे हैं और वह लगभग 30 तरह के फल-सब्जियां उगातीं हैं!

गेंदे के फूल के तेल ने बदली किसान की किस्मत, गरीबी को मिटा ले आये अच्छे दिन

70 वर्षीय किसान समर सिंह अपने बेटों को तो किसान नहीं बना पाए लेकिन वह अपने नाती को प्रशिक्षित करके एक सफल किसान बनाना चाहते हैं।

कॉल सेंटर की नौकरी से लेकर IPS बनने तक का सफर!

By भरत

सूरज के कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ने के फैसले पर उनके बॉस ने उनका इंक्रीमेंट दोगुना कर देने की पेशकश की, लेकिन सूरज नहीं माने। अपनी नौकरी के दौरान सूरज ने जो पैसे बचाए थे उसे लेकर 2007-08 में वे यूपीएससी की कोचिंग लेने के लिए दिल्ली चले गए। लेकिन लगभग छह महीने में ही उनके पास पैसे खत्म हो गए।