मुंबई में रहने वाले डॉ. मार्कस राणे और उनकी पत्नी, डॉ. रायना राणे की पहल 'Meds For More' के अंतर्गत बहुत से लोग, अपने घरों में बची हुई दवाइयों को जरूरतमंदों की मदद के लिए दान कर रहे हैं। ये दवाइयां सभी मरीजों को मुफ्त में दी जा रही हैं।
भारत ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के तहत, लगभग 10 मिलियन टीकों को भेजने वाला है, जिनमें से लगभग 4.9 मिलियन टीके, पड़ोसी देशों जैसे, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, ब्राजील आदि को, एक उपहार के रूप में भेजे जा चुके हैं।
महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले 34 वर्षीय गोपाल डागोर के आँखों की रेटिना बचपन से ही खराब थी, लेकिन डॉक्टरों को लगा कि आगे चलकर यह ठीक हो जाएगा। लेकिन साल 2016 में उनकी 90% दृष्टि बाधित हो गई। इस घटना से गोपाल की नौकरी चली गई और उनका जीवन काफी कठिन हो गया।
झारखंड के 2.46 लाख सखी मंडल से करीब 32 लाख ग्रामीण महिलाएं जुड़ी है, इस शानदार नेटवर्क का उपयोग जिला प्रशासन एवं सरकार के द्वारा दूरस्थ इलाकों तक सामाजिक दूरी, व्यक्तिगत स्वच्छता समेत अन्य जागरुकता संदेश के प्रसार के लिए भी किया जा रहा है ताकि स्थानीय समुदाय तक सही सूचनाएं पहुंच सके।
कोरोना महामारी के दौर में सबसे अधिक नुकसान श्रमिक वर्ग का हुआ है। इन सभी तक मदद पहुंचाने के लिए कुछ युवा और उनकी संस्थाएं बढ़-चढ़कर आगे आ रही हैं।देश के अलग-अलग हिस्सों में भागीरथ प्रयास में जुटे ऐसे ही कुछ युवाओं के बारे में हम यहां बता रहे हैं।
‘अपनेआप संस्था’ की कार्यकर्ता टिंकू खन्ना के अनुसार समुदाय के पुरुष कोई काम नहीं करते हैं और दिन भर शराब का सेवन और महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा करते हैं। शाम के समय घर की सभी महिलाओं को गाड़ियों में भरकर अलग-अलग स्थानों पर खरीदारों के पास ले जाया जाता है।