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चाची की चलती-फिरती रसोई से भरता है गरीबों का पेट, खुद के खर्च पर खिलाती हैं लोगों को खाना

By प्रीति टौंक

सोनभद्र की बिफन देवी खुद के साथ, दूसरों का पेट भरने में विश्वास रखती हैं। तभी तो पिछले कई सालों से वह अपने साथ साथ, खुद के खर्च पर कई गरीबों को भी खाना खिलाती आ रही हैं।

मुंबई की इस पुलिस कांस्टेबल को ‘मदर टेरेसा’ कहते हैं लोग, जानिए क्यों!

रेहाना शेख, मुंबई क्राइम ब्रांच (इंटरपोल) में कांस्टेबल के पद पर तैनात हैं। उन्होंने न सिर्फ 50 बेसहारा बच्चों और कोरोना महामारी के दौरान कई मरीजों की मदद की, बल्कि वह अपनी आंखें भी दान कर चुकी हैं।

ट्रेन हादसे में गंवाया एक पैर, आज हैं भारत की पहली महिला ब्लेड रनर!

By निशा डागर

मुझे पता है कि ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हमारा कंट्रोल नहीं है। ज़िंदगी का अगला पल, आपको बना सकता है या फिर गिरा भी सकता है।

"मेरी माँ उनकी हँसी और मुस्कुराहट में ज़िंदा हैं, जिन्हें उनकी वजह से जीने का सेकंड चांस मिला!"

By निशा डागर

"किसी को नहीं पता था कि क्या हुआ? डॉक्टर्स ने उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए कहा। लेकिन जब वहां पहुंचे तो कहा गया कि बहुत देर हो चुकी है।"

मैं तब तक आराम से नहीं बैठूंगी, जब तक मेरी बेटियाँ सबको बता न दें कि वे कितना कुछ कर सकती हैं!

By निशा डागर

आज द बेटर इंडिया पर पढ़िए Humans of Bombay से अनुवादित पोस्ट। मुंबई की इस आम-सी महिला की कहानी, जो अपने पति के देहांत के बाद हर सम्भव तरीके से अपनी बेटियों को पाल रही है। वह नहीं चाहती कि उसकी बेटियों को कभी भी यह लगे कि लड़कियाँ कुछ नहीं कर सकतीं।

"मेरे शरीर ने उस कला को अपना लिया, जिसके लिए मैंने अपना बचपन दे दिया!"

By निशा डागर

पढ़िये राजस्थान की सांस्कृतिक धरती से आने वाले इस संगीतकार का अनुभव, जिन्होंने अपने बचपन को संगीत-साधना में बीता दिया और आज भी इनके लिए संगीत से बढ़कर कुछ नहीं!

#अनुभव : "चलते-चलते ही मरना है"; क्योंकि जीना इसी का नाम है!

By निशा डागर

ह्युमंस ऑफ़ बॉम्बे (मुंबई) ने एक बुजुर्ग महिला का अनुभव साझा किया है। ये प्यारी-सी दादी पूरे 100 की उम्र पार करने वाली हैं। उन्होंने ज़िन्दगी में बहुत कुछ देखा है और अपने इसी अनुभव से वो सबको कहती हैं कि कुछ भी हो, हमें बस आगे बढ़ते रहना चाहिए, क्योंकि ज़िंदगी कभी नहीं रूकती।

#अनुभव : 'भविष्य के लिए बचत करने से बेहतर है कि किसी के आज को संवारा जाए'!

By निशा डागर

बिहार के इस प्राथमिक टीचर ने अपने एक गरीब छात्र की स्कूल पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। आज उनका वह छात्र एक डॉक्टर है और आज भी वह अपनी व्यस्त ज़िंदगी में से वक़्त निकाल कर अपने गुरु से मिलने गाँव जरुर आता है।